अऩुराग श्रीवास्तवा
मुरली विजय ने श्रीलंका के खिलाफ तीसरे टेस्ट में फिर शतक जड़ दिया. अब मुरली विजय 155 रन बनाकर आउट हुए और जो श्रीलंकाई टीम मैदान में थी, उसके सारे बल्लेबाजों के लिए एक पूरी की पूरी पारी का स्कोर था ये. किसी भी बल्लेबाजों का शतक उनके फॉर्म और फिटनेस और कमाल का सबूत होता है, कप्तान के लिए ये मौका बेटी के ब्याह जैसा होता है. सकून वाला, खुशीवाला, मजबूती वाला और जितने भी वाले होते हैं वो सब वाला. लेकिन मुरली विजय का ये शतक कप्तान विराट कोहली के लिए दूसरा बैड लक है. पहला बैडलक नागपुर में विजय का शतक था और दिल्ली वाला तो और भी बड़ा बैडलक है.
चुस्ती फुर्ती गायब
मुरली विजय भारतीय पिचों पर चैम्पियन बल्लेबाज़ हैं लेकिन तेज़ और बाउंसी पिचों पर उनकी प्रतिभा, शतक लगाने की क्षमता सब संदेह के घेरे में है. कारण जानिए. मुरली विजय का दिल्ली में स्टंप आउट होने का विजुअल बार-बार देखिए. संदाकन की गुगली को वो हाथ देखकर पढ़ नहीं पाए, इसमें मुरली विजय का कोई दोष नहीं क्योंकि वो गेंद की पिच देखकर खेलते हैं ना कि गेंदबाज़ का हाथ देखकर. हर बल्लेबाज की स्टाइल अलग अलग होती है. लेकिन गेंद उनके बल्ले से निकलकर विकेटकीपर के दस्तानों में जाने और फिर स्टंप की गिल्लियां बिखेरने में लगभग डेढ सेकंड का समय लेती है. और इतनी देरी में मुरली विजय अपना पैर आधा इंच अंदर नहीं कर सके.
फिर कहता हूं मुरली विजय चैम्पियन बल्लेबाज़ हैं लेकिन सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप की स्लो पिचों पर. क्रीज पर जो सुस्ती मुरली विजय के पैर में दिखी वही तेज और बाउंसी पिचों पर जानलेवा हो जाती है. ऊंचाई वाली गेंद से निपटने के लिए बल्लेबाजों के कदमों को बेहद चपल होना होता है. अंग्रेजी में जो कहते हैं ना ऑन द टोज़... वही वाला. मुरली विजय ऑन द स्पॉट तो हैं लेकिन ऑन द टोज़ नहीं हैं. इसका एक बड़ा कारण ये भी है मुरली विजय की अब उम्र हो चुकी है. मानिए या मत मानिए हर बल्लेबाज़ सचिन तेंडुलकर नहीं होता. भले ही फिरोजशाह कोटला में विजय आउट करने वाली गेंद को बल्ले से नहीं छू पाए लेकिन जीवन के 34वें सावन को वो बहुत जल्दी छू लेंगे. सिर्फ एक ही फॉर्मेट खेलते हैं. चोट से वापसी कर रहे हैं. थोड़ा उम्र का असर, थोड़ी कदमों की सुस्ती. इतने में तो क्रिकेट में बड़े बड़े बल्लेबाजों का काम तमाम हो जाता है.
विराट के लिए क्यों हैं बैडलक ?
विराट भारतीय क्रिकेट की परंपरा को बदलने की जितनी भी कोशिशें कर रहे हैं, उसमें से एक ऐसी है जिसे वो चाहकर भी आसानी से नहीं बदल पाएंगे और वो है आंकड़े. जो बल्लेबाज़ दो लगातार टेस्ट में शतक जड़ रहा हो उसे साउथ अफ्रीका में पहले टेस्ट के लिए प्लेइंग इलेवन में नजरअंदाज करना विराट जैसे अक्खड़ कप्तान के लिए भी बेहद मुश्किल होगा. देखिए इस समय भारतीय क्रिकेट में जरुरत है ऐसे लोगों की जो लड़े, जो हर हालात में लड़े. मुरली विजय की बैटिंग ही शांत नहीं है बल्कि कई बार परिस्थितियों के सामने वो लड़ना छोड़ देते हैं. वो जल्दी संतुष्ट हो जाते हैं.
अलग-अलग देश के लिए अलग-अलग क्रिकेटर
जिस तेज़ी से क्रिकेट बदल रही है और उससे भी तेजी से विराट कोहली भारतीय क्रिकेट को बदल रहे हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या वक्त नहीं आ गया जब भारतीय उपमहाद्वीप के लिए टीम इंडिया एक अलग सेट रखे क्रिकेटर्स का और विदेशी पिचों पर अलग. ये मामला दूर की कौड़ी लग रहा है लेकिन आने वाले समय में होगा यही.
twitter- @anuragashk