वानखेड़े स्टेडियम में शनिवार को पीले रंग का दिन था. लग रहा था बसंत का मौसम हो. चेन्नई की टीम प्रतिबंध के बाद आईपीएल में वापसी कर रही थी. मुकाबला घरेलू टीम और मौजूदा चैंपियन मुंबई इंडियंस से था. बावजूद इसके चेन्नई के प्रशसंकों की कमी नहीं थी. ऐसे उत्साह बढ़ाने वाले माहौल में जब चेन्नई ने अप्रत्याशित तरीके से मुंबई को आखिरी ओवर में हराया तो फैंस में करंट दौड़ गया.


30 गेंद पर ड्वेन ब्रावो धुंआधार 68 रन बनाकर जब आउट हुए तब भी जीत के लिए 7 रन चाहिए थे. रिटायर्ड हर्ट हो चुके केदार जाधव को क्रीज पर आना पड़ा. जाधव चोट की वजह से दौड़ नहीं सकते थे. उनकी इसी तकलीफ को देखते हुए मुंबई की टीम ने फील्डिंग सेट की थी. पहली तीन गेंदों पर जब वो रन नहीं बना पाए तो लगा कि ब्रावो की मेहनत बेकार जाने वाली है. लेकिन आखिरी ओवर की चौथी गेंद पर छक्का और पांचवी गेंद पर चौका लगाकर केदार जाधव ने चेन्नई को ऐसी जीत दिलाई जो किसी भी हाई प्रोफाइल टूर्नामेंट के पहले मैच में फैंस का रोमांच सौ गुना बढ़ाने के लिए काफी है.


आखिरकार चेन्नई ने मुंबई की तरफ से दिए गए 166 रन के लक्ष्य के जवाब में 19.5 ओवर में 9 विकेट पर 169 रन बनाकर जीत हासिल कर ली. जीत के साथ हुई इस शुरूआत के बाद भी कप्तान धोनी के लिए आने वाले दिन आसान नहीं रहेंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि मुंबई के खिलाफ मैच में चेन्नई की टीम में वो बिजली नहीं दिखाई दी जिसके लिए वो जानी जाती है. इसकी वजह है धोनी इस सीजन में ज्यादातर ऐसे खिलाड़ियों को लेकर मैदान में उतरे हैं जो तीस की उम्र को पार कप चुके हैं. कई खिलाड़ी तो 35 पार के हैं. इमरान ताहिर तो 40 के होने वाले हैं.


यंगिस्तान बनाने वाले धोनी को क्या हुआ है

ये वही धोनी हैं जिन्होंने जब टीम इंडिया की कप्तानी संभाली तो यंगिस्तान का नारा दिया था. धोनी पर वीरेंद्र सहवाग, राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली और लक्ष्मण जैसे खिलाड़ियों की ‘बलि’ चढ़ाने का आरोप तक लगाया गया था. ऐसा इसलिए क्योंकि धोनी टीम में लगातार नए खिलाड़ियों की वकालत करते थे. उनकी इस सोच की जितनी तारीख हुई थी, उतनी ही आलोचना भी हुई थी. मौजूदा टीम इंडिया के ज्यादातर नए खिलाड़ी धोनी की यंगिस्तान की सोच का ही नतीजा है. वही धोनी मुंबई के खिलाफ जब शनिवार को ग्यारह खिलाड़ियों के साथ मैदान में उतरे तो उनकी टीम में 9 खिलाड़ी ऐसे थे जो तीस की उम्र को पार कर चुके हैं.


करीब 26 साल के दीपक चाहर और 28 साल के मार्क वुड को छोड़ दें तो कई खिलाड़ियों का करियर अपनी अपनी नेशनल टीमों के लिए खत्म हो चुका है. तीस की उम्र से करीब 6-7 महीने कम चल रहे रवींद्र जडेजा भी फिलहाल लिमिटेड ओवर मैच में वापसी के लिए संघर्ष ही कर रहे हैं. शनिवार को मुंबई के खिलाफ मैच में भी धोनी ने जडेजा से सिर्फ एक ओवर गेंदबाजी कराई. बढ़ती उम्र के खिलाड़ियों का उनकी गेंदबाजी और फील्डिंग पर साफ असर दिखाई दिया.

रैना और जडेजा जैसे खिलाड़ियों में धैर्य की कमी


सुरेश रैना और रवींद्र जडेजा के करियर में आईपीएल का बड़ा रोल है. इन दोनों खिलाड़ियों को आईपीएल ने बड़ी पहचान दिलाई है. बावजूद इसके शनिवार को इन दोनों ही खिलाड़ियों ने निराश किया. रैना तो खैर पॉवरप्ले में कुछ रन जोड़ लेने की कोशिश में आउट हुए. जडेजा जिस वक्त आउट हुए उस वक्त उन्हें क्रीज पर टिकना चाहिए था. इस बात को समझने की जरूरत है कि जीत हासिल करने के लिए मैच को आखिरी ओवर तक पहुंचाना जरूरी है.


चेन्नई के कप्तान धोनी इस आदत में महारत हासिल कर चुके हैं. ब्रावो भी कल जीत तक इसीलिए पहुंचा पाए क्योंकि उन्होंने आखिरी के ओवरों तक मैच को पहुंचाया. ये सच हैं कि किसी भी तरह से मिली जीत जीत होती है. जीत का एक स्वाद होता है. इसीलिए कहते भी हैं कि अंत भला तो सब भला लेकिन इस जीत में रह गई कमियों को दूर करना धोनी के लिए चुनौती रहेगा, उनके पास इस सीजन में अगर कुछ है तो सिर्फ एक चीज- अनुभव. बिजली की फुर्ती से चलने वाले इस खेल में वो ‘अनुभव’ के बल पर कहां तक जाएंगे ये देखने में मजा आएगा.