Virat vs Sachin: 49 शतक के बावजूद सचिन से काफी पीछे हैं विराट, जानिए क्यों दोनों की तुलना करना होगा बेईमानी
Virat & Sachin: विराट कोहली और सचिन तेंदुलकर की तुलना करना बेईमानी है. दोनों ही अलग-अलग दौर के क्रिकेटर हैं और इस अंतराल में पिचों के मिजाज से लेकर रिव्यू जैसी तकनीकों ने गेम को काफी हद तक बदला है.
Virat Kohli Vs Sachin Tendulkar: विराट कोहली ने आखिरकार वो मुकाम हासिल कर लिया, जिसके लिए लंबे अरसे से इंतजार किया जा रहा था. उन्होंने रविवार (5 नवंबर) को वनडे क्रिकेट में सबसे ज्यादा शतक बनान के रिकॉर्ड की बराबरी की. उन्होंने इस मामले में अपने आदर्श सचिन तेंदुलकर के 49 शतकों के रिकॉर्ड को छुआ.
निश्चित तौर पर विराट ने बेहद कम पारियों में सचिन के इस रिकॉर्ड की बराबरी की. सचिन से 174 कम पारियां खेलते हुए विराट यहां तक पहुंच गए. खास बात यह भी वनडे क्रिकेट में उनका बल्लेबाजी औसत और स्ट्राइक रेट भी सचिन से बेहतर है. हालांकि इन सब के बावजूद अब भी उन्हें वनडे का किंग कहना जल्दबाजी होगी. असल में वनडे क्रिकेट में नंबर-1 कौन है, उसके लिए शायद विराट के रिटायरमेंट तक का इंतजार करना होगा. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि अब भी वनडे क्रिकेट में सचिन के कई ऐसे कीर्तिमान है, जहां तक पहुंचना असंभव सा लगता है. फिर एक खास फैक्टर यह भी है कि दोनों खिलाड़ी अलग-अलग दौर के हैं और इस अंतराल में क्रिकेट में काफी कुछ बदलाव हुआ है.
विराट के लिए 4800 रन का फासला तय करना आसान नहीं
सचिन तेंदुलकर ने अपने वनडे करियर में कुल 18426 रन बनाए हैं. विराट के खाते में अभी 13626 रन दर्ज है. यानी विराट अभी भी सचिन से 4800 रन पीछे हैं. यह कोई छोटा-मोटा फासला नहीं है. कई अच्छे बल्लेबाज अपने पूरे करियर में भी इतने रन नहीं बना पाते हैं. वैसे, विराट जिस तरह फॉर्म में हैं, उसे देखते हुए यह फासला ज्यादा नहीं लगता लेकिन विराट के फॉर्म के लिहाज से भी देखा जाए तो इतने रन बनाने में कम से कम 5 साल का वक्त लगना तय है. और फिर अगले तीन साल में टीम इंडिया ज्यादा वनडे मुकाबले खेलते हुए नजर नहीं आने वाली है. ऐसे में यह वक्त और लंबा खिंचा सकता है. यानी वनडे में सबसे ज्यादा रन का रिकॉर्ड संभवतः सचिन के ही नाम रहने वाला है.
सबसे ज्यादा बड़ी पारियां खेलने में अब भी सचिन आगे
विराट कोहली ने अब तक अपने करियर में कुल 119 बार 50 से ज्यादा रन की पारियां (49 शतक + 70 अर्धशतक) खेली है. वहीं सचिन इस मामले में 145 (49 शतक + 96 अर्धशतक) पर हैं. यानी विराट को सबसे ज्यादा बड़ी पारियां खेलने में सचिन को पीछे छोड़ने के लिए अभी भी 27 शतक या अर्धशतकों की जरूरत होगी. यह आंकड़ा भी छुने के लिए कम से कम 4 से 5 साल लगना तय है.
