पिछले कुछ घंटों से खेल की दुनिया में चेन्नई सुपरकिंग्स की टीम छाई हुई है. जिस अंदाज में उन्होंने आईपीएल जीता वो तारीफ और बधाई के हकदार भी हैं. जिस सनराइजर्स हैदराबाद की टीम ने बड़ी बड़ी टीमों को अपनी गेंदबाजी के दम पर धूल चटाई थी उसे चेन्नई ने पूरे टूर्नामेंट में एक दो बार नहीं बल्कि चार बार हराया.
फाइनल में तो चेन्नई ने बिल्कुल एकतरफा मैच जीता. जिस अंदाज में चेन्नई ने लक्ष्य का पीछा किया उसे देखकर तो कहा जा सकता है कि चेन्नई को उस दिन 200 से भी ज्यादा रन ‘चेज’ करने होते तो वो कर लेते. खैर, इस जीत के बाद अब जीत का सेहरा किसके सर बंधना चाहिए? निश्चित तौर पर शेन वॉटसन ने जिस अंदाज में फाइनल में बल्लेबाजी की उनका योगदान नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. लेकिन असल तारीफ धोनी की हो रही है. वो इसलिए क्योंकि धोनी की टीम चेन्नई सुपरकिंग्स दो साल के बैन के बाद आईपीएल में लौटी थी.
आपको याद होगा कि राजस्थान रॉयल्स और चेन्नई सुपरकिंग्स पर आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी के खुलासे के बाद दो साल का बैन लगा दिया गया था. बैन से वापसी के बाद राजस्थान रॉयल्स की टीम ने भी अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन वो वैसा कमाल नहीं कर पाई जैसा धोनी की कप्तानी में चेन्नई सुपरकिंग्स ने किया. इस खिताब के साथ ही धोनी ने अपनी टीम को वो साख भी वापस दिलाई जो कहीं ना कहीं बैन के बाद धूमिल हुई थी.
इतना आसान नहीं होता आईपीएल में टीम बनाना
आईपीएल के फॉर्मेट से हम सभी वाकिफ हैं. अलग अलग देशों के खिलाड़ी एकसाथ खेलते हैं. उन खिलाड़ियों में आपसी सामंजस्य बनाना और उन्हें सही रोल देना भी अपने आप में ‘चैलेंजिंग’ होता है. यही वजह है कि रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर या दिल्ली डेयरजडेविल्स की टीम अच्छे खिलाड़ियों के होने के बाद भी सीजन में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई. आधा सीजन तो सही टीम कॉम्बिनेशन बनाने में निकल जाता है. जब तक सही टीम कॉम्बिनेशन बनता है तब तक प्लेऑफ की लडाई शुरू हो चुकी होती है. उसके बाद हर मैच में एक खास किस्म का तनाव होता है.
इसके अलावा कई टीमें शुरूआत अच्छी करने के बाद भटक जाती हैं. क्योंकि उनका टीम मैनेजमेंट उन्हें सही तरीके से ‘मॉटिवेट’ नहीं कर पाता है. इस सीजन में किंग्स इलेवन पंजाब और राजस्थान रॉयल्स के साथ ऐसा ही हुआ. बतौर कप्तान आर अश्विन और अजिंक्य रहाणे ने शुरूआत तो अच्छी की लेकिन बाद में वो एक के बाद चूक करते चले गए. कभी प्लेइंग 11 चुनने में गड़बड़ी की तो कभी जरूरत से ज्यादा प्रयोग कर दिए. लिहाजा दोनों ही टीमों को प्लेऑफ खेलना नसीब नहीं हुआ.
आईपीएल में कई बार दूसरी टीमों के बड़े स्टार खिलाड़ियों को ‘हैंडल’ करना भी एक बड़ी चुनौती बनता है. धोनी इन्हीं सारी बातों में माहिर हैं. उन्हें टीम को सही तरीके से ‘हैंडल’ करना आता है. वो सर्कस के रिंगमास्टर की तरह सबको इशारों पर नहीं नचाते बल्कि सभी खिलाड़ियों को उनका रोल बता देते हैं और फिर उन्हें उस रोल को पूरा करने के लिए प्रेरित करते हैं. वो अपने प्रदर्शन से खिलाड़ियों को उदाहरण देते हैं.
चेन्नई के लिए क्यों जरूरी थी ये जीत
एक टीम के तौर पर चेन्नई के लिए और एक कप्तान के तौर पर धोनी के लिए ये जीत बहुत जरूरी थी. आईपीएल में धोनी की कप्तानी और चेन्नई के दबदबे के लिए ये जरूरी था. एक पल के लिए सोच कर देखिए कि धोनी आईपीएल के इकलौते ऐसे कप्तान हैं जो पहले सीजन से लेकर अब तक अपनी टीम की कमाल संभाले हुए हैं.
ये भी मत भूलिए कि अब तक खेले गए 11 सीजन में से जिन 9 सीजन में चेन्नई की टीम खेली है उसमें से सात बार उन्होंने फाइनल तक का सफर तय किया है और तीन बार चैंपियन बनी है. इस पूरे कमाल में धोनी की कप्तानी का जिक्र जरूरी है. ये ठीक वैसे ही हुआ है कि जब स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी के गरम मामले के बीच धोनी बगैर कुछ कहे इंग्लैंड चैपियंस ट्रॉफी खेलने चले गए थे तब उनकी बहुत आलोचना हुई थी. उस आलोचना को भी उन्होंने चैंपियन बनकर ही खत्म किया था.