भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व दिग्गज बल्लेबाज वीवीएस लक्ष्मण ने अपनी किताब में दावा किया है कि ग्रेग चैपल कोच के रूप में अपने रुख को लेकर ‘अड़ियल’ थे और उन्हें नहीं पता था कि अंतरराष्ट्रीय टीम को कैसे चलाया जाता है.
लक्ष्मण की आत्मकथा ‘281 एंड बियोंड’ का हाल में विमोचन किया गया जिसमें उन्होंने खुलासा किया है कि ऑस्ट्रेलिया के इस पूर्व कोच के मार्गदर्शन में टीम दो या तीन गुट में बंट गई थी और आपस में विश्वास की कमी थी.
लक्ष्मण ने लिखा, ‘‘कोच के कुछ पसंदीदा खिलाड़ी थे जिनका पूरा ख्याल रखा जाता था जबकि बाकियों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था. टीम हमारी आंखों के सामने ही बंट गई थी.’’
क्रिकेट लेखक आर कौशिक के साथ मिलकर लिखी इस किताब में लक्ष्मण ने कहा, ‘‘ग्रेग का पूरा कार्यकाल ही कड़वाहट का कारण था. उनका रवैया अड़ियल था और लचीलेपन की कमी थी और उन्हें नहीं पता था कि अंतरराष्ट्रीय टीम को कैसे चलाया जाता है. अधिकतर ऐसा लगता था कि वह भूल गए हैं कि वे खिलाड़ी हैं जो खेलते हैं और वे ही स्टार हैं, कोच नहीं.’’
भारतीय टीम के साथ चैपल का विवादास्पद कार्यकाल मई 2005 से अप्रैल 2007 तक रहा.
इस किताब में लक्ष्मण की क्रिकेट यात्रा का जिक्र है. इसमें उनके बचपन के दिनों से लेकर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर, आईपीएल और कमेंटेटर बनने के दौरान के यादगार किस्सों को सहेजा गया है.
इस 44 साल के पूर्व क्रिकेटर ने अपनी किताब में कई बिंदुओं का जिक्र किया है जिसमें ड्रेसिंग रूम के भावनात्मक पल, दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के साथ और खिलाफ खेलना, विभिन्न प्रारूपों और पिचों पर बल्लेबाजी, कोच जान राइट की सीख और उनके उत्तराधिकारी चैपल के साथ प्रतिकूल समय शामिल है.
लक्ष्मण ने कहा, ‘‘ग्रेग चैपल काफी ख्याति और समर्थन के साथ भारत आए थे. उन्होंने टीम को तोड़ दिया, मेरे करियर के सबसे बुरे चरण में उनकी बड़ी भूमिका रही. मैदान पर नतीजों से भले ही सुझाव जाए कि उनकी प्रणाली ने कुछ हद तक काम किया लेकिन उन नतीजों का हमारे कोच से कुछ लेना देना नहीं था.’’
उन्होंने कहा, ‘‘वह अशिष्ट और कर्कश थे, वह मानसिकता से अड़ियल थे. उनके पास मानव प्रबंधन का कोई कौशल नहीं था. पहले ही मतभेद का सामना कर रही टीम में उन्होंने जल्द ही असंतोष के बीज बोए... मैं हमेशा बल्लेबाज ग्रेग चैपल का सम्मान करता रहूंगा. दुर्भाग्य से मैं ग्रेग चैपल कोच के बारे में ऐसा नहीं कह सकता.’’
लक्ष्मण ने अपने बचपन के दिनों के क्रिकेट की बात की और यह भी बताया कि डॉक्टर की जगह क्रिकेटर बनने का विकल्प चुनना कितना मुश्किल था.
उन्होंने इस किताब में सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, मोहम्मद अजहरूद्दीन, वीरेंद्र सहवाग और राहुल द्रविड़ के साथ अपनी दोस्ती का जिक्र करने के अलावा ईडन गार्डन्स से अपने विशेष लगाव पर भी रोशनी डाली जहां उन्होंने 2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 281 रन की यादगार पारी खेली थी.
इस बल्लेबाज ने 2012 में अचानक संन्यास लेने का भी जिक्र किया जिसने उस समय काफी सुर्खियां बटोरी थी.
लक्ष्मण ने 18 अगस्त 2012 को संन्यास लेने का फैसला किया था जबकि इसके एक हफ्ते के भीतर उन्हें न्यूजीलैंड के खिलाफ हैदराबाद में अपने घरेलू दर्शकों के समक्ष खेलना था.
संन्यास की घोषणा के बाद चर्चा होने लगी थी कि पूर्व भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धेानी के साथ ‘मतभेद’ के कारण उन्होंने यह फैसला करना पड़ा. लक्ष्मण ने हालांकि इसे खारिज कर दिया और अपने क्रिकेट करियर का पहला और एकमात्र विवाद करार दिया.
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने बाहरी कारणों से संन्यास नहीं लिया और मुझे संन्यास लेने के लिए बाध्य नहीं किया गया.’’
लक्ष्मण ने कहा, ‘‘मैंने अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुना और इसने मुझे निराश नहीं किया. मेरा पूरा जीवन, मेरे कार्य इस आवाज पर निर्भर रहे लेकिन इसमें मेरे करीबियों के सुझाव की भी भूमिका रही. उस समय मैंने अधिक परिपक्वता दिखाते हुए सिर्फ इसी को सुना, अपने पिता तक ही सलाह को महत्व नहीं दिया.’’
लक्ष्मण ने बताया कि मीडिया को अपने संन्यास की जानकारी देने से पहले उन्होंने कई भारतीय क्रिकेटरों से बात की जिसमें टीम के उनके साथी जहीर खान और तेंदुलकर भी शामिल रहे.
उन्होंने कहा, ‘‘सचिन एनसीए में थे और उन्होंने मुझे मनाने का प्रयास किया कि मैं प्रेस कांफ्रेंस टाल दूं. मैंने सचिन की सलाह नकार दी लेकिन मैंने उस समय सम्मान के साथ उन्हें कहा कि मैं इस बार उनकी बात नहीं मान सकता. मैंने एक घंटे की बातचीत के दौरान उन्हें बार बार कहा कि मैं अपना मन बना चुका हूं.’’