सचिन 18 बार शतक चूके, विराट ने 7 मौके गंवाए
सचिन तेंदुलकर अपने वनडे करियर में कुल 18 बार 90+ के स्कोर पर आउट हुए. वह सबसे ज्यादा बार नर्वस नाइटीज का शिकार हुए हैं. अगर इनमें से आधे मौकों पर भी सचिन अपनी 90+ पारियों को शतक में बदल देते तो अभी भी वह शतकों के मामले में विराट से काफी आगे होते. वैसे, विराट कोहली भी अब तक 7 बार 90+ के स्कोर पर आउट हुए हैं.
अंपायर के गलत फैसलों का शिकार
सचिन तेंदुलकर संभवतः सबसे ज्यादा बार अंपायर के गलत फैसलों के चलते आउट हुए. इसका बड़ा कारण यह है क्योंकि सचिन के दौर में रिव्यू लेने की व्यवस्था नहीं थी. पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर शोएब अख्तर यहां तक कह चुके हैं कि अगर सचिन के जमाने में रिव्यू लेने का सिस्टम होता तो शायद सचिन वनडे में भी 100 शतक जड़ सकते थे. इसके उलट विराट कोहली जबसे क्रिकेट खेल रहे हैं, तब से ही डीआरएस लेने की व्यवस्था उपलब्ध रही है.
2007 के बाद बैटिंग पिचों को बढ़ावा मिला
सचिन तेंदुलकर उस दौर में क्रिकेट खेलते थे, जब पिचों से बल्लेबाजों और गेंदबाजों को बराबर मदद मिलती थी. यह भी कह सकते हैं कि कुछ हद तक गेंदबाज ज्यादा हावी होते थे. हालांकि टी20 वर्ल्ड कप 2007 की सफलता के बाद जब यह देखा गया कि दर्शकों को चौके-छक्के देखने में ज्यादा मजा आता है और टी20 की लोकप्रियता बढ़ रही है तो वनडे क्रिकेट में भी बैटिंग पिचे तैयार करने का बढ़ावा मिला. यही कारण है कि साल 2007 के बाद वनडे में 400+ स्कोर कई बार बनते देखे गए. यह भी देखा गया कि एक बल्लेबाज तीन-तीन बार 200+ का स्कोर बना देता है. यह सब बैटिंग विकेट की वजह से संभव हो सका.
हेलमेट एक बड़ा फैक्टर!
आज से 15 साल पहले तक तेज गेंदबाजों का सामना करने के लिए बल्लेबाजों के पास फूल हेलमेंट तक नहीं होते थे. ऐसे में बल्लेबाजों को बेहद सतर्कता के साथ शॉट खेलने होते थे. कई क्रिकेट एक्सपर्ट्स यह बात कहते रहे हैं कि आज के दौर में तेज गेंदबाजों का सामना करने में बल्लेबाज डरते नहीं है क्योंकि उन्हें पता है कि वह पूरी तरह से सुरक्षित हैं, जबकि बीते दौर में बल्लेबाजों को बॉल हिट करने में सबसे ज्यादा डर यह सताता कि कहीं बॉल उनके सिर या जबड़े को न तोड़ दे. यह डर मैचों में निर्णायक भूमिका निभाता था.
ये कुछ अहम फैक्टर हैं, जिन्हें देखें तो विराट और सचिन की तुलना करना अभी बेईमानी होगी. इसके साथ ही इन दोनों की तुलना इसलिए भी वाजिब नहीं क्योंकि ये दोनों अलग-अलग दौर के खिलाड़ी रहे हैं और इन दौरों में पिचों के मिजाज, रिव्यू सिस्टम और बल्लेबाजों के लिए सुरक्षा तकनीकें जैसी कई चीजों में बदलवा हुआ है. इसमें कोई शक नहीं कि पहले के मुकाबले अब क्रिकेट बल्लेबाजों के लिए ज्यादा मददगार नजर आता है.
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