सौजन्य: IPL (BCCI)



आईपीएल का दसवां सीजन अब खत्म होने को है. रविवार को लीग मैच खत्म हो रहे हैं.  इसके बाद मंगलवार से प्लेऑफ मुकाबले शुरू हो जाएंगे. मुंबई इंडियंस, सनराइजर्स हैदराबाद, कोलकाता नाइट राइडर्स और राइसिंग पुणे सुपरजाइंट्स ये चारों टीमें प्ले-ऑफ्स के लिए क्वालीफाई कर चुकी है.



असल मुसीबत किंग्स इलेवन पंजाब, दिल्ली डेयरडेविल्स, गुजरात लाएंस और रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर की है. इन चारों टीमों ने नीचे की चार पायदान पर जगह बनाई है. इसमें सबसे बड़ा झटका बैंगलोर की टीम के लिए है जो पिछले साल की उपविजेता टीम है.



अब सवाल ये उठेगा कि आखिर पंजाब, दिल्ली, गुजरात और बैंगलोर की टीम से गलती कहां हुई. आईपीएल में खिलाड़ियों पर पैसा बरसता है. जाहिर है उसे अपने प्रदर्शन के दम पर उस पैसे की कीमत भी चुकानी होती है.  यही वजह है कि एक सीजन का ‘हीरो’ कुछ सीजन बाद ‘जीरो’ हो जाता है और टीम में नए ‘हीरो’ पैदा होते हैं. वो कौन सी वजहें हैं जो अब हार के पोस्टमार्टम के बाद धीरे धीरे सामने आएंगी. 



बड़े नाम वाले नहीं बड़े काम वाले खिलाड़ियों की जरूरत 



इस पैमाने पर बैंगलोर की टीम की हालत सबसे ज्यादा खराब रही. बैंगलोर की टीम में विराट कोहली, एबी डीविलियर्स और क्रिस गेल जैसे मौजूदा क्रिकेट के तीन सबसे खतरनाक बल्लेबाज मौजूद थे. जिनके नाम की विश्व-क्रिकेट में तूती बोलती है. बावजूद इसके बैंगलोर की टीम आखिरी पायदान पर रही. कुछ खिलाड़ियों की फिटनेस ने मारा और कुछ खराब गेंदबाजी ने, इसके अलावा बैंगलोर की टीम एक ‘यूनिट’ के तौर पर पूरे सीजन में फ्लॉप रही. 



पंजाब की टीम ने आखिरी के मैचों में रफ्तार पकड़ी लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. हाशिम आमला और ग्लेन मैक्सवेल जैसे अनुभवी विदेशी खिलाड़ियों की मौजूदगी भी पंजाब की टीम को प्ले-ऑफ्स में नहीं ले जा सकी.



दिल्ली डेयरडेविल्स की हालत भी अजीब ही है. दिल्ली की बदकिस्मती देखिए कि इस टीम को आजतक आईपीएल में खिताब जीतने का तो छोड़िए फाइनल में खेलने तक का मौका नहीं मिला. 2013 में दिल्ली की टीम नौवीं, 2014 में आठवी, 2015 में सातवीं और 2016 में छठे नंबर पर रही. इस बार भी दिल्ली की टीम टॉप 4 टीमों में जगह बनाने में कामयाब नहीं हुई. जहीर खान की अगुवाई में पैट कमिंस, अमित मिश्रा जैसे अनुभवी और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी दिल्ली की टीम में शामिल थे लेकिन ‘रिजल्ट’ नहीं दे पाए.



गुजरात लायंस की स्थिति भी अच्छी नहीं रही. इस टीम ने बीच बीच में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन ‘कंसिसटेंसी’ की कमी टीम की सबसे बड़ी कमजोरी साबित हुई. सुरेश रैना, दिनेश कार्तिक, रवींद्र जडेजा जैसे भारतीय स्टार टीम में शामिल थे. एरॉन फिंच, ड्वेन स्मिथ और फॉकनर जैसे विदेशी धुरंधरों के प्लेइंग 11 में होने के बाद भी गुजरात की टीम ने फैंस को निराश ही किया. 



इस पूरे सीजन में एक बार फिर ये बात साबित हुई कि 20 ओवर के मैच में बहुत बड़ा नाम वाला नहीं बड़ा काम करने वाला खिलाड़ी चाहिए. जो अकेले दम पर मैच का पासा पलटना जानता हो. 



इस हार के सबक क्या हैं?



सबसे पहला सबक तो है ‘टीम बॉन्डिंग’. बैंगलोर की टीम की नाकामी में ये बात साफ दिखाई दी. जब तक मैदान में उतरने वाले 11 खिलाड़ियों में आपसी समझ विकसित नहीं होगी तब तक बड़े बड़े नामों से कुछ नहीं होगा.



इसके अलावा संतुलन. क्रिकेट गेंदबाजी और बल्लेबाजी का खेल है. एक पक्ष जरूरत से ज्यादा मजबूत करने की कोशिश में कई बार दूसरा पक्ष बहुत कमजोर छूट जाता है. ऐसा भी कई टीमों के साथ हुआ. तीसरी बड़ी वजह है घरेलू खिलाड़ियों का सही सेलेक्शन. 



विदेशी खिलाड़ियों को तो टीम में शामिल करने के लिए सब भूखे रहते हैं लेकिन घरेलू क्रिकेटर्स को मौका देने के नाम पर नाक-भौं सिकोड़ते हैं. जबकि नए नए यंगस्टर्स ने इस आईपीएल में दिखाया कि उनका बेखौफ होकर खेलना टीम के लिए कितना फायदेमंद है.



देखा जाए तो टीम के रणनीतिकारों के लिए इन वजहों को जानना कोई ‘रॉकेट-साइंस’ नहीं है. सभी टीम मालिक इन बातों को जानते हैं. बावजूद इसके कुछ जरूरी बातों को नजरअंदाज करने की वजह से ही अब सब के सब अगले एक साल तक हाथ मलने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते हैं.