Ranji Trophy History: रणजी ट्रॉफी (Ranji Trophy) पहली बार साल 1934-35 में खेला गया था. पिछले तकरीबन 88 साल से इस घरेलू टूर्नामेंट का आयोजन होता रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं इस टूर्नामेंट का नाम रणजी ट्रॉफी कैसे पड़ा? दरअसल, रणजी ट्रॉफी का नाम अंग्रेजों के अधीन रहे भारत में नवानगर (वर्तमान में जामनगर) स्टेट के महाराजा रणजीत सिंह के नाम पर रखा गया है. वह 1907 से 1933 तक इस स्टेट के महाराजा रहे. इससे पहले उन्होंने क्रिकेट में खूब नाम कमाया. वह भारत के पहले क्रिकेटर थे, जिन्हें इंग्लैंड की क्रिकेट टीम से खेलने का मौका मिला था.
कैसे शुरू हुआ रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट?
महाराजा रणजीत सिंह ने इंग्लैंड के लिए 1896 से 1902 के बीच 15 टेस्ट मैच खेले. इंग्लैंड के लिए उन्होंने 989 रन बनाए, जबकि एवरेज 45 की रही. दरअसल, उस वक्त भारत की क्रिकेट टीम नहीं हुआ करती थी, लेकिन रणजीत सिंह ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के लिए फर्स्ट क्लास क्रिकेट और ससेक्स के लिए काउंटी क्रिकेट खेलना जारी रखा. बहरहाल, महाराजा रणजीत सिंह की साल 1933 में मृत्यु हो गई. जिसके बाद उनके नाम पर भारत में एक घरेलू टूर्नामेंट शुरू करने की योजना बनने लगी.
रणजी ट्रॉफी की सबसे कामयाब टीम है मुंबई
बहरहाल, साल इस विचार ने साल 1934-35 में ने मूर्त रूप लिया. महाराजा रणजीत सिंह के नाम पर घरेलू टूर्नामेंट शुरू किया, जिसका नाम रणजी ट्रॉफी था. वहीं, इस टूर्नामेंट का पहला मैच 4 नवंबर 1934 को खेला गया. इस मैच में मद्रास और मैसूर की टीमें आमने-सामने थी. मद्रास और मैसूर के बीच यह मैच चेपक मैदान पर खेला गया था. इस टूर्नामेंट के लिए पटियाला के महाराज की ओर से ट्रॉफी दान में दी गई थी. बताते चलें कि मुंबई की टीम अब तक इस घरेलू टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा बार विजेता बनी है. मुंबई ने कुल 41 रणजी ट्रॉफी जीती हैं. इस टूर्नामेंट की दूसरी सबसे सफल टीम कर्नाटक रही है, जिसने 8 बार यह खिताब अपने नाम किया है.
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