महेंद्र सिंह धोनी को आज दुनिया के बेस्ट फिनिशर के तौर पर जाना जाता है. धोनी ने अपनी धुआंधार बल्लेबाज़ी और अपने शांत दिमाग से कई बार विरोधी टीमों के मुंह से जीत छीनी है. वो जरुरत के हिसाब से बल्लेबाज़ी करते हुए बड़े शाट्स भी लगाते हैं, तो वहीं जब स्थिति विकेट बचाकर रन बनाने की हो तो माही उस काम में भी माहिर हैं. तभी भी धोनी को दुनिया के बेस्ट फिनिशर्स में शुमार किया जाता है. लेकिन आज हम आपको बताते हैं कि क्रिकेट की दुनिया में सबसे पहले ये फिनिशर शब्द आया कहां से? और किस खिलाड़ी के लिए इसे सबसे पहले इस्तेमाल किया गया.


किसे सबसे पहले कहा गया फिनिशर?


ऑस्ट्रेलिया के मिडिल आर्डर बल्लेबाज़ माइकल बेवन के लिए सबसे पहले ये टर्म इस्तेमाल की गई थी. माइकल बेवन एक अलग तरह के बल्लेबाज थे. बेवन ना तो बड़े शॉट्स खेलते थे, ना ही वो आक्रामक रुख अपनाते थे लेकिन फिर भी उनका ऑस्ट्रेलियाई ड्रेसिंग रूम में सम्मान था. दरअसल, बेवन 1-1 रन लेकर हमेशा स्कोरबोर्ड बढ़ाते रहते थे और ये टैलेंट हर किसी बल्लेबाज में नहीं होता. हालांकि, साल 1996 में बेवन ने एक ऐसी पारी खेल डाली, जिसने उन्हें मैच फिनिशर का तमगा दिला दिया.


1994 में हुआ बेवन का डेब्यू


बेवन ने ऑस्ट्रेलिया के लिए साल 1994 में डेब्यू किया था. बेवन ने पूरी दुनिया को बताया और दिखाया कि मैच को अंजाम तक कैसे पहुंचाया जाता है. बेवन ने एक नहीं, अनेक मैचों में अपनी बल्लेबाज़ी का दम दिखाते हुए ऑस्ट्रेलिया को जीत दिलाई. उन्होंने कई बार तो विरोधी टीम के जबड़े से जीत छीनकर ऑस्ट्रेलिया को मैच जिताया. उनकी बल्लेबाज़ी की खास बात ये थी कि वो मैच बनाना भी जानते थे और अपनी टीम को मैच जिताना भी. उनकी इसी क्षमता की वजह से उन्हें मैच फिनिशर कहा जाने लगा.


बेवन का करियर बेमिसाल रहा. वनडे स्पेशलिस्ट माने जाने वाले बेवन ने 232 वनडे मैचों में 53.28 की औसत से 6912 रन बनाए. जब बेवन ने क्रिकेट को अलविदा कहा था. माइकल बेवन ने अपने करियर में तीन वर्ल्डकप खेले, जिसमें उनकी टीम ने 1996 और 2003 के विश्वकप पर कब्ज़ा किया. बेवन बल्लेबाज़ी में तो बाकी खिलाड़ियों से अलग थे ही, वो गेंदबाजी में भी थोड़े अलग थे, क्योंकि वो एक बाएं हाथ के चाइनामैन गेंदबाज थे.


इस तरह हुआ बेवन के करियर का अंत


माइकल बेवन का करियर जितना शानदार रहा, अंत उतना अच्छा नहीं हो सका. साल 2004 में श्रीलंका के खिलाफ आखिरी मैच के बाद वो चोटिल होकर टीम से बाहर हो गए. उनकी शॉर्ट गेंदों की कमज़ोरी भी अब जग-जाहिर हो चुकी थी. इसके बाद वो फिर कभी भी टीम में नहीं लौट सके. टीम से विदाई के तीन साल बाद 2007 में उन्होंने क्रिकेट जगत को अलविदा कह दिया. माइकल बेवन के 10 साल लंबे करियर में ऐसे अनेक मैच और अनेक मौके रहे, जब उन्होंने दुनिया को बताया कि क्रिकेट में ऐसा बल्लेबाज़ है, जो सिर्फ मैच बनाना ही नहीं, उन्हें जिताना भी जानता है.


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