टीम इंडिया के पूर्व कप्तान और बीसीसीआई के मौजूदा अध्यक्ष सौरव गांगुली को कौन नहीं जानता. भारतीय टीम ने गांगुली की कप्तानी में ही विदेशों में जीत दर्ज करना सीखा था. टीम इंडिया में वो एग्रेशन गांगुली ही लेकर आए थे, जिसकी कमी पहले की टीमों में देखी जाती थी. टीम इंडिया को इसका फायदा भी हुआ. भारतीय टीम विदेशी धरती पर शानदार प्रदर्शन करने लगी. गांगुली के करियर में सबसे मुश्किल दौर की बात की जाए तो उसमें ग्रेग चैपल के साथ उनका विवाद भी शामिल होगा. गांगुली-चैपल विवाद ने भारतीय क्रिकेट को बहुत नुकसान पहुंचाया था.
7 दिनों की वजह से कोच बने थे चैपल
एक समय गांगुली और चैपल दोनों अच्छे दोस्त थे. इतनी ही नहीं इन दोनों दिग्गजों ने सात दिन एक साथ भी गुजारे थे. जिसके बारे में न तो तत्कालीन टीम के सदस्यों को पता चला था और न ही किसी और को इस बात के बारे में मालूम था. ये भी सच है कि इन्हीं सात दिनों की दोस्ती का इनाम ग्रेग को तब मिला, जब दादा ने उन्हें टीम इंडिया का कोच बनवाया.
क्या है वो 7 दिन का राज़?
सौरव गांगुली ने सात दिन की दोस्ती के बारे में ऑटोबायोग्राफी अ सेंचुरी इज नॉट एनफ (A Century Is Not Enough) में लिखा है. गांगुली ने लिखा है, ''बात 2003 की है. भारतीय टीम हाल ही में विश्व कप के फाइनल में पहुंची थी. इसलिए अगली सीरीज के लिए भी हमारे हौसले बुलंद थे. हमें साल के आखिरी महीने में ऑस्ट्रेलिया जाना था. यही अब साल की सबसे अहम सीरीज थी. स्टीव वॉ बोल चुके थे कि ऑस्ट्रेलिया को उसके घर में हराने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए. यह सच है कि कम से कम उस दौर में ऑस्ट्रेलिया को उसके घर में हराना असंभव सा था. लेकिन अगर बतौर कप्तान ये बात मैं मान लेता तो सीरीज का फैसला तो मैदान पर उतरने से पहले ही हो जाता. इसलिए मैंने तय कि किया कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आक्रामक होने की जरूरत है. इसके लिए पहला टारगेट मैंने खुद के लिए सेट किया.''
सौरव गांगुली ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखा, ''मैं सात दिन चैपल के साथ रहा. इस दौरान हम सिडनी में सुबह-शाम नेट प्रैक्टिस करते. प्रैक्टिस पिच बहुत खराब थी, लेकिन यह एक तरह से अच्छा था. मैं खुद को बदतर से बदतर स्थिति के लिए तैयार करना चाहता था. चैपल के साथ रहकर मुझे यह पता चला कि गेंदबाज किस लेंथ पर गेंदबाजी करेंगे. किस मैदान की पिच कैसी है. किस मैदान पर एक स्पिनर के साथ उतरें और किसमें दो स्पिनरों के साथ.''
चैपल की समझ के कायल हुए दादा
सौरव गांगुली बताते हैं, ''ग्रेग को क्रिकेट की गजब की समझ थी. ऑस्ट्रेलियाई मैदान बड़े थे, इसलिए फील्ड प्लेसमेंट भी अहम होती थी. मैं यह समझने के लिए ग्रेग को मैदान के कई हिस्से में ले गया और यह समझने की कोशिश की कि फील्डर को कहां खड़ा करना चाहिए, ताकि वह ज्यादा एरिया कवर कर सके. जब मैं इससे पहले 1992 में ऑस्ट्रेलिया गया था, तब फील्ड प्लेसमेंट बड़ी समस्या लगी थी. ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी अक्सर तीन रन दौड़ लेते थे. हमारी टीम के कई खिलाड़ी विकेटकीपर तक थ्रो ही नहीं कर पाते थे. हम तीन रन कम ही दौड़ पाते थे. इसकी एक वजह फिटनेस और दूसरी वजह फील्ड की सजावट थी. ऑस्ट्रेलियाई अच्छी तरीके से जानते थे कि फील्डर को कहां खड़ा करना है.''
चैपल के साथ से मिला फायदा
सौरव गांगुली कहते हैं कि ग्रेग के साथ रहने का उन्हें बड़ा फायदा हुआ. उनका बैटिंग स्टाइल भी बदल गया. वो तेज गेंदबाजों को ज्यादा भरोसे से खेलने लगे. भारतीय टीम जब कुछ महीने बाद ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गई तो उसने ऐतिहासिक प्रदर्शन किया. टेस्ट सीरीज 1-1 से बराबर रही. ऑस्ट्रेलिया आखिरी टेस्ट बड़ी मुश्किल से ड्रॉ करा पाया. कुल मिलाकर एक दशक में पहली बार किसी टीम ने ऑस्ट्रेलिया को उसकी जमीन पर ये एहसास कराया कि उन्हीं भी हराया जा सकता है.
चैपल-गांगुली दोस्ती में पड़ी दरार
सौरव गांगुली ने आगे लिखा कि जब जॉन राइट के बाद भारतीय टीम का नया कोच चुनने की बारी आई तो उन्होंने ग्रेग चैपल का नाम आगे बढ़ाया. ये भी सच है कि तब ग्रेग चैपल के बड़े भाई इयान चैपल ने ही कहा था कि ऐसा करना सही नहीं होगा. सुनील गावस्कर ने भी चैपल को कोच ना बनाने की सलाह दी. लेकिन बोर्ड ने कप्तान की राय को तवज्जो दी और ग्रेग चैपल नए कोच बन गए.
कोच बनने के बाद चैपल ने टीम में अपनी मर्जी चलानी शुरू कर दी. इसका असर टीम के प्रदर्शन पर दिखाई देने लगा. धीरे-धीरे चैपल और गांगुली की दोस्ती में खटास आने लगी और फिर इसने एक विवाद की शक्ल ले ली. गांगुली के शब्दों में तब कौन जानता था कि ये संबंध भारतीय क्रिकेट का सबसे विवादित विषय बनेगा. भले ही अब चैपल-गांगुली विवाद काफी पुराना हो चुका है लेकिन भविष्य में जब भी टीम इंडिया के साथ जुड़े विवादों की या उसके बुरे दिनों की बात की जाएगी, तो उसमें ये विवाद हमेशा शामिल होगा.