साल 2001 में बीसीसीआई की तरफ से खिलाड़ियों को सालाना कॉन्ट्रैक्ट नही दिया जाता था. मैच फीस भी आज की तुलना में खिलाड़ियों को काफी कम ही मिलती थी. उस वक्त आईपीएल को लेकर बोर्ड में सोच विचार भी शुरू नहीं हुआ था. हरभजन सिंह नाम के एक स्पिनर तब अपनी प्रतिभा तो ज़रूर दिखे रहे थे, लेकिन भारतीय टीम में उन्हें ज़्यादा मौका नहीं दिए जा रहे थे. पापा के गुज़र जाने के बाद परिवार का सारे दायित्व भज्जी पर था. ऐसे में हरभजन सिंह ये सोच रहे थे कि वो कनाडा चले जाएंगे और वहां जाकर कुछ छोटा मोटा काम कर लेंगे ताकि परिवार का गुजरा बेहतर तरीके से हो सके.
ये कहानी आज आपको इसलिए बता रहे है क्योंकि आज भारत के महान ऑफ स्पिनर 40 साल के हो गए हैं. चलिए कहानी में वापस लौटते है. साल 2001 में ऑस्ट्रेलियाई टीम भारत के खिलाफ सीरीज खेलने आई. पूरी दुनिया मे अपना झंडा लहराने के बाद स्टीव वॉ की टीम की नज़र भारत मे सीरीज जीतने पर थीं. उनकी तरफ से कहा गया था कि ये सीरीज ऑस्ट्रेलिया के लिए 'फाइनल फ्रंटियर' है.
टीम में कौन नहीं था. स्टीव वॉ, एडाम गिलक्रिस्ट, शेन वार्न, ग्लेन मैक्ग्रा समेत तमाम दिग्गज खिलाड़ी. पहला टेस्ट मैच वानखेड़े स्टेडियम पर खेला गया, जहां हरभजन सिंह ने फर्स्ट इनिंग्स में 4 विकेट तो ज़रूर लिए थे, लेकिन भारत मैच 10 विकेट से हार गया था.
कोलकाता टेस्ट ने बदली किस्मत
अगला टेस्ट मैच कोलकाता के एतिहासिक ईडन गार्डन पर था. भज्जी को मैच से पहले लग रहा था कि ये उनके करियर का आखिरी मैच भी हो सकता है. ईडन गार्डन में ही ऑस्ट्रेलिया की पहली पारी में हरभजन सिंह पोंटिंग, गिलक्रिस्ट और वार्न को लगातार तीन गेंदों में पवेलियन भेजकर इतिहास रच दिया. इसके साथ ही हरभजन सिंह टेस्ट क्रिकेट में हैट्रिक लेने वाले भारत के पहले गेंदबाज़ बन गए.
लेकिन इसके बावजूद ऑस्ट्रेलिया ने पहली पारी में विशाल स्कोर खड़ा किया और भारत को 171 रनों पर ऑलआउट करके फॉलोअन के लिए भेजा. दूसरी पारी में राहुल द्रविड़ और लक्ष्मण ने ऐतिहासिक पारी खेली और टेस्ट मैच जीतने के लिए भारत के सामने सिर्फ आखरी दिन के लगभग 70 ओवर का खेल बाकी था.
कप्तान सौरव गांगुली ने हरभजन सिंह से 30 ओवर गेंदबाज़ी करवाई. भज्जी दूसरी पारी में 6 विकेट लिए और मैच में कुल 13 विकेट लिए. इसके साथ ही भारत को अपना एक नया मैच विनर खिलाड़ी मिल गया. फिर हरभजन सिंह बहुत बार घूमने के लिए कनाडा गए, लेकिन कोलकाता टेस्ट मैच के बाद छोटी मोटी जॉब ढूंढने के लिए कनाडा जाने का प्लान कभी उनके मन में नहीं आया.
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