Commonwealth Games Mascot: बर्मिंघम में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स (Commonwealth Games) में 'पैरी दी बूल' (Perry The Bull) लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. इस मैस्कॉट (Mascot) के बारे में सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसे एक 10 साल की बच्ची ने डिजाइन किया है. ग्रेटर मैनचेस्टर की रहने वाली एमा लू (Emma Lou) ने बर्मिंघम मैस्कॉट के डिजाइन के लिए हुई राष्ट्रीय प्रतियोगिता में इसे बनाया था. इस मैस्कॉट के बूल के रूप में होने और इसका नाम 'पैरी दी बूल' होने के पीछे भी छोटी सी कहानी है.
दरअसल, बर्मिंघम सैकड़ों सालों से अपने 'बूल रिंग मार्केट' के लिए जाना जाता है. यही कारण है कि आयोजनकर्ताओं ने इस शहर में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए एक बूल को ही मैस्कॉट बनाए जाने का फैसला लिया था. इसे पैरी नाम दिए जाने के पीछे वजह यह है कि जिस स्टेडियम में कॉमनवेल्थ गेम्स की ओपनिंग और एंडिंग सेरेमनी समेत कई प्रतिस्पर्धाएं होनी है, वह स्टेडियम उत्तरी बर्मिंघम के पैरी बार्र इलाके में पड़ता है. ऐसे में इस मैस्कॉट के लिए 'पैरी दी बूल' नाम चुना गया.
एक बूल की शक्ल लिए पैरी के डिजाइन में ढेर सारे षटकोण बने हुए हैं और इनमें अलग-अलग रंग उपयोग में लाए गए हैं. यह रंग कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा ले रहे अलग-अलग समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं. यह रंग यह भी दर्शाते हैं कि खेल और संस्कृति के इस उत्सव में सभी का स्वागत है. पैरी की डिजाइन में नीले, पीले और लाल रंग की पट्टियां भी दी गई हैं जो बर्मिंघम के झंडे का प्रतिनिधित्व करती हैं.
ओपनिंग सेरेमनी में रेजिंग बूल ने खींचा था सबका ध्यान
कॉमनवेल्थ गेम्स की ओपनिंग सेरेमनी (Commonwealth Games Opening Ceremony) में भी एक 10 मीटर ऊंचा बूल मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा था. इसे 19वीं सदी में बर्मिंघम में चैन बनाने वाली महिलाओं की कहानी के साथ पेश किया गया. दरअसल, 1910 में कारखानों में चैन बनाने वाली महिलाओं ने अपनी सैलरी बढ़ाने के लिए आंदोलन किया था. इसके बाद उनकी आय दोगुनी कर दी गई थी. ऐसे में कॉमनवेल्थ गेम्स की ओपनिंग सेरेमनी में इस बुल को महिलाओं और वर्किंग क्लास लोगों की उद्योगपतियों के खिलाफ जीत के तौर पर पेश किया गया. स्टेडियम में रेजिंग बुल के एक्शन और इस दौरान लाइटिंग और साउंड ने स्टेडियम का माहौल पूरी तरह बदल कर रख दिया था.
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