नई दिल्ली: एशियन गेम्स 2018 के रेसलिंग में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर दिल्ली की रहने वाली दिव्या काकरान देश की शान बनी गई है. दिल्ली के गोकलपुर में रहने वाली दिव्या काकरान ने बेहद मुश्किल हालात में ट्रेनिंग करके ये पदक देश के नाम किया है. दिव्या की कहानी बेहद प्रेरणा देने वाली है. एबीपी न्यूज़ ने दिव्या से उनके संघर्ष और सफलता की पूरी कहानी जानी.
दिव्या का घर पूर्वी दिल्ली के पूर्व गोकलपुर में है. बेहद तंग गलियों में बने A 103 ईस्ट गोकलपुर के इस घर में देश की शान रहती है. पिछले 10 साल से दो कमरों के इसी घर में दिव्या का परिवार रहता है. हमें घर पर दिव्या मिली. दिव्या से हमने उनकी सफलता की पूरी कहानी जानी.
दिव्या का कहना है कि पूरा सफर बेहद मुश्किल भरा रहा. मैं सोच भी नहीं सकती थी यहां तक पंहुच सकती थी. लड़की होने की वजह से सब मना करते थे कि कुश्ती मत करवाओ लेकिन मेरे पापा ने कुश्ती जारी रखवाई. यहां तक आने में भाई, माता-पिता सबका योगदान है.
दिव्या ने कहा, ''दिल्ली आने के बाद भी मुश्किल कम नही हुई. दिल्ली को इतने मेडल दिए लेकिन दिल्ली ने कोई साथ नहीं दिया. दिल्ली सरकार ने कोई मदद नहीं की. केजरीवाल से मिलने गए थे. उन्होंने वादे किये थे लेकिन कुछ नहीं किया. उनका ध्यान बिजली पानी के अलावा कहीं और नहीं है. खेल की तरफ ध्यान नहीं है इसलिए मेडल नहीं आते हैं.''
मेडल जीतने के बाद कितने लोगों को बधाई संदेश आये इसके जवाब में दिव्या कहती हैं कि अनिल कपूर ने बधाई दी ऐसा सुना है. मोदी जी का आया था. लेकिन जिसको करना चाहिए था उन्होंने नहीं किया. अरविंद केजरीवाल ने नहीं किया. लेकिन अब उनसे उम्मीद टूट गयी. दिल्ली का यही हाल रहा तो कुछ नज़र नहीं आएगा दिल्ली का. इनाम के बारे में पता चला कि यूपी सरकार कांस्य के लिए 20 लाख रुपए दे रही है. हरियाणा में कांस्य को 75 लाख है. हरियाणा में सरकार सपोर्ट करती है. दिव्या साल 2011 से नवम्बर 2017 तक दिल्ली राज्य की तरफ से खेली. सुविधाओ के अभाव के चलते उन्होंने यूपी से खेलने का फैसला किया.
उन्होंने कहा, '' खुशी है कि मैं यहां तक पंहुची हूं. पहले एक कमरे का घर था, फिर दो कमरों का हुआ और अब तीन कमरों का है. वैसे भी मैं पैसों के लिए नहीं कर रही देश के लिए कर रही हूं. भगवान के आशीर्वाद से आज मैं यहां हूं.''
दिव्या कहती हैं हमारे खून में ही पहलवानी है. हमारी चौथी पीढ़ी है जो पहलवानी कर रही है. दिव्या खुद 7-8 साल से पहलवानी कर रही हैं. दिव्या में परदादा भी पहलवान थे.
दिव्या ने पुरुष पहलवानों को भी हराया है. पिता लंगोट बेचते थे जिससे खर्चा नहीं चल पाता था. इसलिए जब दिव्या पुरुष पहलवानों को हराती थी तो ठीक ठाक पैसे आ जाते थे जिससे डाइट अच्छी हो जाती थी. दिव्या ने कहा कि गरीबो का पैसा लगा है. दिव्या पहलवान सुशील को अपना आदर्श मानती हैं.
दिव्या का सपना है कि वो ओलंपिक में देश के लिए मेडल लेकर आये. दिव्या ने कहा की सरकार उन लोगों की मदद करे जो अफ़्फोर्ड नही कर सकते. एक पहलवान की ज़िंदगी में सपोर्ट की बहुत ज़रूरत होती. दिव्या को ओलंपिक गोल्ड कोस्ट उन्होंने मुझे स्पॉन्सर किया लेकिन हर किसी को नहीं मिलता. सरकार होती है जो सपोर्ट करती है.
आपको बता दें कि दिव्या के भाई देव भी पहलवानी करते थे. लेकिन बहन दिव्या के लिए उन्होंने अपनी पहलवानी 17 साल की उम्र में छोड़ दी थी और अपनी बहन की मदद करने लगे. अब देव खुश हैं. देव ने बताया की राखी पर इससे बड़ा गिफ्ट ही शायद किसी को मिला हो. इतनी कम उम्र में मेडल लेकर आयी है. इसलिए मैं बहुत खुश हूं. सबकी मेहनत सफल हो गयी. बस दिव्या का 2020 का ओलंपिक का टारगेट है. माता पिता घर पर फिलहाल नहीं हैं लेकिन वो बहुत खुश हैं.
दिव्या की कामयाबी में एक शख्स का और हाथ है वो हैं नीना. नीना दिव्या की पुरानी दोस्त हैं और पिछले दो साल दिव्या की डाइट का ख्याल रखती हैं. नीना कहती हैं ये जीतती है तो लगता है कि मैं ही जीती हूं. नीना दिव्या की डाइट का ख्याल रखती हैं. क्या खाना है क्या नहीं ये नीना ही तय करती हैं.