श्रीलंका की टीम 27 अगस्त को पल्लेकेले में भारत के खिलाफ तीसरा वनडे मैच खेलने के लिए मैदान में उतरेगी. इस मैच की अहमितय मेजबान श्रीलंका के लिए इसलिए बहुत ज्यादा है क्योंकि इस मैच में उसे सीरीज बचाने की लड़ाई भी लड़नी है. 



पहले दोनों वनडे मैच गंवा चुकी श्रीलंकाई टीम अगर रविवार का मैच भी हार जाती है तो टेस्ट सीरीज के बाद वनडे सीरीज भी उसके हाथ से निकल जाएगी. जो श्रीलंका टीम और उसके खिलाड़ियों के साथ साथ घरेलू फैंस के लिए बड़ा झटका होगा. श्रीलंका की टीम को जो उम्मीद की एक किरण दिखाई दे रही होगी वो है पल्लेकेले का मैदान, इसी मैदान में पिछले मैच में उसने भारतीय टीम के बल्लेबाजों को परेशान कर दिया था. अकिला धनंजय के शानदार 6 विकेटों की बदौलत एक वक्त पर मैच श्रीलंका की झोली में जाता दिखाई दे रहा था लेकिन पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धौनी और भुवनेश्वर कुमार की रिकॉर्ड साझेदारी की बदौलत श्रीलंका का सीरीज में पहली जीत का सपना टूट गया. जाहिर है रविवार को श्रीलंका अपने उसी हथियार को और बेहतर तरीके से इस्तेमाल करना चाहेगी. 



श्रीलंका को लग रहा है एक के बाद एक झटका  



भारत-श्रीलंका दोनों की क्रिकेट के साल भर के कैलेंडर में ये सीरीज बहुत अहम रहती है. क्रिकेट फैंस की इस सीरीज पर नजर रहती है. लगभग एक जैसी पिचें, एक जैसे मौसम की वजह से दोनों टीमों में कांटे की टक्कर देखने को मिलती थी. इस बार जाने क्या हुआ कि सीरीज शुरू होने से पहले ही श्रीलंका की टीम मुश्किल में आ गई थी. भारत के खिलाफ सीरीज शुरू होने से पहले ही श्रीलंका के कप्तान एंजेलो मैथ्यूज ने कप्तानी छोड़ दी. 



कप्तानी छोड़ने के पीछे उनकी वजह थी जिम्बाब्वे के खिलाफ शर्मनाक हार. इसके बाद टेस्ट सीरीज की कमान दिनेश चांदीमल को सौंपी गई थी. तीन मैचों की टेस्ट सीरीज में श्रीलंका बुरी तरह हारी. वनडे की कमान उपुल थरंगा को सौंपी गई थी. पल्लेकेले में दूसरे वनडे में स्लो ओवर रेट की वजह से उन्हें भी आईसीसी के प्रतिबंध का सामना करना पड़ेगा. अब श्रीलंका की टीम की कमान कापूगेदेरा संभालेंगे. लगातार हो रहे इन बदलावों की वजह से श्रीलंका की टीम मैदान में सही संतुलन नहीं बना पा रही है. जो मैदान में उनके प्रदर्शन में साफ दिखाई दे रहा है.



दिमागी लड़ाई में हार रही है श्रीलंका   



ऐसा नहीं है कि श्रीलंका की टीम अचानक बहुत खराब हो गई है. उसके पास अब भी विश्व स्तरीय खिलाड़ी हैं. दूसरे वनडे में श्रीलंका ने शानदार शुरूआत की थी. डिकवेला और गुणातिलका ने अच्छी शुरूआत की थी. दोनों ने 8वें ओवर तक स्कोर को चालीस के पार पहुंचा दिया था लेकिन जैसे ही डिकवेला को बुमराह ने आउट किया, उसके बाद बल्लेबाजों ने घुटने टेक दिए. सिरिवर्धना और कापूगेदेरा की बीच हुई साझेदारी की बदौलत श्रीलंका का स्कोर सवा दो सौ के पार पहुंचा. 



पहले मैच में भी सलामी जोड़ी के बीच 74 रनों की साझेदारी हुई थी लेकिन उसके बाद श्रीलंका के बल्लेबाज अपनी जिम्मेदारी को सही तरीके से नहीं निभा पाए. नतीजा ये हुआ कि अच्छी शुरूआत के बाद भी श्रीलंका की टीम स्कोरबोर्ड पर 43.2 ओवर में सिर्फ 216 रन जोड़कर ऑल आउट हो गई. प्रदर्शन से कहीं अलग ये लगातार हो रही हार का मनोवैज्ञानिक दबाव दिखाई दे रहा है. खिलाड़ी अपनी जिम्मेदारी को समझने और निभाने की बजाए उसे दूसरे पर डालकर पवेलियन लौट जा रहे हैं. 



मौजूदा दौर के क्रिकेट में दुनिया की हर टीम समझती है कि अगर वनडे मैच में कांटे का मुकाबला देखना है तो पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम को स्कोरबोर्ड पर कम से कम तीन सौ रनों का स्कोर जोड़ना ही होगा. एक दो मैचों में अपवाद को छोड़ दें तो तीन सौ रनों से कम के लक्ष्य पर मैच जीतना बड़ा मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे में सवा दो सौ रनों के आस पास के स्कोर में गेंदबाजों पर जरूरत से ज्यादा दबाव होता है. 



सीरीज का रोमांच अगर बचाए रखना है तो उसकी जिम्मेदारी श्रीलंका की टीम पर है. उसके बल्लेबाजों को ये समझना होगा कि अगर उन्हें अच्छी शुरूआत मिल रही है तो वो उसे एक बड़े स्कोर में तब्दील करें. स्कोरबोर्ड पर इतने रन जोड़े कि श्रीलंकाई गेंदबाज भारतीय बल्लेबाजों के लिए कुछ चुनौती पेश कर सकें. पिछले मैच में ही अगर लक्ष्य 250 के पार होता तो कहानी शायद कुछ और होती. श्रीलंका के लिए बेहतर होगा कि वो अपने प्रदर्शन में सुधार करे बजाए इसके कि वो भारतीय टीम की गलतियों का इंतजार करे.