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कोच को लेकर क्यों साफ नहीं है बीसीसीआई की सोच?


कोच को लेकर क्यों साफ नहीं है बीसीसीआई की सोच?


आखिरकार तमाम हो हल्ले के बाद बीसीसीआई ने साफ किया कि वेस्टइंडीज के दौरे तक अनिल कुंबले ही टीम के कोच बने रहेंगे. बशर्ते इसमें अनिल कुंबले को कोई एतराज ना हो. ऐसा इसलिए क्योंकि कुंबले के मिजाज और कद को देखते हुए ये बात समझी जा सकती है कि उन्हें कोच की कुर्सी से किसी तरह का ‘मोह’ नहीं हैं.


खैर, भारतीय टीम को वेस्टइंडीज में 5 वनडे और 1 टी-20 मैच खेलना है. 23 जून से शुरू होने वाली इस सीरीज के लिए भारतीय टीम 22 जून को लंदन से ही वेस्टइंडीज के लिए रवाना हो जाएगी. बीसीसीआई ने नए कोच के खोज की कवायद शुरू जरूर की थी लेकिन अभी तक उसमें उसे कामयाबी नहीं मिली है. 


वीरेंद्र सहवाग, टॉम मूडी, लालचंद राजपूत जैसे खिलाड़ियों ने अपनी दावेदारी पेश की है लेकिन क्रिकेट एडवायजरी कमेटी ने अभी तक इस बारे में कोई फैसला नहीं किया है. आपको बता दें कि क्रिकेट एडवायजरी कमेटी में सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण जैसे दिग्गज खिलाड़ी शामिल हैं. इन्हीं लोगों ने मिलकर पिछले साल अनिल कुंबले को कोचिंग की जिम्मेदारी सौंपी थी.


अच्छे नतीजे देने के बावजूद अब एक साल के भीतर ही कुंबले का विकल्प खोजने की प्रक्रिया को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं. अफसोस इस बात का है कि इस पूरे मामले में बीसीसीआई की सोच बिल्कुल भी साफ नजर नहीं आ रही हैं. 



क्या वाकई सोच समझकर हो रहे हैं फैसले 


कुंबले के कार्यकाल के पूरा होते ही जिस तरह से कोच के लिए विज्ञापन निकाला गया, क्या वो सोच समझ कर लिया गया फैसला था? कुंबले जिस कद के खिलाड़ी हैं क्या ये बेहतर नहीं होता कि पहले उनसे बातचीत की गई होती. बोर्ड के अधिकारी अब अगर ये दावा करते हैं कि कुंबले से बातचीत के बाद ही वो विज्ञापन छापा गया था तो फिर आखिर इतना विवाद क्यों हुआ? 


अगर ये वाकई एक प्रक्रिया के तहत छापा गया विज्ञापन था तो फिर कुंबले को ‘कन्टीन्यू’ क्यों किया जा रहा है. सच्चाई ये है कि जिस तरह कोच को लेकर फैसले लिए जा रहे हैं, उससे लगता है कि फिलहाल बीसीसीआई इस बात को कुछ समय के लिए टालने के मूड में है. बीसीसीआई के कामकाज पर नजर रखने वाले इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं, कि वहां बंद कमरों में किस स्तर की राजनीति होती है. भले ही आज क्रिकेट का संचालन करने के लिए एक कमेटी बनाने की नौबत आ गई हो लेकिन चीजें अभी भी पारदर्शिता से काफी दूर हैं. पहले जल्दबाजी में विज्ञापन देना और अब उसे कुछ समय के लिए टालना इसी बात का नतीजा है. 



सहवाग के दावे से और दिलचस्प हो गया मामला  


यूं तो शायद ये खबर इतनी ‘मेनस्ट्रीम’ में ना रहती लेकिन जब सहवाग ने कोच के लिए आवेदन कर दिया तो बात दूर तक फैल गई. सहवाग खुद भारतीय क्रिकेट में ऊंचा कद रखने वाले खिलाड़ी हैं. उनके साथ भी परेशानी यही है कि जिस तरह कुंबले को कोचिंग का तजुर्बा नहीं था वैसे ही उन्हें भी कोचिंग का तजुर्बा नहीं हैं. 


दो लाइन के अपने दिलचस्प ‘सीवी’ को लेकर भी वो चर्चा में रहे. अब स्थिति ये है अगर कुंबले को ही कोच बनाए रखा जाता है तो निश्चित तौर पर सहवाग को मायूसी हाथ लगेगी. इन सारी स्थितियों से बचने का एक तरीका था- संयम. बीसीसीआई ने जिस तरह का ‘डिनायल मोड’ (हर बात को मना करने की रणनीति) अपनाया उससे बेहतर होता कि अनिल कुंबले और विराट कोहली से बात कर ली जाती, दोनों के विचार, दोनों की सोच को समझ लिया गया होता उसके बाद कोच की खोज शुरू की गई होती.


आपको याद दिला दें कि चैंपियंस ट्रॉफी के लिए लंदन पहुंचने के बाद इस तरह की खबरें आई थीं कि कोच कुंबले और कप्तान कोहली में कुछ बातों को लेकर मतभेद हैं. इसी दौरान बीसीसीआई ने नए कोच के लिए विज्ञापन निकाल दिया. इस विज्ञापन की ‘टाइमिंग’ ने आग में घी डालने का काम कर दिया. जिसके बाद बोर्ड को ये भी कहना पड़ा कि विवाद की खबरें कोरी अफवाह हैं.



सचिन-सौरव-लक्ष्मण का रोल होगा अहम


मौजूदा स्थिति से बगैर किसी नए विवाद के बाहर निकलने का रास्ता इन्हीं तीन दिग्गज खिलाड़ियों के पास है. इन तीनों खिलाड़ियों का कद, इनका अनुभव, इनकी साख ऐसी है कि अगर इन्हें कुंबले को मनाना होगा तो ये कुंबले को मना सकते हैं. अगर इन्हें सहवाग को समझाना होगा तो ये उन्हें भी समझा सकते हैं.


ये मानना नामुमकिन है कि सहवाग ने बगैर किसी से सलाह मश्विरा किए ही कोच के लिए आवेदन भर दिया होगा. बाकि दावेदारों को छोड़ भी दिया जाए तो कोई भी फैसला लेने से पहले उन्हें भी इस पूरे मामले को लेकर भरोसे में लेना होगा.


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