नई दिल्ली: लोढा समिति ने प्रशासनिक सुधारों को लेकर पूछे गए सवालों पर सात बिंदू बोर्ड के लिए अनिवार्य बनाते हुए स्पष्ट किया कि बीसीसीआई के बख्रास्त सचिव अजय शिर्के बीसीसीआई की बैठकों में महाराष्ट्र क्रिकेट संघ के प्रतिनिधि नहीं हो सकते.



 



बंगाल क्रिकेट संघ(कैब) के अध्यक्ष सौरव गांगुली के लिए भी खुश होने वाली खबर नहीं है क्योंकि जून 2017 के बाद उन्हें तीन साल के अनिवार्य ब्रेक से गुजरना होगा क्योंकि राज्य संघ में सचिव और अध्यक्ष के रूप में उनके तीन साल पूरे हो जाएंगे.



 



साथ ही स्पष्ट किया गया कि क्रिकेट प्रशासन में कार्यकाल(राज्य और बीसीसीआई) संचित रूप से नौ साल का होगा और 18 साल का नहीं जैसा कि पहले कहा गया था.



 



कैब के कोषाध्यक्ष विश्वरूप डे का प्रशासनिक करियर भी खत्म हो गया है क्योंकि वह सहायक सचिव के जिस पद पर दो साल के लिए रहे थे उसे पदाधिकारी का पद माना गया है जिससे राज्य संघ में उनका संचित कार्यकाल 10 साल का हो जाता है.



 



लोढा समिति से जो सवाल सबसे अधिक बार पूछा गया वह शिर्के के प्रवेश से संबंधित था. सवाल इस प्रकार है कि क्या कोई डिस्क्वालीफाई किया गया पदाधिकारी सदस्य संघ या बीसीसीआई के प्रतिनिधि या नामित के रूप में काम कर सकता है. क्या ऐसा व्यक्ति संघ या बीसीसीआई की ओर से कोई अन्य भूमिका निभा सकता है.



 



सवाल के जवाब में कहा गया कि उच्चतम न्यायालय के आदेश को देखते हुए कोई भी डिस्क्वालीफाई पदाधिकारी क्रिकेट प्रशासन से नहीं जुड़ सकता. वह सदस्य संघ या बीसीसीआई का प्रतिनिधि या नामित होने से भी डिस्क्वालीफाई है और संघ या बीसीसीआई की ओर से कोई अन्य भूमिका नहीं निभा सकता. वह संघ के साथ संरक्षक या सलाहकार की भूमिका भी नहीं निभा सकता और किसी समिति या परिषद का सदस्य नहीं बन सकता.



 



सातवां और सबसे अहम सवाल प्रत्यक्ष रूप से गांगुली से जुड़ा था जिनके नाम की अध्यक्ष पद के लिए अटकलें लगाई जा रही हैं. लेकिन अगर लोढा समिति के जवाब को सही तरह से समझा जाए तो वह बीसीसीआई अध्यक्ष बन सकते हैं लेकिन सिर्फ कुछ महीने के लिए. सवाल नंबर सात: अगर कोई व्यक्ति किसी राज्य-सदस्य संघ में दो साल से पदाधिकारी है तो क्या वह तीन साल के ब्रेक का नियम लागू हुए बिना अगले चुनाव में उम्मीदवारी का पात्र है. अगर हां तो उसका कार्यकाल कितना होगा.



 



जवाब: अगर चुनाव के समय मौजूदा पदाधिकारी ने तीन साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है तो वह चुनाव लड़ने का पात्र है, हालांकि उसका कार्यकाल पूरा नहीं होगा और लगातार तीन साल का समय पूरा होते ही उसे तुरंत पद छोड़ना होगा. संभावित गलत इस्तेमाल से बचने के लिए ऐसा किया गया है. उदाहरण के लिए अगर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं होगा तो कोई पदाधिकारी दो साल और नौ महीने के बाद इस्तीफा दे सकता है और तीन महीने बाद अगले चुनाव में इस आधार पर पात्रता का दावा कर सकता है कि नया कार्यकाल शुरू होगा.



 



विश्वरूप डे का दावा था कि सहायक सचिव उन्हें नियुक्त किया गया था और उन्होंने चुनाव में हिस्सा नहीं लिया था लेकिन इसे खारिज करते हुए कहा किया कि कैब के संविधान के अनुसार यह पदाधिकारी का पद है.



