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पाकिस्तान क्रिकेट का ये नुकसान उनकी आने वाली पीढ़ियों को भी सताएगा

ब्रिसबेन टेस्ट चार दिन में खत्म हो गया. पाकिस्तान की टीम को एक और शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा. ये हार सिर्फ टीम की नहीं बल्कि पाकिस्तान में चल रहे सियासती दौर की भी है. पढ़िए वरिष्ठ खेल पत्रकार शिवेंद्र कुमार सिंह का ब्लॉग

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में किसी भी टीम की साख के बनने और बिगड़ने की घटना एक दो साल में नहीं होती. ये एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे घटने में खासा समय लगता है. 70-80 के दशक वेस्टइंडीज की क्रिकेट टीम की साख अचानक नहीं बनी थी. उसके पीछे विश्व क्रिकेट में उनकी टीम का लगातार दबदबा रहा. 90 के दशक के आते आते अचानक वो साख नहीं गई. बल्कि दुनिया की बाकि टीमों ने उस दबदबे को तोड़ा. 90 के दशक में विश्व कप जीतने के बाद पाकिस्तान टीम की भी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में एक साख बनी थी. पाकिस्तान टीम के बारे में मशहूर था कि वो टीम मैच की आखिरी गेंद तक संघर्ष करती है. क्रिकेट के खेल में ‘फाइटिंग स्पिरिट’ नाम का शब्द बहुत हद तक पाकिस्तान क्रिकेट टीम की देन है. वही पाकिस्तान क्रिकेट टीम इन दिनों बदहाली के दौर से गुजर रही है. अफसोस इस बात का है कि टीम बुरी नहीं बल्कि टीम को चलाने वाला बोर्ड और बोर्ड में चल रही सियासत बुरी है. पीसीबी की सियासत टीम के मामलों में इस कदर हावी है कि हर कोई असुरक्षा की भावना से गुजर रहा है. एक मुल्क के तौर पर पाकिस्तान इन दिनों जितना असुरक्षित है उतनी ही असुरक्षित वहां की क्रिकेट टीम दिख रही है. जिसका नतीजा मैदान में साफ तौर पर दिखाई दे रहा है. ब्रिसबेन टेस्ट में मिली शर्मनाक हार ब्रिसबेन टेस्ट के चौथे ही दिन पाकिस्तान को एक पारी और पांच रनों की बड़ी हार का सामना करना पड़ा. दूसरी पारी में पाकिस्तान के बल्लेबाजों ने थोड़ा संघर्ष किया लेकिन वो संघर्ष नाकाफी था. आपका बता दें कि पाकिस्तान की टीम ने पहली पारी में 240 रन ही बनाए थे. पहली पारी में पाकिस्तान के बल्लेबाजों के प्रदर्शन का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि 75 रन तक उनका कोई भी विकेट नहीं गिरा था और सौ रन तक पहुंचते पहुंचते आधी टीम पवेलियन लौट चुकी थी. इन 240 रनों के जवाब में कंगारुओं ने 580 रन बनाए. इसमें डेविड वॉर्नर और मार्नस लाबुशाने का शानदार शतक था. पाकिस्तान की टीम को दूसरी पारी में 341 रन बनाने थे जिससे वो ऑस्ट्रेलिया को दोबारा बल्लेबाजी के लिए उतरने पर मजबूर करे. टेस्ट मैच में हार तो पाकिस्तान की तय थी लेकिन अगर ऑस्ट्रेलिया को वो दोबारा बल्लेबाजी के लिए आने पर मजबूर कर देते तो कम से कम उनकी कुछ इज्जत रह जाती है. लेकिन दूसरी पारी में भी पाकिस्तान की टीम 335 रनों पर ऑल आउट हो गई. दूसरी पारी में भी पाकिस्तान ने एक वक्त पर 94 रन पर पांच विकेट गंवा दिए थे. वो तो बाबर आजम और मोहम्मद रिजवान ने क्रीज पर टिककर बल्लेबाजी की वरना हार का अंतर और बड़ा होगा. बाबर आजम ने शतक जड़ा. जबकि मोहम्मद रिजवान सिर्फ 5 रन से अपने शतक से चूक गए. पहली पारी में 39 रन बनाने वाले पाकिस्तानी कप्तान अजहर अली दूसरी पारी में सिर्फ 5 रन ही बना पाए. पाकिस्तान में परेशानी कहां कहां पर है? यूं तो इस सवाल के जवाब में इस समय पूरी एक मुकम्मल किताब लिखी जा सकती है. लेकिन संक्षेप में बात की जाए तो कुछ बड़े बड़े मुद्दे बिल्कुल साफ दिखाई देते हैं. पहला मुद्दा तो यही है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की प्राथमिकताओं में खेलों में सुधार की कोई योजना नहीं दिख रही है. वो अपनी ही कुर्सी बचाने के संघर्ष में लगे हुए हैं. जो थोड़ा बहुत समय बचता भी है तो उसमें वो भारत के खिलाफ जहर उगलने का काम करते हैं. दूसरा बड़ा मुद्दा है कि इमरान खान खान की शह पर उनके कुछ करीबियों ने पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड पर कब्जा कर लिया है. वहां की बदहाली कुछ यूं है कि कर्मचारियों को 3-3 महीने से तनख्वाह नहीं मिली है और ऊपर के पदों पर बैठे लोग ऑस्ट्रेलिया दौरा कर रहे हैं. तीसरा बड़ा मुद्दा मिस्बाह उल हक को बल्लेबाजी सलाहकार, चीफ सेलेक्टर के साथ साथ हेड कोच बनाने से हुई नाराजगी है. पाकिस्तान के तमाम पूर्व क्रिकेटर इसी बात से खफा हैं कि क्या पूरे मुल्क में सिर्फ एक खिलाड़ी है जो पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को दिखता है. दरअसल मिस्बाह भी इमरान के खास बताए जाते हैं. चौथा बड़ा मुद्दा पाकिस्तान टीम का सेलेक्शन है. मोहम्मद हफीज और शोएब मलिक जैसे अनुभवी खिलाड़ियों को ना चुके जाने पर वहां आए दिन बवाल हो रहा है. नसीम अहमद नाम के एक तेज गेंदबाज को प्लेइंग 11 में तो रख लिया गया है लेकिन उनकी उम्र को लेकर ही विवाद गर्माया हुआ है. कुल मिलाकर कहानी कुछ ऐसी है कि पाकिस्तान क्रिकेट से जुड़े हर शख्स की निगाहें सिर्फ अपनी नौकरी बचाने पर हैं.
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