नई दिल्ली: 10 नवंबर साल 1991 विश्व क्रिकेट में एक ऐसा दिन जब 21 साल के प्रतिबंध के बाद साउथ अफ्रीका ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखा. बैन के बाद साउथ अफ्रीका ने कोलकाता के ऐतिहासिक ईडेन गार्डन में अपना पहला वनडे मैच खेला. मैच में टीम को हार मिली लेकिन विश्व क्रिकेट को एक नायाब तोहफा मिला. तोहफा एक विश्व स्तरीय टीम के रूप में, तोहफा एक ऐसे गेंदबाज को जिसने आने वाले समय में दुनिया भर के बल्लेबाजों को अपनी तेज गेंदबाजी से दहशत में डाला.

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखने के पांच महीने बाद ही साउथ अफ्रीका ने 1992 में विश्व कप के सेमीफाइनल में जगह बना कर विश्व क्रिकेट को अपनी धमक दिखा दी.

भारत को करीबी मुकाबले में मिली जीत
ईडेन गार्डन में साउथ अफ्रीकी टीम का जोरदार स्वागत हुआ. भारतीय कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन ने टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी करने का फैसला किया. 47 ओवर के इस मैच में साउथ अफ्रीका की टीम 8 विकेट पर 177 रन ही बना सकी. उनके ओर से ऑस्ट्रेलियाई टीम से वापस आए केपलर वेसल्स ने सर्वाधिक 50 रन बनाए. उनका विकेट सचिन तेंदुलकर ने लिया था. भारत की ओर से कपिल देव और मनोज प्रभाकर ने दो-दो विकेट लिए थे.

178 के लक्ष्य को हासिल करने उतरी भारतीय टीम की शुरुआत भी निराशाजनक रही. रवि शास्त्री,नवजोत सिंह सिद्धू 20 रन तक पवेलियन पहुंच चुके थे. तीनों विकेट व्हाइट लाइटनिंग कहे जाने वाले एलन डोनल्ड ने लिए. लेकिन मोर्चा संभाला कम उम्र के सचिन तेंदुलकर ने. तेंदुलकर ने 73 गेंद पर 8 चौके और 1 छक्के की मदद से सर्वाधिक 62 रन बनाए. भारत की हालत चिंताजनक थी और तब मोर्चा संभाला प्रवीण आमरे ने. उन्होंने 55 रन की पारी खेल टीम को सात विकेट से जीत दिला दी.

दो मैन ऑफ द मैच
इस ऐतिहासिक मुकाबले में दो खिलाड़ियों को मैन ऑफ द मैच दिया गया. भारत को जीत दिलाने वाले सचिन तेंदुलकर को उनके ऑलराउंड खेल के लिए और भारतीय टीम के गिरे सात विकेट में से पांच को पवेलियन भेजने वाले एलन डोनल्ड को.

मैच खत्म होने के बाद साउथ अफ्रीका के कप्तान क्लाइव राइस ने भावुक होकर कहा, 'क्रिकेट के मैदान पर वापसी करने के बाद कैसा महसूस हो रहा है ये मैं बता नहीं पाउंगा, लेकिन शायद मेरे जैसा अनुभव चांद पर कदम रखने के बाद नील आर्मस्ट्रांग को हुआ होगा.'