आखिरकार डेविड वॉर्नर ने भी इस बात का ऐलान कर दिया कि वो खुद पर लगाए गए एक साल के प्रतिबंध के खिलाफ कोई अपील नहीं करेंगे. वॉर्नर और प्रतिबंध झेल रहे अन्य खिलाड़ियों को 5 अप्रैल तक इस बात का फैसला करना था कि वो सजा को स्वीकार करेंगे या उसके खिलाफ अपील करेंगे. पूर्व कप्तान स्टीव स्मिथ और कैमरन बेनक्राफ्ट पहले ही ये कह चुके थे कि वो फैसले को स्वीकार करेंगे. जबकि डेविड वॉर्नर ने इस बात को स्वीकार करने के लिए थोड़ा और वक्त लिया.
वॉर्नर ने सोशल मीडिया पर लिखा कि वो अब एक बेहतर इंसान, बेहतर साथी खिलाड़ी और रोल मॉडल बनने के लिए सबकुछ करेंगे. इसके साथ ही विश्व क्रिकेट में करीब दो हफ्ते तक चले इस भूचाल का अंत होना चाहिए. क्रिकेट के हर एक्शन पर नजर रखने वाले फैंस को भी अब इस विवाद से आगे बढ़ना चाहिए. 4 टेस्ट मैचों की सीरीज भी अब खत्म हो चुकी है. जिसे दक्षिण अफ्रीका ने 3-1 से शानदार तरीके से जीत लिया है. अब जरूरत इस बात की है कि क्रिकेट संचालित करने वाली संस्थाएं, आईसीसी और खिलाड़ी इस बात पर आत्ममंथन करें कि क्या जीत की चाहत किसी खिलाड़ी को अंधा बना रही है.
कंगारूओं के फैसले में क्या है संदेश
स्टीव स्मिथ समेत सभी खिलाड़ियों के पास अपील करने का अधिकार था. बावजूद इसके किसी ने भी अपील करने का फैसला नहीं किया. इसके पीछे की वजह बड़ी साफ है. तीनों खिलाड़ी ये समझ चुके हैं कि उन्होंने बहुत बड़ी गलती की है. उनकी गलती के सबूत हैं. अगर वो अपील करते भी हैं तो शायद ही उन्हें किसी तरह की रिआयत मिल पाए. ऐसा इसलिए क्योंकि तीनों ही खिलाडियों को पता था कि एक एक ऐक्शन कैमरे में कैद है, जिसे पूरी दुनिया ने देखा है. ऐसे में बेहतर होगा कि अपनी गलती को स्वीकार करते हुए पश्चाताप किया जाए. पिछले करीब 10 दिन में दुनिया के कई बड़े दिग्गज खिलाड़ियों ने इस सजा को कठोर भी बताया. कई खिलाड़ियों ने स्मिथ, वॉर्नर के पक्ष में सोशल मीडिया में अपनी राय रखी. इसमें तमाम भारतीय खिलाड़ी भी शामिल थे. सवाल ये है कि अगर इन खिलाड़ियों को कड़ी सजा नहीं दी गई होती तो विश्व क्रिकेट के सामने क्या संदेश जाता? आज भले ही इन खिलाड़ियों के प्रति लोगों की ‘सिमपैथी’ है लेकिन आने वाले वक्त में ये सवाल उठता कि सोच समझ कर की गई बेईमानी को कैसे नजरअंदाज कर दिया गया. ये भी सच है कि अगर यही गलती किसी एशियाई खिलाड़ी ने की होती और कैमरे में कैद हुआ होता तो उसे शायद ही इस तरह की ‘सिमपैथी’ मिलती. दुनिया भर में स्मिथ या वॉर्नर के समर्थकों को समझना चाहिए कि अगर उन्होंने अपील ना करने का फैसला किया है तो वो खुद समझ रहे हैं कि उन्हें जो सजा दी गई है वो जायज है.
क्या है पूरा मामला
22 से 25 मार्च के बीच केपटाउन में दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के बीच सीरीज का तीसरा मैच खेला जा रहा था. दोनों टीमें तब तक 1-1 मैच जीत चुकी थी. तीसरे टेस्ट मैच में भी दक्षिण अफ्रीका का पलड़ा भारी दिख रहा था. ऐसे वक्त में ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी कैमरन बेनक्राफ्ट को गेंद के साथ छेड़छाड़ करते हुए कैमरे में कैद कर लिया गया. जैसे ही इस बात की जानकारी टीम के कोच डेरेन लीमैन के पास पहुंची उन्होंने 12वें खिलाडी से मैदान में संदेश पहुंचाया और बेनक्राफ्ट को सतर्क किया. ये हरकत भी कैमरे में कैद हो गई. इसके बाद हुए बवाल के बीच कप्तान स्टीव स्मिथ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में गेंद के साथ छेड़छाड़ की बात को स्वीकार कर लिया. ये भी पता चल गया कि इस योजना में उनके और बेनक्राफ्ट के अलावा डेविड वॉर्नर भी शामिल थे. पूरी दुनिया में बवाल मचा. आईसीसी ने हल्की फुल्की सजा देकर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की, लेकिन तब तक ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री इस मामले में हस्तक्षेप कर चुके थे. आखिर में क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया को इन तीनों खिलाड़ियों के खिलाफ फैसला लेना पड़ा. स्मिथ को कप्तानी छोड़नी पड़ी. तीनों खिलाड़ियों को बैन किया गया. इसके बाद से ही क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के इस फैसले को एक बड़े वर्ग ने कड़ा फैसला बताना शुरू कर दिया था. अब तीनों ही खिलाड़ियों के सजा के खिलाफ अपील ना करने के फैसले से बात साफ हो गई है कि उन्हें अपनी गलती का अहसास है. इसलिए इस बहस से आगे बढने का वक्त आ गया है.