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शिखर समागम 2018: कहानी बनारस की ' सिंह सिस्टर्स' की, 5 बहनें जिन्होंने 'बास्केटबॉल' को बनाया अपना सपना

लड़किया लड़कों से कम नहीं बल्कि एक जवाब है, जो पढ़ाई पर जोर लगाते हैं उन्हें पता होना चाहिए कि खेल में भी बहुत कुछ किया जा सकता है और अपने देश का नाम रौशन किया जा सकता है. क्योंकि बेटियां किसी से कम नहीं.

नई दिल्ली: इस देश में कई ऐसे लोग है जिनके घर कोई लड़का पैदा होता है तो उन्हें ज्यादा खुशी होती है तो वहीं एक लक्ष्मी अगर जन्म लेती है तो वो निराश हो जाते हैं. खैर ये रवैया अब धीरे धीरे बदल रहा है लेकिन कई लोग अब भी ऐसे हैं जो अपने घर में बेटी को नहीं चाहते और अगर बेटी आती भी है तो वो उसे पढ़ा लिखाकर कुछ बड़ा बनाने या किसी खेल में दिलचस्पी दिखाने के अलावा उसकी छोटी सी उम्र में शादी कर उसका घर बसा देते हैं.

जकार्ता में एशियन गेम्स 2018 खेले जा रहे हैं. यहां कई खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं जिनमें कई महिलाएं भी शामिल हैं. भारत यहां अबतक कुल 67 मेडल्स जीत चुका है जिसमें 15 गोल्ड, 23 सिल्वर और 29 ब्रॉन्ज मेडल शामिल हैं. इन मेडल्स में लड़कियों के नाम कुल 30 मेडल हैं. इस बात से एक बात तो तय है कि अब भारत बदल रहा है. लड़कियां पढ़ाई के अलावा अब खेल में हिस्सा ले रही है और देश को मेडल दिलवा रहीं हैं. कुछ ऐसी ही कहनी बनारस के उस परिवार की भी जहां 5 बेटियों ने जन्म लिया था लेकिन आज सभी नेशनल लेवल की बास्केटबॉल खिलाड़ी है और कई टूर्नामेंट्स के साथ विदेशी टीमों को मात दे चुकी है.

शिखर समागम 2018: कहानी बनारस की ' सिंह सिस्टर्स' की, 5 बहनें जिन्होंने 'बास्केटबॉल' को बनाया अपना सपना

जी हां हम बात कर रहे हैं अकांशा, दिव्या, प्रशांति, प्रतिमा और प्रियंका की. इन 5 बहनों की कहानी भी कुछ ऐसी है जो आप अपने आसपास देखते हैं. इन बेटियों ने जब अपने घर में जन्म लिया था तो इनके माता- पिता इन्हें पढ़ा लिखाकर सरकारी नौकरी करवाना चाहते थे लेकिन शायद इनकी किस्तम को कुछ और ही मंजूर था. ये बेटियां जैसे ही 15 साल की हुई इन्होंने अपनी जिंदगी यानी की बास्केटबॉल को चुना और खेलना शुरू कर दिया. जिसका नतीजा ये हुआ कि बगल में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के कोच जो पुरूषों की टीम को कोचिंग देते थे उन्हें भी एक समय के लिए ऐसा लगा कि ये लड़किया ये सब कैसे कर पाएंगी.

इन बेटियों के पिता चाहते थे कि ये सरकारी नौकरी करें लेकिन इनकी मां इनका हमेशा सपोर्ट करती थीं. इस खातिर उन्हें कई तानों से भी गुजरना पड़ता था जहां कई आस पड़ोस के लोग इन बहनों को शॉर्ट्स, टीशर्ट में देख  इनकी मां को ताना मारते थे तो वहीं ये भी कहते थे कि इन लड़कियों को क्या करवाया जा रहा है?  ये क्यों लड़कों के बीच में खेलती हैं? जिसका जवाब इनकी मां सिर्फ यही कहकर देती थीं कि, ये आप लोगों पर निर्भर करता है कि आप किसे लड़का और लड़की मानते हैं मैं ने इन्हें अब भी बच्ची समझती हूं जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत कर रही हैं.

