वेस्टइंडीज के खिलाफ 8 विकेट से मिली आसान जीत के पीछे दो शतक हैं. एक शतक जो टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली ने लगाया. दूसरा शतक जो टीम इंडिया के उप कप्तान रोहित शर्मा ने लगाया. 323 रनों के बड़े लक्ष्य का पीछा करते हुए दोनों की पारियां शानदार थीं.
विराट कोहली जब बल्लेबाजी करने आए थे तब टीम इंडिया सिर्फ 10 रन के स्कोर पर पहला विकेट खो चुकी थी. उन्होंने वहां से पारी को संभाला. रोहित शर्मा ने आखिरी रन तक अपना विकेट बचाए रखा. वो टीम की जीत को सुनिश्चित करने के बाद ही ड्रेसिंग रूम में गए. विराट कोहली ने 107 गेंद पर 140 रन बनाए. 130.8 की स्ट्राइक रेट से बनाए गए इन रनों में 21 चौके और 2 छक्के शामिल हैं.
रोहित शर्मा ने 117 गेंदों पर 152 रन बनाए. उनकी इस पारी में 15 चौके थे और 8 छक्के. स्ट्राइक रेट 129.9. अब सवाल ये है कि मैच के बाद मैन ऑफ द मैच का खिताब विराट कोहली को क्यों दिया गया. इस बात को लेकर मैच के बाद चर्चा भी हुई. सच्चाई ये है कि विराट कोहली को मैन ऑफ द मैच देकर इस बहस को दोबारा जिंदा कर दिया गया कि क्या 2011 विश्व कप और 2008 टी-20 विश्व कप के फाइनल में गौतम गंभीर को मैन ऑफ द मैच का खिताब ना देकर उनके साथ अन्याय किया गया था? इन दोनों मैचों को याद कर लेते हैं.
गौतम के साथ हुआ था गंभीर अन्याय
पहले बात 2011 विश्व कप के फाइनल की. जब भारत ने 28 साल बाद विश्व कप का खिताब जीता. श्रीलंका के खिलाफ फाइनल मैच में टीम इंडिया को जीत के लिए 275 रन बनाने थे. मैच के पहले ही ओवर में सहवाग आउट हो गए. सातवें ओवर में सचिन आउट हो गए. स्कोरबोर्ड पर रन थे सिर्फ 31. ऐसी मुश्किल परिस्थिति से टीम को निकालकर गंभीर उस दरवाजे तक ले गए जहां से जीत दिखने लगी. 41.2 ओवर में गंभीर 97 रन बनाकर आउट हुए. यानी तब जीत के लिए करीब 50 रन बनाने रह गए थे. इस काम को कप्तान धोनी ने पूरा किया. उन्होंने 91 रन बनाए. जीत के बाद उन्हें मैन ऑफ द मैच चुना गया.
तब किसी ने ये नहीं देखा कि गंभीर की पारी में कितना संघर्ष था. उन्होंने किस मुश्किल परिस्थिति में रन बनाए थे. ऐसे ही 2007 में जब टीम इंडिया टी-20 चैंपियन बनी थी तब भी गंभीर के योगदान को नजरअंदाज किया गया था. पाकिस्तान के खिलाफ उस मैच में गौतम गंभीर ने 54 गेंद पर 75 रनों की शानदार पारी खेली थी. टीम के कुल स्कोर 157 रनों में करीब आधे रन उन्हीं के थे.
बावजूद इसके मैन ऑफ द मैच का खिताब इरफान पठान को मिला था. जिन्होंने उस मैच में 4 ओवर में 16 रन देकर 3 विकेट लिए थे. निश्चित तौर पर उनका योगदान भी बड़ा था लेकिन गंभीर के 75 रन शायद कुछ ज्यादा कीमती थे.
विराट को क्यों मिला मैन ऑफ द मैच?
दरअसल व्यवहारिक बात ये है कि रविवार के मैच में विराट कोहली को सिर्फ इसलिए मैन ऑफ द मैच चुना गया क्योंकि ये जरूरी नहीं कि गौतम गंभीर के साथ अन्याय हुआ था तो विराट कोहली के साथ भी अन्याय किया जाए. मैन ऑफ द मैच चुनने वाली टीम ने रविवार के मैच में विराट कोहली की बल्लेबाजी का अंदाज देखा. विराट ने बिल्कुल ही नए तरीके से बल्लेबाजी की. वो बेहद आक्रामक दिखे. आम तौर पर रोहित शर्मा आक्रमण करते हैं और विराट पारी को संवारते हैं.
मैच के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा भी कि वो ‘एंकर’ की भूमिका में थे. रविवार को विराट ने आक्रमण की कमान संभाली थी. उन्होंने रोहित शर्मा से पहले अपना अर्धशतक पूरा किया. फिर रोहित शर्मा से पहले अपना शतक पूरा किया. मनचाहे शॉट्स लगाए. लिहाजा रोहित शर्मा के बड़े स्कोर के बाद भी विराट कोहली को मैन ऑफ द मैच चुना गया. वापस लौटते हैं गंभीर की कहानी पर. गंभीर टीम इंडिया के बड़े बल्लेबाजों में से रहे हैं. हाल ही में विजय हजारे ट्रॉफी में भी उन्होंने शतक जड़ा था. स्थितियां अब ऐसी नहीं रह गई हैं कि टीम इंडिया में उनकी वापसी होगी लेकिन भारतीय क्रिकेट का इतिहास लिखते वक्त दो बार विश्व कप के फाइनल की जीत में उनके योगदान को सलाम करना चाहिए.