इंडियन प्रीमियर लीग की जब शुरूआत हुई थी तो आठ टीमों में से हैदराबाद की टीम डेक्कन चार्जर्स भी टीमों की सूची में शामिल थी जिसे हटाना बीसीसीआइ को बहुत भारी पड़ गया है. इस केस में कोर्ट ने एक आर्बिट्रेटर नियुक्त किया था जिसने बीसीसीआइ के खिलाफ अपना फैसला दिया है. आर्बिट्रेटर ने बीसीसीआइ पर 4800 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. बम्बई हाईकोर्ट ने लंबे समय से चले आ रहे इस विवाद का फैसला शुक्रवार को डेक्कन क्रॉनिकल्स होल्डिंग्स (डीसीएचएल) के पक्ष में सुनाया.


बीसीसीआई के एक अधिकारी ने कहा कि फैसला पूरी तरह से आश्चर्यजनक है, लेकिन पूरा आदेश देखने के बाद ही इस पर कोई अंतिम निर्णय लिया जाएगा. हालांकि बोर्ड इस आदेश के खिलाफ अपील कर सकती है.


उन्होंने कहा, "ईमानदारी से कहूं तो यह एक आश्चर्य के रूप में आया है और यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे क्या होता है. आर्ब्रिटेटर पर भरोसा किया गया है और कोई आदेश पढ़ने के बाद ही उचित मूल्यांकन कर सकता है. लेकिन आप यह सुनिश्चित मान सकते हैं कि बीसीसीआई इस फैसले के खिलाफ अपील करेगा."


मामला 2012 का है, जब बीसीसीआई ने डेक्कन चार्जर्स का अनुबंध खत्म कर दिया था और हैदराबाद की फ्रेंचाइज ने बीसीसीआई के इस फैसले को चुनौती दी थी.


डेक्कन चार्जर्स ने बम्बई हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और पूरे मामले की जांच के लिए अदालत ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश सी.के. ठक्कर को इकलौता पंचाट (आर्बिट्रेटर) नियुक्त किया. आईपीएल फ्रेंचाइज समझौते के आधार पर आर्बिट्रेशन की प्रक्रिया शुरू हुई. डीसीएचएल ने 6046 करोड़ रुपये के हर्जाना और ब्याज का दावा किया था.


बता दें कि हैदराबाद बेस्ड इस टीम को आइपीएल से 2012 में ही बाहर कर दिया गया था और उसके बाद सन टीवी नेटवर्क ने हैदराबाद फ्रेंचाइजी की बोली जीती और फिर सनराइजर्स हैदराबाद टीम आई. डेक्कन चार्जर्स ने आइपीएल का खिताब 2009 में जीता था.