भारतीय टीम मंगलवार को न्यूज़ीलैंड के खिलाफ विश्व कप का सेमीफाइनल खेलेगी. पहले तो उम्मीद थी कि मुकाबला भारत और इंग्लैंड के बीच होगा लेकिन दक्षिण अफ्रीका ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर भारत की मदद कर दी. अब उसे अपेक्षाकृत आसान मैच खेलना होगा. परेशानी बस इतनी है कि इस टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने न्यूज़ीलैंड का सामना नहीं किया है. लिहाजा उसे कीवियों की ताकत-कमजोरी का निश्चित अंदाजा नहीं है.
हालांकि ये भी कोई बहुत बड़ी परेशानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि न्यूज़ीलैंड के कई खिलाड़ी आईपीएल में खेलते हैं और भारतीय टीम के खिलाड़ी उनके खेल से वाकिफ हैं. टीम इंडिया की परेशानी दूसरी है. वो परेशानी है बल्लेबाजी क्रम. इंग्लैंड के खिलाफ संभावित सेमीफाइनल के मद्देनजर टीम इंडिया ने बीच टूर्नामेंट में अपनी रणनीति में बदलाव किया था.
टीम इंडिया ने उस तरीके का क्रिकेट खेलने की ठानी जो इंग्लैंड की टीम पिछले डेढ़ दो साल से खेल रही है. यानी क्रीज पर आते ही गेंदबाजों पर हल्ला बोल. इंग्लैंड ने ये रणनीति इसलिए अपना रखी है क्योंकि इस वक्त उनका बैटिंग ऑर्डर बहुत ‘डीप’ है. निचले क्रम में मोईन अली तक अच्छी खासी बल्लेबाजी कर लेते हैं. अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में उनके नाम पर शतक भी है. ये रणनीति इंग्लैंड को रास भी आ रही है. लेकिन भारतीय टीम को ये रणनीति उसी तरह रास आएगी, इस बात पर शक है.
नंबर सात पर बल्लेबाज की जरूरत नहीं
टीम इंडिया में नंबर चार की चिकचिक लंबे समय तक चली है. विश्व कप में भी इस परेशानी से छुटकारा नहीं मिला. बावजूद इसके ये बात तय है कि टीम इंडिया को प्लेइंग 11 में नंबर सात पर स्पेशलिस्ट बल्लेबाज की जरूरत नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि नंबर सात पर ज्यादातर मैचों में स्पेशलिस्ट बल्लेबाज को खिलाना व्यर्थ रहा है. इंग्लैंड के खिलाफ केदार जाधव ने 13 गेंद खेली थी. इसके बाद अगले मैच में दिनेश कार्तिक ने बांग्लादेश के खिलाफ 9 गेंद खेली.
श्रीलंका के खिलाफ भी दिनेश कार्तिक को प्लेइंग 11 में शामिल किया गया था. लेकिन उनकी बल्लेबाजी का मौका ही नहीं आया. यानी नंबर सात पर स्पेशलिस्ट बल्लेबाज के हिस्से आई गेंद का औसत निकाले तो 10-11 गेंद का आएगा. पिछले मैच में जब विराट कोहली ने दो बदलाव किए थे तो उनके फैसले पर सवाल भी उठे थे. आपको याद दिला दें कि पिछले मैच में विराट कोहली ने युजवेंद्र चहल की जगह कुलदीप यादव और मोहम्मद शमी की जगह रवींद्र जडेजा को टीम में जगह दी थी. इसके बाद ये सवाल उठाया गया था कि उन्होंने वो टीम क्यों नहीं उतारी जो सेमीफाइनल में खेलने जा रही है. मोहम्मद शमी को दिए गए ब्रेक को भी उनकी लय को ‘डिस्टर्ब’ करने जैसा था. अब सवाल ये है कि नंबर सात का समाधान क्या है.
नंबर सात का समाधान क्या है?
फिलहाल तो नंबर सात का समाधान हैं- रवींद्र जडेजा. रवींद्र जडेजा बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों कर सकते हैं. वो लाजवाब फील्डर हैं. उनके रहने से टीम को एक और गेंदबाजी ऑप्शन मिलेगा. वरना पिछले दो मैचों में भारतीय टीम सिर्फ पांच गेंदबाजों के साथ मैदान में उतरी थी. इस टूर्नामेंट में जिस रफ्तार से भारतीय खिलाड़ियों को चोट लगी है उसके बाद सावधान रहने में ही समझदारी है. आपको याद दिला दें कि टूर्नामेंट की शुरुआत में ही सलामी बल्लेबाज शिखर धवन को चोट की वजह से टूर्नामेंट से बाहर होना पड़ा. इसके बाद चोट के चलते ही विजय शंकर भी टीम से बाहर हुए. भुवनेश्वर कुमार भी चोट की वजह से कुछ मैच ‘मिस’ कर चुके हैं.
ऐसे में अगर पांच गेंदबाजों में से किसी गेंदबाज को बीच मैच में कोई तकलीफ हो गई तो मैच भारत के हाथ से फिसल सकता है. बेहतर है कि गेंदबाजी में एक अतिरिक्त विकल्प रहे. यही अतिरिक्त विकल्प रवींद्र जडेजा के आने से मिलता है. यानी न्यूज़ीलैंड के खिलाफ प्लेइंग 11 की तस्वीर कुछ ऐसी दिखती है- केएल राहुल, रोहित शर्मा, विराट कोहली, ऋषभ पंत, महेंद्र सिंह धोनी, हार्दिक पांड्या, रवींद्र जडेजा, भुवनेश्वर कुमार, मोहम्मद शमी, युजवेंद्र चहल और जसप्रीत बुमराह. इससे बेहतर संतुलन शायद ही टीम इंडिया के पास हो.