 



सवाल नंबर चार: किसी राज्य.सदस्य संघ में अगर कोई व्यक्ति सहायक सचिव, सहायक कोषाध्यक्ष, निदेशक या किसी और पदक पर है जिससे रिपोर्ट में ‘पदाधिकारी’ का पद नहीं बताया गया तो क्या इन पदों पर उसके कार्यकाल की गणना नौ साल के कार्यकाल में की जाएगी.



 



जवाब: अगर संविधान.. राज्य या सदस्य संघ के उप नियम पद को पदाधिकारी का पद परिभाषित करते हैं तो इन पदों पर व्यक्ति का कार्यकाल नौ साल के समय की गणना में शामिल किया जाएगा. राज्य संघों में चुनाव से जुड़े मुद्दे पर मिले जवाब से यह स्पष्ट हो गया है कि अगर संघ के खिलाफ कोई मामला लंबित नहीं है तो वह नये सुधारों के अनुसार चुनाव करा सकते हैं.



 



यह सवाल राजस्थान क्रिकेट संघ और हैदराबाद क्रिकेट संघ से जुड़े थे जहां चुनाव होने हैं.



 



एक अन्य सवाल यह था कि क्या आदेश के अनुसार खुद को ढालने के लिए संविधान और उप नियमों में संशोधन के बिना ही सदस्यांे संघों के चुनाव कराए जा सकते हैं या नहीं.



 



जवाब: चुनाव कराने में कोई प्रतिबंध नहीं है :बशर्ते किसी अदालत का कोई आदेश नहीं हो: अगर कोई पहले हुआ चुनाव समिति की रिपोर्ट और उच्चतम न्यायालय के अनुसार नहीं है तो. ऐसी स्थिति में इसे रद्द माना जाएगा और इसकी कोई कानूनी मान्यता नहीं होगी. यह जरूरी है कि ऐसा चुनाव निर्वाचन अधिकारी के निरीक्षण के कराए जाएं जैसा कि सिफारिशों में प्रावधान है.



 



छत्तीसगढ़ राज्य क्रिकेट संघ के अध्यक्ष बलदेव भाटिया को भी अनिवार्य ब्रेक में जाना होगा क्योंकि राज्य संघ की सदस्यता के उनके समय को भी जोड़ा गया है.



 



हालांकि बिहार राज्य इकाई से किसी को भी ब्रेक नहीं लेना होगा क्योंकि उन्हें बीसीसीआई से मान्यता नहीं है. समिति ने कहा कि संघ की सदस्यता के प्रकार और पदाधिकारी की पात्रता में कोई संबंध नहीं है. संघ पूर्ण सदस्य या एफीलिएट ..एसोसिएट सदस्य हो या रहा हो, पदाधिकारी के पूर्ण कार्यकाल की गणना नौ साल के समय में की जाएगी.



 



हालांकि यह ऐसे संघ पर लागू नहीं होगा जो कभी बीसीसीआई का सदस्य नहीं रहा. ऐसी दशा में पदाधिकारी का कार्यकाल उस दिन से गिना जाएगा जिस दिन मान्यता मिलेगी बशर्ते वह किसी अन्य मान्यता प्राप्त संघ में पदाधिकारी नहीं हो.



 



यह भी स्पष्ट किया गया कि राज्य..सदस्य संघ की संचालन परिषद, प्रबंध समिति या कार्यकारी समिति का सदस्य जो कभी पदाधिकारी नहीं रहा वह नौ साल बाद डिस्क्वालीफाई नहीं होगा अगर उपरोक्त पद पदाधिकारी के रूप में परिभिाषित नहीं हैं तो.



 



यह सवाल भी सबसे अधिक बार पूछा गया कि नौ साल के कार्यकाल की गणना कैसे होगी और समिति ने कहा कि राज्य संघ में नौ साल के कार्यकाल का मतलब है कि क्रिकेट प्रशासन में सफर खत्म हो गया. इसी तरह राज्य और बीसीसीआई में भी कुल मिलाकर नौ साल पूरे करने वाला अधिकारी डिस्क्वालीफाई माना जाएगा.