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#BirthdaySpecial: 12 साल की उम्र में छोड़ा घर, गुरुद्वारे में रहे, लेकिन नहीं छोड़ा क्रिकेट, ऐसी है ऋषभ पंत के संघर्ष की कहानी

भारतीय क्रिकेट टीम के विकेटकीपर बल्लेबाज़ ऋषभ पंत के संघर्ष की कहानी बेहद प्रेरणादायी है. जानिए कैसे उत्तराखंड का यह साधारण सा लड़का टीम इंडिया में एमएस धोनी का उत्तराधिकारी बना.

Happy Birthday Rishabh Pant: भारतीय क्रिकेट टीम के विकेटकीपर बल्लेबाज़ ऋषभ पंत आज अपना 24वां जन्मदिन मना रहे हैं. 01 फरवरी, 2017 को इंटरनेशनल क्रिकेट में कदम रखने वाले ऋषभ पंत ने बहुत कम समय में ही क्रिकेट जगत में एक खास मुकाम हासिल कर लिया है. 4 अक्टूबर, 1997 को उत्तराखंड के रुड़की में जन्में ऋषभ पंत के लिए लोग अक्सर कहते हैं कि उन्हें वक्त से पहले बड़ा नाम और शोहरत मिल गई, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन्होंने इसके लिए कितनी कड़ी मेहनत की है. आज पंत के जन्मदिन पर हम आपको बताते हैं उनके संघर्ष की पूरी कहानी.

क्रिकेटर बनने के लिए 12 साल की उम्र में छोड़ना पड़ा घर

हम सभी बचपन में सपने देखते हैं और यह ठानते हैं कि बड़े होकर हमें ये बनना है, लेकिन ऐसे कुछ ही लोग होते हैं, जो उस सपने को हकीकत में बदल पाते हैं. पंत उन्हीं में से एक हैं. उत्तराखंड के एक छोटे से शहर में जन्में पंत के लिए क्रिकेटर बनने के अपने सपने को हकीकत में बदलना बिल्कुल भी आसान नहीं था. जिस समय वह क्रिकेट सीख रहे थे, उस वक्त उत्तराखंड में इस खेल का कोई भविष्य नहीं था. ऐसे में क्रिकेट के गुर सीखने के लिए पंत को महज़ 12 साल की उम्र में अपना घर छोड़ना पड़ा. वह उत्तराखंड से दिल्ली आ गए. 

क्रिकेट के लिए पिता से भी दूर हो गए पंत

पंत ने जब क्रिकेट में अपना करियर बनाने का फैसला किया तो उन्हें अपने पिता से भी अलग होना पड़ा. वह अपनी मां के साथ दिल्ली आ गए, और उनके पिता उनकी बहन के साथ उत्तराखंड में ही रहे. इतनी कम उम्र में पिता से दूर रहना किसी भी बच्चे के लिए आसान नहीं होता है, लेकिन कुछ कर गुज़रने की पंत की ज़िद ने उन्हें ऐसा करने पर मजबूर कर दिया. 

गुरुद्वारे में रहे और खाया लंगर का खाना

पंत अपनी मां के साथ दिल्ली तो आ गए, लेकिन उनके पास यहां रहने का कोई ठिकाना नहीं था. यहां तक उनके पास खाना खाने के पैसे भी नहीं थे. लेकिन एक चीज़ थी, वो था एक मज़बूत इरादा. इरादा ऐसा जो लोहे को भी मात दे दे. पंत हर हाल में अपने सपने को हकीकत में बदलना चाहते थे. इसलिए जब उन्हें कहीं आसरा नहीं मिला तो उन्होंने मोतीबाग के गुरुद्वारे में रहने का फैसला किया. उनकी मां गुरुद्वारे में सेवा करती और दोनों लंगर का ही खाना खाते. 

लंगर का खाना खाकर प्रैक्टिस करने जाते थे पंत, लेकिन नहीं मिल रही थी सफलता 

पंत कई महीनों तक अपनी मां के साथ मोतीबाग के गुरुद्वारे में रहे. वह रोज़ यहीं से लंगर का खाना खाकर प्रैक्टिस के लिए जाया करते थे. वक्त बीतता गया और पंत की ज़िद भी बढ़ती गई, लेकिन संसाधन कम होने की वजह से उन्हें कामयाबी नहीं मिल रही थी. इसके बाद दिल्ली में ही उन्होंने किराए का एक कमरा ले लिया, और दोनों मां बेटे वहां रहने लगे. 

