टेस्ट रैंकिंग में शिखर पर काबिज भारतीय टीम आज कोलकाता के ईडन गार्डन्स स्टेडियम में बांग्लादेश के साथ अपना पहला ऐतिहासिक डे-नाइट टेस्ट मैच खेलने उतरेगी. इस मैदान पर इंडियन टीम पहली बार दुनिया के नौवें नंबर की टीम बांग्लादेश के साथ कोई टेस्ट मैच खेलने जा रही है. यह मैच इस लिहाज से भी ऐतिहासिक है कि दोनों टीमें पहली बार पिंक बॉल से टेस्ट मैच खेलने के लिए मैदान में उतरेंगी. भारतीय टीम ने ईडन गार्डन्स मैदान पर अब तक कुल 41 टेस्ट मैच खेले हैं. इसमें उसने 12 मैचों में जीत दर्ज की है जबकि नौ में उसे हार का मुंह देखना पड़ा है और वहीं 20 मैच ड्रॉ रहे हैं.
टेस्ट क्रिकेट में डे-नाइट का फॉर्मेट बिल्कुल नया है और इसे इसलिए अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में इसलिए लाया गया है ताकि खेल के सबसे लंबे प्रारूप की गिरती हुई साख को दोबारा स्थापित किया जा सके और दर्शकों को मैदान पर खींचा जा सके. आमतौर पर दिन में खेले जाने वाले टेस्ट मैच में लाल गेंद का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन डे-नाइट टेस्ट मैच में पिंक बॉल का इस्तेमाल किया जाता है.
इस वजह से हुआ पिंक बॉल का इस्तेमाल
जब डे-नाइट टेस्ट मैच की बात चली तो सवाल यह था कि इसमें किस रंग की बॉल का इस्तेमाल किया जाए? रेड बॉल इस्तेमाल इसलिए नहीं की जा सकती थी क्योंकि इसका रंग अंधेरे में बल्लेबाजों को परेशानी पैदा करता. वनडे और टी-20 क्रिकेट भी डे-नाइट में खेला जाता है और वहां व्हाइट बॉल का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन रेड बॉल की अपेक्षा व्हाइट बॉल ज्यादा देर तक टिकती नहीं है. साथ ही टेस्ट में खिलाड़ियों के कपड़े भी व्हाइट होते हैं इसलिए व्हाइट बॉल का इस्तेमाल नहीं किया जा सका.
काफी सोचने के बाद पिंक बॉल पर अंतिम फैसला किया गया जिसका कारण गेंद की ड्यूरेबिलिटी और विजीविलिटी है. पिंक बॉल रेड बॉल से कुछ मायनों में अलग है जो इसकी बनावट से लेकर चमक तक में दिखाई पड़ता है. रेड बॉल को चमकाने के लिए वैक्स का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन पिंक बॉल में वैक्स की जगह पोलिश का इस्तेमाल किया जाता है. भारत और बांग्लादेश के बीच खेले जाने वाले टेस्ट में 'एसजी टेस्ट' बॉल का इस्तेमाल होगा.
ये है डे-नाइट टेस्ट का इतिहास
बता दें कि पहला इंटरनेशनल डे नाइट टेस्ट ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच नवंबर 2015 में खेला गया था. इस मैच को मेजबान टीम तीन विकेट से जीतने में कामयाब रही थी. इंडिया और ऑस्ट्रेलिया के बीच पिछले साल एडिलेड में खेला गया टेस्ट डे-नाइट ही होना था, लेकिन बोर्ड ने डे-नाइट टेस्ट खेलने से इंकार कर दिया था. वैसे इंडिया में डे-नाइट टेस्ट का इतिहास पुराना है. 1997 में दिल्ली और मुंबई के बीच ग्वालियर में खेला गया मैच डे नाइट ही था. हालांकि उस मैच में सफेद गेंद का इस्तेमाल किया गया था. इंटरनेशनल लेवल पर खेले जा रहे डे नाइट मुकाबलों में पिंक गेंद का इस्तेमाल हो रहा है. पिंक बॉल के साथ पहला फर्स्ट क्लास मुकाबला 2000 में वेस्टइंडीज में खेला गया. 2016 में भारत में दलीप ट्रॉफी में डे नाइट मुकाबले खेले गए.
डे-नाइट टेस्ट मैच के फायदे
कोलकाता के ईडन गार्डन में होने वाले इस डे-नाइट मुकाबले को लेकर देशभर में उत्साह नजर आ रहा है. इससे टेस्ट मैच खोई हुई लोकप्रियता वापस मिलेगी. बीसीसीआई के अध्यक्ष सौरव गांगुली का मानना है कि टेस्ट मैच के पारंपरिक प्रारूप में दिलचस्पी बढ़ाने के लिए टेस्ट क्रिकेट में बदलाव आएगा. एक समय था जब टेस्ट मैच को देखने के लिए भी दर्शकों की भारी भीड़ स्टेडियम में देखने को मिलती थी, लेकिन धीरे-धीरे पांच दिनों के टेस्ट मैच से लोगों की दिलचस्पी कम होने लगी जिसका असर मैदान पर भी देखने को मिला. वहीं अब टेस्ट मैच को डे-नाइट करने से टेस्ट मैच में लोगों की दिलचस्पी वापस बढ़ रही है.
डे-नाइट टेस्ट मैच के नुकसान
जहां इस टेस्ट मैच के कई फायदे हैं तो खिलाड़ियों को इस मैच में कई नुकसान भी उठाने पड़ सकते हैं. डे-नाइट में होने वाले इस मुकाबले में रात को मौसम खराब होने की संभावना बनी रहेगी. रात को गेंदबाजों को बॉलिंग करने में भी दिक्कतों को सामना करना पड़ सकता है. रात को फील्ड पर ड्यू गिरती है जिससे फील्डिंग करने में भी परेशानी होगी. हालांकि मैच के दौरान स्टेडियम में अच्छी खासी रौशनी देखने को मिलेगी लेकिन कई बार रौशनी को लेकर समस्या हो सकती है.
स्पिन है बड़ी चिंता
इसके अलावा भारतीय टीम को बॉल के कलर को लेकर भी चिंता है. अश्विन ने कहा है कि उन्हें नहीं मालूम यह पिंक बॉल है या ओरेंज. हालांकि बोर्ड के अधिकारियों ने दावा किया है कि बॉल को रिवर्स स्विंग करवाने में कोई परेशानी नहीं होगी. बोर्ड ने एक बयान जारी कर कहा था कि रिवर्स स्विंग में परेशानी ना हो, इसलिए बॉल की सिलाई हाथ से करवाई गई है.
यह भी देखें-