आशीष नेहरा ने अपने संन्यास का एलान कर दिया है. वो अब आईपीएल भी नहीं खेलेंगे. उन्होंने ये भी कह दिया है कि वो किसी भी सूरत में अपने संन्यास के बारे में फैसला नहीं बदलेंगे. आशीष नेहरा को ये शानदार मौका जरूर मिलेगा कि वो अपने घरेलू मैदान में आखिरी मैच खेलेंगे. उनके संन्यास के साथ ही भारत के एक ऐसे तेज गेंदबाज के युग का अंत होगा जिसने तमाम चोट और परेशानियों के बाद भी अपने करियर को 18 साल तक चलाया.
आपको याद दिला दें कि आशीष नेहरा ने 1999 में श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट करियर की शुरूआत की थी. इसके बाद 2001 में वो वनडे टीम का हिस्सा बनें. 2003 विश्व कप में इंग्लैंड के खिलाफ उनकी घातक गेंदबाजी के बाद उन्हें एक अलग पहचान मिली. जिसमें उन्होंने 10 ओवर में 23 रन देकर 6 विकेट लिए थे. यही ‘फीगर’ उनके करियर का सर्वश्रेष्ठ भी रहा. बावजूद इसके आशीष नेहरा को जिस एक मैच में बड़ी पहचान मिली वो मैच पाकिस्तान के खिलाफ था. जिसके बाद उन्हें ‘डेथ ओवर’ का कामयाब गेंदबाज माना जाने लगा. भारत पाकिस्तान के क्रिकेट इतिहास में जो बाजी पलटी उसके पीछे उस एक मैच का बहुत बड़ा योगदान है.
याद कीजिए 13 मार्च 2004
13 मार्च 2004 को कराची का नेशनल स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था. 14 साल बाद भारतीय टीम पाकिस्तान के दौरे पर गई थी. सौरव गांगुली ने टॉस जीता और पहले बल्लेबाजी का फैसला किया, द्रविड़ के 99 और सहवाग के 79 की बदौलत भारत ने स्कोर बोर्ड पर 349 रन जोड़ दिए. जीत के लिए पाकिस्तान को 350 रनों की जरूरत थी. स्कोर ठीकठाक था, पर इंजमाम ने भारत की उम्मीद पर पानी फेरना शुरू कर दिया था. वो शानदार बल्लेबाजी कर रहे थे. ये वो दौर था जब भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच किसी युद्ध से कम नहीं होता था. कोई 40-42 ओवर का खेल बीत चुका था, सौरव गांगुली ने मुरली कार्तिक को गेंद दी. मुरली कार्तिक ने पहली ही गेंद पर इंजमाम को द्रविड़ के हाथों कैच करा दिया. मुरली कार्तिक ने अगले ही ओवर में युनिस खान को आउट किया और जहीर खान ने अब्दुल रज्जाक को पवेलियन भेज दिया.
अब 18 गेंद और पाकिस्तान को चाहिए थे 24 रन. क्रीज पर मोइन खान और शोएब मलिक. मोइन खान उटपटांग शॉट्स मारने में माहिर. बालाजी ने 48वें ओवर में 7 रन दिए यानी अब 12 गेंद पर 17 रन. 49वां ओवर जहीर खान ने किया, उन्होंने 8 रन दिए लेकिन शोएब मलिक को आउट भी कर दिया. आखिरी 6 गेंद पर पाकिस्तान को जीत के लिए 9 रन चाहिए थे. सौरव के पास अब आखिरी ओवर देने के विकल्प के तौर पर सिर्फ आशीष नेहरा थे. पार्ट टाइम गेंदबाज के तौर पर वो या तो खुद गेंदबाजी करते या फिर सचिन तेंडुलकर या वीरेंद्र सहवाग से गेंदबाजी कराते. दादा ने नेहरा को गेंद दी.
आखिरी ओवर में किया था नेहरा ने कमाल
50वें ओवर में आशीष नेहरा की पहली गेंद पर नावेद उल हसन कोई रन नहीं बना पाए. अब 5 गेंद पर 9 रन चाहिए थे. दूसरी गेंद पर नावेद उल हसन ने एक रन ले लिया. अब 4 गेंद पर 8 रन. तीसरी गेंद पर मोइन खान कोई रन नहीं बना पाए. अब 3 गेंद पर 8 रन चाहिए. इसी वक्त था टीवी स्क्रीन पर पाकिस्तानी कोच जावेद मियांदाद दिखाई दिए. मियांदाद पवेलियन में थे और वहीं से मोइन खान को एक खास किस्म का शॉट खेलने के लिए इशारा कर रहे थे. अचानक हर किसी को 1986 में शारजाह में चेतन शर्मा की आखिरी गेंद पर मियांदाद के छक्के के साथ जीत के दृश्य ताजा हो गए.
खैर, 50वें ओवर की चौथी गेंद पर मोइन खान ने एक रन लिया. अब 2 गेंद 7 रन. पांचवी गेंद पर फिर नावेद उल हसन ने एक रन ले लिया. यानी आखिरी गेंद पर पाकिस्तान को जीत के लिए 6 रन चाहिए थे. मोइन खान ऐसा कर सकते थे. नेहरा ने आखिरी गेंद पर उनका विकेट लिया और भारत को जीत मिली.
यहीं से नेहरा ‘डेथ ओवर स्पेशलिस्ट’ गेंदबाज के तौर पर जाने गए. 2005 में राहुल द्रविड़ कप्तान थे और भारतीय टीम श्रीलंका में ट्राएंगुलर सीरीज खेल रही थी. वेस्टइंडीज को भारत के खिलाफ एक अहम मैच में जीत के लिए आखिरी ओवर में 12 चाहिए थे. नेहरा ने सिर्फ 4 रन दिए और भारत ने मैच जीत लिया.