(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
IND vs AUS: एडीलेड में 36 रन पर ऑल आउट होने के बाद कैसे अजिंक्य रहाणे ने बदल दी इंडिया की किस्मत
बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी के पहले टेस्ट में भारतीय टीम को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन इसके बाद टीम इंडिया ने शानदार वापसी की और 2-1 से सीरीज जीती.
India vs Australia: भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी का पहला टेस्ट एडिलेड में पिंक बॉल से खेला गया था. इस टेस्ट की दूसरी पारी में भारतीय टीम सिर्फ 36 रनों पर ऑल आउट हो गई थी. ऑस्ट्रेलिया ने इस मैच को तीसरे ही दिन आठ विकेट से जीतकर सीरीज में 0-1 के बढ़त बना ली थी. भारत की इस हार के बाद सभी ने टीम इंडिया को सिरे से नकार दिया था. इस टेस्ट के बाद नियमित कप्तान विराट कोहली अपने पहले बच्चे के जन्म के कारण पैटरनिटी लीव लेकर स्वदेश लौट आए. कोहली के आने के बाद ऐसा लग रहा था कि मानो भारतीय टीम इस सीरीज में एक भी टेस्ट नहीं जीत पाएगी.
पहले टेस्ट के बाद टीम का मनोबल टूट चुका था. ऐसे समय में टीम की बागडोर शांत रहने वाले अजिंक्य रहाणे को मिली. रहाणे नियमित कप्तान विराट कोहली से बिल्कुल अलग शैली के हैं. इन दोनों का व्यक्तित्व भी एक-दूसरे से काफी अलग है. लेकिन शांत रहने वाले रहाणे ने शानदार तरीके से टीम का नेतृत्व किया.
मेलबर्न में रहाणे ने दिखाया जलवा
पहला टेस्ट हारने के बाद टीम इंडिया को इस सीरीज में एक के बाद एक कई झटके लगे. कोहली के जाने के बाद अनुभवी तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी भी चोट के कारण टेस्ट सीरीज से बाहर हो गए. पृथ्वी शॉ भी फॉर्म में नहीं थे. लेकिन रहाणे को अपना युवा खिलाड़ियों पर पूरा भरोसा था. उन्होंने दूसरे टेस्ट में टीम में कुछ जरूरी बदलाव किए. पृथ्वी शॉ की जगह शुभमन गिल को पारी की शुरुआत करने की जिम्मेदारी दी. इसके अलावा रिद्धिमान साहा की जगह विकेटकीपिंग की जिम्मेदारी ऋषभ पंत को सौंपी. वहीं शमी की जगह मोहम्मद सिराज को टेस्ट डेब्यू का मौका मिला.
रहाणे ने मेलबर्न में शानदार शतक लगाया और पहली पारी में ही टीम ने अपने इरादे दिखा दिए. रहाणे की शानदार कप्तानी और भारतीय गेंदबाजों के साहस के दम पर टीम इंडिया ने दूसरा टेस्ट आठ विकेट से जीता और सीरीज 1-1 से बराबर की. इस मैच में सभी युवा खिलाड़ियों ने अपनी छाप छोड़ी और हर कोई रहाणे की कप्तानी का मुरीद हो गया.
यह कहना गलत नहीं होगा कि रहाणे ने इस मैच में बतौर कप्तान कई सटीक फैसले लिए. चाहे सिराज को नई गेंद से दूर रखना हो या अश्विन पर लगातार भरोसा दिखाना. पंत को बल्लेबाज़ी के लिए ऊपर भेजना हो या फिर गिल पर भरोसा दिखाना. इसके अलावा फील्डिंग पोज़ीशनिंग में भी रहाणे अव्वल रहे और नतीजन सभी ने उनकी कप्तानी की खूब तारीफ की.
सिडनी में भी रहाणे ने पेश की मिसाल
1-1 से सीरीज बराबर होने के बाद टीम इंडिया को एक और बड़ा झटका लगा. दूसरे टेस्ट में उमेश यादव भी चोटिल हो गए. तीसरे टेस्ट में उनकी जगह नवदीप सैनी को मौका दिया गया. इसके अलावा इस मैच में भारतीय खिलाड़ियों को नस्लीय टिप्पणी का भी सामना करना पड़ा. लेकिन रहाणे अपने लक्ष्य से नहीं भटके. हालांकि, इसी मैच में टीम के सबसे अहम खिलाड़ी रविंद्र जेडजा चोटिल हो गए. टीम इससे उबर पाती कि हनुमा विहारी के भी चोट लग गई. अश्विन के भी पीठ में खिचांव किया और पंत के कलाई में चोट लग गई.
ऐसा लगा रहा था कि मानो सिडनी टेस्ट में भारत बुरी तरह हार जाएगा. लेकिन रहाणे के जख्मी शेरों ने सिडनी में कमाल कर दिया और टेस्ट ड्रॉ करा लिया. रहाणे भले ही इस मैच में बल्ले से कोई कमाल नहीं कर सके. लेकिन अपने युवा खिलाड़ियों पर उनके अटूट विश्वास ने टीम को एकजुट बनाए रखा और विषम परिस्थितियों में टीम ने सिडनी टेस्ट ड्रॉ कराकर ऑस्ट्रेलिया के हौंसले पस्त कर दिए.
गाबा में तोड़ा ऑस्ट्रेलिया का गुरूर
तीसरे टेस्ट के खत्म होने के बाद भारत के 10 खिलाड़ी चोटिल हो चुके थे. स्थिति यह थी कि रहाणे के लिए प्लेइंग इलेवन का चयन करना भी आसान नहीं था. आर अश्विन, जसप्रीत बुमराह, रविंद्र जडेजा और हनुमा विहारी चोट के कारण इस टेस्ट से बाहर हो गए थे. लेकिन रहाणे ने बेहतरीन फैसला लिया और टीम में वॉशिंगटन सुंदर, शार्दुल ठाकुर और टी नटराजन को जगह दी.
इन सभी ने कप्तान को गलत नहीं साबित किया. गाबा में पांचवें दिन भारत को जीत के लिए 324 रन बनाने थे. सभी को लग रहा था कि भारत ड्रॉ के लिए खेलेगा, क्योंकि उसका काम ड्रॉ से भी हो जाता. लेकिन रहाणे ने सभी क्रिकेट पंडितों को गलत साबित कर दिया. उन्होंने सुबह ही टीम मीटिंग में खिलाड़ियों से अपने इरादे जाहिर कर दिए और अंत तक लड़ने का जज्बा दिखाने को कहा. यह रहाणे के विश्वास, धैर्य और साहस का ही नतीजा था कि भारत ने गाबा का किला फतह किया और यहां अपना पहला टेस्ट जीतकर 2-1 से सीरीज अपने नाम की.
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