दिल्ली से राजस्थान का रुख किया, लेकिन वहां नहीं मिला सम्मान

पंत में प्रतिभा की कोई कमी नहीं थी, लेकिन फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी. हालांकि, वह डटे रहे और हार नहीं मानी. दिल्ली में कंपटीशन बहुत ज्यादा था तो कोच सिन्हा की सलाह पर वह राजस्थान चले गए. पंत ने राजस्थान में ही अंडर-14 और अंडर-16 स्‍तर के टूर्नामेंट खेले, लेकिन बाहरी होने के कारण एक दिन उन्हें अकादमी से बाहर कर दिया गया. इसके बाद राजस्थान में उनके खेलने की संभावनाएं पूरी तरह से खत्म हो गईं. 

हालांकि, पंत उस समय महिपाल लोमरोर के साथ खूब रन बना रहे थे. महिपाल लोमरोर बाद में राजस्थान के कप्तान बनें और आज राजस्थान रॉयल्स की टीम का हिस्सा हैं. उस समय इन दोनों की जोड़ी को 'जय-वीरु' का नाम मिला था. 

अंडर-19 विश्व कप से सुर्खियों में आए थे पंत

राजस्थान में निराशा हाथ लगने के बाद पंत ने वापस दिल्ली का रुख किया. और यहीं पर घरेलू स्तर की क्रिकेट खेलने लगे. लेकिन कहते हैं न कि मेहनत करने वाले की कभी हार नहीं होती, पंत के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. लगातार अच्छे प्रदर्शन के कारण जल्द ही उन्हें अंडर-19 विश्व कप के लिए भारतीय टीम में जगह मिली और राहुल द्रविड़ के रूप में नया कोच. इस टूर्नामेंट में पंत ने सबसे तेज़ अर्धशतक लगाया और रातों-रात सुर्खियों में आ गए. 

आईपीएल से बदली किस्मत 

अंडर-19 विश्व कप में अपनी विस्फोटक बल्लेबाज़ी से एक अलग पहचान बनाने वाले पंत को 2016 में ही दुनिया की सबसे बड़ी क्रिकेट लीग यानी आईपीएल में खेलने का मौका मिला. दिल्ली डेयरडेविल्स (अब दिल्ली कैपिटल्स) ने उन्हें 1.9 करोड़ रुपये में अपनी टीम में शामिल किया. हालांकि, पंत आईपीएल 2016 में 130.26 के स्ट्राइक रेट से सिर्फ 198 रन ही बना सके. लेकिन इसके बाद उन्होंने डबल मेहनत की, और अगले साल यानी आईपीएल 2017 में 165.61 के स्ट्राइक रेट से 366 रन बना डाले. इस सीज़न उन्होंने बड़े बड़े गेंदबाजों के खिलाफ निडरता के साथ अटैकिंग क्रिकेट खेली और विश्व क्रिकेट में अपने हुनर का लोहा मनवाया. आईपीएल 2018 की नीलामी में दिल्ली ने पंत को 15 करोड़ रुपये में रिटेन किया. 

रणजी ट्रॉफी में लगाई ट्रिपल सेंचुरी और सबसे तेज़ शतक

पंत को लोग अब पहचानने लगे थे, लेकिन वह इतने से कहां खुश होने वाले थे. उन्हें तो भारत के लिए खेलना था. बस इसी ज़िद में उन्होंने 2016-17 के रणजी में महाराष्ट्र के खिलाफ तिहरा शतक लगा दिया. इस सीज़न में पंत ने सिर्फ आठ मैचों में 81 की औसत से 972 रन बनाए. इसके साथ ही झारखंड के खिलाफ उन्होंने सिर्फ 48 गेंदो में शतक लगाया, जो रणजी के इतिहास का सबसे तेज़ शतक है. 

2017 में हुआ पिता का निधन

जब पंत अपने सपने को साकार करने के बेहद करीब थे, तभी उन्हें जिंदगी का सबसे बड़ा झटका लगा. आईपीएल 2017 के दौरान उनके पिता की रुड़की में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. वह फौरन उत्तराखंड के लिए रवाना हुए, लेकिन क्रिकेट के जुनून और अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए पंत सिर्फ दो ही दिन बाद वापस खेलने आ गए और RCB के खिलाफ मैच में 33 गेंदो में शानदार अर्धशतक लगा दिया. 

आज पूरी दुनिया में एक खास पहचान बना चुके हैं पंत

इसके बाद से पंत ने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा. इंग्लैंड के खिलाफ अगस्त, 2018 में उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में अपना डेब्यू किया और फिर वेस्टइंडीज के खिलाफ अक्टूबर, 2018 में वनडे क्रिकेट में कदम रखा. आज महज़ 24 साल की उम्र में पंत विश्व क्रिकेट में एक खास मुकाम हासिल कर चुके हैं. वह तीनों फॉर्मेट में टीम इंडिया का हिस्सा हैं और उन्हें भविष्य के कप्तान के रूप में भी देखा जा रहा है.

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