नई दिल्ली: भारतीय क्रिकेट को चलाने वाली संस्था बीसीसीआई के लिए आज का दिन बेहद महत्वपूर्ण है. सुप्रीम कोर्ट आज लोढ़ा समिति की सिफारिशों पर अपना फैसला सुनाएगी. बीते दिन गुरुवार को कोर्ट में इस मसले पर सुनवाई चली.
जिसमें लोढ़ा कमेटी से तनानती की बात पर सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई प्रेसिडेंट अनुराग ठाकुर से पूछा कि क्या वह कमेटी की सिफारिशें लागू करने को लेकर खुद लिखित अंडरटेकिंग देंगे या फिर कोर्ट को ही आदेश जारी करना होगा. इसपर बीसीसीआई ने हलफनामा देने से साफ इनकार कर दिया. हालांकि इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई के अधिकारियों को सस्पेंड किए जाने वाले सभी फैसले सुरक्षित कर लिए हैं.
सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा था कि वे शुक्रवार को एक आदेश जारी करेंगे कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) न्यायामूर्ति (सेवानिवृत्त) आर. एम. लोढ़ा समिति की सिफारिशों के आधार पर सुधारों का विरोध करने वाले सहायक राज्य संघों की आर्थिक मदद बंद करे. प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने यह आदेश जारी करने का निर्णय लिया है.
बीसीसीआई के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अदालत से जब कहा कि बीसीसीआई के लिए यह मुमकिन नहीं है कि वह अदालत को इस बात का बिना शर्त वचन दे सके कि यदि सहायक राज्य संघ सुधारों को लागू नहीं करते तो बोर्ड उनकी आर्थिक मदद बंद कर देगा
कपिल सिब्बल के इस बयान पर ही अदालत ने बोर्ड को राज्य संघों की आर्थिक मदद बंद करने का आदेश जारी करने का फैसला किया, जिसे अदालत शुक्रवार को जारी करेगी.
अदालत ने जब बीसीसीआई से बिना शर्त वचन देने के लिए कहा तो सिब्बल ने अदालत को बताया, "कल (शुक्रवार) ऐसा कर पाना संभव नहीं है."
इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "तो ठीक है, हम कल (शुक्रवार) एक आदेश जारी करेंगे."
इससे ठीक पहले सिब्बल ने अदालत से कहा, "क्या हम यह शपथ-पत्र 17 अक्टूबर तक पेश कर सकते हैं." इस पर अदालत ने कहा, "आप शुक्रवार को इस पर अपना एक बयान तो दे सकते हैं."
गौरतलब है कि अदालत में शनिवार से दशहरे की छुट्टियां हो रही हैं, जिसके बाद 17 अक्टूबर को अदालत में दोबारा काम-काज शुरू होगा.
भविष्य में अदालत क्या कदम उठा सकती है, इसका इशारा देते हुए सुनवाई के दौरान अदालत ने संकेत दिया कि उनके पास दो विकल्प हैं- एक तो बीसीसीआई में बदलाव की देखरेख के लिए एक प्रशासनिक समिति का गठन किया जाए और दूसरे लोढ़ा समिति को ही इसका कार्यभार सौंप दिया जाए.
अदालत ने कहा कि लोढ़ा समिति सिफारिशों को लागू करने के लिए बीसीसीआई को थोड़ा और समय दे सकती है.
सांगठनिक सुधार के लिए बोर्ड को और अधिक समय दिए जाने पर अदालत ने किसी तरह की समस्या न जताते हुए प्रधान न्यायाधीश ठाकुर ने कहा, "अगर बीसीसीआई का कोई सहायक संघ सुधारों को लागू करने के खिलाफ है, तो आप उसे आर्थिक मदद क्यों दे रहे हैं? क्यों? आखिर क्यों? आपकी वार्षिक आमसभा की बैठक 30 सितंबर को थी और आपने 29 सितंबर को धनराशि भेज दी."
सर्वोच्च न्यायालय के 18 जून को दिए फैसले के अनुसार, बीसीसीआई के पास लोढ़ा समिति की सिफारिशों के आधार पर सांगठनिक सुधारों को लागू करने के लिए 18 नवंबर तक का समय है, जिसे 18 जनवरी तक बढ़ाया जा सकता है.
अदालत ने कहा, "यदि बीसीसीआई हमारे दिशा-निर्देशों को मानने की इच्छुक नहीं है तो हम भी अपना समय बर्बाद नहीं कर सकते."
सिब्बल ने जब कहा, "हमारा अस्तित्व इन राज्य संघों के बल पर ही है." तो इस पर प्रधान न्यायाधीश ठाकुर ने कहा, "उनका (सहायक खेल संघ) अस्तित्व भी आपसे (बीसीसीआई) से मिलने वाले पैसे पर निर्भर है."
अदालत ने बीसीसीआई को एक बार फिर याद दिलाया कि वे जो पैसा खर्च कर रहे हैं वह जनता का पैसा है.
अदालत ने कहा, "आप एक सार्वजनिक कार्यक्रम का आयोजन करते हैं और आपको पारदर्शी तरीके से काम करना चाहिए."