पूर्व भारतीय तेज गेंदबाज लक्ष्मीपति बालाजी नस्लवाद की निंदा करने वाले नवीनतम क्रिकेटर हैं जिन्होंने स्कूल में अत्यधिक सामाजिक दबावों का सामना किया. ऐसे में अब इस बारे में उन्होंने विस्तार से बात की. संयुक्त राज्य अमेरिका में मई के अंत में एक अश्वेत व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड की घटना ने सभी क्षेत्रों के लोगों से आगे आने और उसी पर अपने विचार व्यक्त करने का आग्रह किया है.


वेस्टइंडीज के क्रिकेटर डैरेन सैमी उन सक्रिय लोगों में से एक हैं, जिन्होंने सनराइजर्स हैदराबाद के अपने साथियों को नस्लीय शब्द का इस्तेमाल करने का दोषी ठहराया है. अन्य क्रिकेटर्स जिन्होंने अपनी आवाज़ उठाने में पीछे नहीं हटे हैं, वे हैं क्रिस गेल, माइकल कारबेरी और टिनो बेस्ट, यह बताते हुए कि रंग के आधार पर अंतर करना खेल में भी भारी है.


लक्ष्मीपति बालाजी ने दावा किया कि जीवन के सभी क्षेत्रों में, किसी व्यक्ति की कमजोरी को टारगेट किया जाता है. बालाजी ने कमेंटेटर अरुण वेणुगोपाल के चैट शो पर कहा, ''स्कूल, कॉलेज या औद्योगिक ईकाई सब जगह कमजोर को टारगेट करने की प्रवृत्ति है. भेदभाव को रोकने के लिए बहुत से नियम हैं. हालांकि अलग-अलग वर्गों, जातियों और देशों ने इस समस्या की गंभीरता को समझा है. उसी तरह जिस तरह दुनिया ने कोविड-19 की महामारी को पहचाना है. सब मिलकर ही इसके खिलाफ खड़े होंगे तो नस्लवाद समाप्त हो सकता है.''


यह देखना होगा कि कौन सा मास्क है, जो नस्लवाद और भेदभाव के वायरस को छिपा सकता है, जो हमारे मस्तिष्क को प्रभावित कर रहा है.'' बालाजी ने अपने शुरुआती दिनों को याद किया जब वह सातवीं क्लास में फेल हो गए थे और उन्हें हर तरफ से अपमान झेलना पड़ा था.''


उन्होंने कहा कि पेरेंट्स द्वारा बच्चों पर परफॉर्मेंस के लिए दबाव नहीं डालना चाहिए. उन्होंने कहा, ''जब मैं 12-13 साल का था तो सातवीं में फेल हो गया था. यदि आप मुझसे पूछेंगे तो एक ही क्लास में दोबारा बैठना अविश्वसनीय रूप से अपमानजनक है. यह इसलिए होता है कि बच्चे को लगता है कि उसने अपने पेरेंट्स को लेट डाउन किया है. इस चरण ने मुझे बुरी तरह प्रभावित किया.''