Exclusive: खराब आर्थिक स्थिति से लड़कर प्रो कबड्डी के जरिए बनाया नाम, जानें कैसा रहा छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी दुर्गेश का सफर
Durgesh Kumar PKL: किसान के बेटे दुर्गेश ने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया है और कई मुश्किलों को पार करते हुए यहां तक पहुंचे हैं.
Durgesh Kumar Pro Kabaddi League: प्रो कबड्डी लीग (PKL) का नौवां सीजन चल रहा है और इसमें तमाम खिलाड़ी अपना जलवा बिखेर रहे हैं. यूपी योद्धा की टीम में एक ऐसे खिलाड़ी को मौका मिला जिसने लीग में आते ही बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली. हम बात कर रहे हैं दुर्गेश कुमार की जो इस लीग में खेलने वाले छत्तीसगढ़ के पहले खिलाड़ी बने हैं. किसान के बेटे दुर्गेश ने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया है और कई मुश्किलों को पार करते हुए यहां तक पहुंचे हैं. दुर्गेश ने एबीपी न्यूज के साथ खास बातचीत में अपने संघर्षों के बारे में बताया है. आइए जानते हैं उन्होंने क्या कहा.
पिता किसान हैं और घर का खर्च किसानी से ही चलता है- दुर्गेश
परिवार के बारे में पूछने पर दुर्गेश ने बताया, "पिता किसान हैं और मेरा भाई भी कबड्डी खेलता है. पिता किसानी से जो पैसे कमाते हैं उससे ही घर का खर्च चलता है. मैं छह साल से कबड्डी खेल रहा हूं और पहले तो मुझे खेलने से मना किया जाता था. घरवालों का कहना था कि कुछ ऐसा काम करो जिससे कमाई हो और घर की मुसीबतें कम हों."
यूनिवर्सिटी गेम्स में हुई प्रतिभा की पहचान
दुर्गेश ने बताया, "मैं पहले गांव में ही खेलता था, लेकिन फिर जब मैंने यूनिवर्सिटी गेम्स खेला तो मेरी प्रतिभा की पहचान हुई. हेमंत सर ने मुझे वहां देखा और फिर मैं उनके क्लब में जाने लगा. उन्होंने मेरी लगातार मदद की और फिर मैंने छत्तीसगढ़ के लिए जूनियर तथा सीनियर नेशनल खेला. सर की मदद से ही मैं प्रो कबड्डी में भी पहुंचा हूं."
दोस्तों से उधार लेने पड़ते थे पैसे
आर्थिक तंगी के बारे में दुर्गेश ने बताया, "घर की हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि मैं अपनी डाइट के लिए उनसे पैसे ले सकूं. कबड्डी फिजिकल गेम है तो शरीर को मजबूत रखना मेरी प्राथमिकता थी और इसके लिए मुझे पैसों की जरूरत होती थी. कई बार ऐसा हुआ कि मैंने अपने दोस्तों से पैसे उधार लिए और अपनी डाइट का जुगाड़ किया."
यूपी की टीम में आने पर निशब्द थे दुर्गेश
यूपी की टीम से जुड़ने पर दुर्गेश ने बताया, "जब मैं पहली बार यहां आया तो प्रदीप नरवाल जैसे दिग्गजों को करीब से देखा. उन्हें देखने के बाद मेरे मुंह से कुछ नहीं निकला और मैं एकदम से चुप हो गया था. मैं लगातार सोच रहा था कि यदि उन्होंने कुछ पूछा तो उन्हें कैसे जवाब देना है. मेरे लिए भरोसा कर पाना मुश्किल था कि मैं यहां तक पहुंच गया हूं."
सीनियर खिलाड़ियों ने की खूब मदद
सीनियर खिलाड़ियों के बारे में दुर्गेश ने बताया, "कुछ दिन बीतने के बाद मैं नॉर्मल हुआ और सीनियर खिलाड़ियों से बातचीत शुरू हुई. सीनियर खिलाड़ियों ने मेरी मदद की और उन्होंने बताया कि मुझे क्या करना चाहिए. उन्होंने खेल की बारीकियों से लेकर डाइट तक मुझे काफी जानकारियां दी और इसका मुझे काफी लाभ भी हुआ है."
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