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अनुशासन, प्रतिबद्धता और समर्पण के प्रतीक हैं अनिल कुंबले

अनिल कुंबले जब खेला करते थे तो खेल की महीन जानकारी, दृढ संकल्प और बेहतरीन प्रदर्शन करने की प्रतिबद्धता के उनके गुणों के सभी कायल थे और अब यह पूर्व लेग स्पिनर भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच

अनुशासन, प्रतिबद्धता और समर्पण के प्रतीक हैं अनिल कुंबले

नई दिल्ली: अनिल कुंबले जब खेला करते थे तो खेल की महीन जानकारी, दृढ संकल्प और बेहतरीन प्रदर्शन करने की प्रतिबद्धता के उनके गुणों के सभी कायल थे और अब यह पूर्व लेग स्पिनर भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच के रूप में विराट कोहली और उनके साथियों से इसी तरह के गुणों की उम्मीद करेगा. जब 19 साल के अनिल कुंबले ने 1990 में मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रैफर्ड में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया तो तब किसी ने भी उनके प्रदर्शन पर गौर नहीं किया क्योंकि उस मैच में 17 साल के एक किशोर ने अपने 100 अंतरराष्ट्रीय शतकों में से पहला शतक जमाया था. लेकिन अगर अगले दो दशक तक भारतीय सचिन तेंदुलकर के मैदान पर करिश्माई प्रदर्शन की तारीफ करते रहे तो उन्होंने इस बीच बेंगलुरू के छह फुट तीन इंच लंबे मैकेनिकल इंजीनियर को भी पूरा सम्मान दिया.


ऐसा हर दिन नहीं होता है जबकि पराजित कप्तान को उसके देश का मीडिया सिर आंखों पर बिठाये. लेकिन 2008 में कुंबले का सिडनी में चर्चित ‘मंकी गेट’ टेस्ट के बाद संवाददाता सम्मेलन में दिये गये ‘केवल एक टीम ही खेल भावना से खेली’ के बयान के बाद ऐसा हुआ था. तब कप्तान ने एक बड़े भाई की भूमिका निभायी. उस दिन के बाद उनका रूतबा और बढ़ गया था. यह थोड़ा अजीब लगे लेकिन कुंबले तीन सदस्यीय क्रिकेट सलाहकार समिति(सीएसी) में शामिल सदस्यों से थोड़ा भिन्न थे. वह तेंदुलकर की तरह विलक्षण बच्चा नहीं थे और अपने समकालीन सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण की तरह ‘गिफ्टेड प्लेयर’ भी नहीं थे लेकिन जब समर्पण, अनुशासन, प्रतिबद्धता और निष्ठा की बात आती है तो अन्य तीन की तरह उनमें भी यह कूट कूटकर भरी थी.


यही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह मुथया मुरलीधरन(800) और शेन वार्न(709) के बाद सर्वाधिक विकेट लेने वाले तीसरे गेंदबाज है जिससे साफ होता है कि उनकी उपलब्धि बेहतरीन है. कुंबले के करियर का सर्वश्रेष्ठ क्षण निश्चित तौर पर तब आया था जब उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ फिरोजशाह कोटला में 74 रन देकर दस विकेट लेकर ‘परफेक्ट टेन’ हासिल किया था. इसी तरह से उन्होंने वेस्टइंडीज में अपना जज्बा दिखाया तथा जबड़ा टूट जाने के बावजूद गेंदबाजी की और ब्रायन लारा का विकेट लिया. इससे उनकी प्रतिबद्धता का पता चलता है.


भारत के दो सबसे सफल कप्तान मोहम्मद अजहरूद्दीन और सौरव गांगुली हमेशा इस विनम्र और मितभाषी व्यक्ति के आभारी रहेंगे जिन्हें मैच जीतने के लिये स्पिनरों के अनुकूल पिचों की जरूरत नहीं पड़ती थी. तीसरे दिन से मिलने वाले थोड़े टर्न और उपमहाद्वीप की उछाल वाली पिचों पर कुंबले काफी उपयोगी साबित हुए. चाहे वह सनथ जयसूर्या हो या सईद अनवर हमेशा कुंबले को गेंद सौंपना ही इनका जवाब होता था. या फिर ब्रायन लारा या नासिर हुसैन गेंदबाजों पर हावी हो रहे हों तब अजहर और गांगुली दोनों का भरोसा कुंबले पर होता था.


यह समय ही बताएगा कि कुंबले कितने अच्छे कोच साबित होंगे लेकिन एक चीज तय है और वह है उनका रवैया. उनकी रणनीति बहुत अच्छी होगी और उनका होमवर्क हमेशा तैयार रहेगा. यह तय है कि उनके रहते हुए किसी भी तरह की ढिलायी नहीं बरती जाएगी.

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