शिखर समागम 2018: कहानी बनारस की ' सिंह सिस्टर्स' की, 5 बहनें जिन्होंने 'बास्केटबॉल' को बनाया अपना सपना

इन बहनों की कहानी ठीक किसी बॉलीवुड फिल्म की तरह है. इन बहनों को 'सिंह सिस्टर्स' के नाम से जाना जाता है. बता दें कि अकांशा महिला बास्केटबॉल टीम की कप्तान रह चुकी हैं. प्रशांति को अर्जुना अवार्ड मिल चुका है. सिंह सिस्टर्स ने देश के लिए कई खिताब जीते हैं. बनारस की सिंह सिस्टर्स आज देश की शान हैं. प्रशांति भारत की पहली महिला बास्केटबॉल खिलाड़ी है जिन्हें अर्जुना अवार्ड से नवाजा जा चुका है.

पापा चाहते थे हम UPSC क्लियर करें

प्रियंका ने बताया कि, 'पापा स्पोर्ट्स को कम पसंद करते थे. मां ज्यादा करती थीं. हमारा एक छोटा भाई भी है. हम पढ़ाई में काफी अच्छे थे लेकिन पापा चाहते थे कि एक बच्चा यूपीएससी में निकले. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और हम पांचों ने बास्केटबॉल को चुना. आज पापा हमारी कामयाबी से काफी खुश हैं तो वहीं हमारी मां भी हमें काफी सपोर्ट करती हैं. हमें काफी खुशी महसूस होती है कि हमारा जन्म ऐसे परिवार में हुआ जिसने हमारे सपनों को समझा और उसे पाने में हमारी मदद कि.

बास्केटबॉल खेलने की शुरूआत सबसे पहले दिव्या ने की. जिसके बाद सभी इस खेल को खेलती गई. प्रशांति पिछले 15 साल से बास्केटबॉल खेल रहीं हैं.

शिखर समागम 2018: कहानी बनारस की ' सिंह सिस्टर्स' की, 5 बहनें जिन्होंने 'बास्केटबॉल' को बनाया अपना सपना

क्रिकेटर इशांत शर्मा की पत्नी है प्रतिमा

प्रतिमा क्रिकेटर इशांत शर्मा की पत्नी है. तो वहीं प्रशांति उनकी साली है. प्रशांति बताती है कि, ' बास्केटबॉल में हम इनती अच्छी थीं कि हमें कोई भी लड़की टक्कर नहीं दे पाती थीं तब हम लड़कों के साथ खेलती थी. बचपन में जब हम अपने सिर के बाल कटवाने के लिए जाते थे तो हमारे बाल लड़कों की तरह काट दिए जाते थे जिससे लड़कों को पता हीं नहीं चलता था कि हम लड़के हैं या लड़की. लेकन जब हम उनके बीच गए तो उन्हें झटका लगा और लड़के मैदान छोड़कर भाग गए.

बास्केटबॉल पुरूष टीम को कोच कर चुकी है दिव्या

दिव्या बताती हैं कि जब उन्होंने बास्केटबॉल की कोचिंग की शुरूआत कि तो उन्होंने लड़कियों और लड़कों में दो फर्क देखा. पहला कि वो जब भी किसी लड़की को किसी गलत गेम या काम के लिए डांट लगाती थीं तो सारी लड़कियां उस डांट को देख या सुनकर सुधर जाती थी. लेकन लड़कों के मामले में ये बिलकुल उलट था जहां एक लड़का कोई गलत काम करता था तो सारे लड़के गलती करने लगते थे. जिसे सुधारने के लिए उन्हें मार भी पड़ती थी.

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आकांशा कर चुकी है बास्केटबॉल लीग का आयोजन

आकांशा दिल्ली में लीग आयोजन करवा चुकी हैं. आकांशा बताती हैं कि, ' एक बार उन्हें दिल्ली यूनिवर्सिटी से कोचिंग देने के लिए ऑफर था. उस समय मैं यूपी की बेस्ट प्लेयर थी. मैं इस खेल में कुछ करना चाहती थी इसे आगे बढ़ाने चाहती थी. जिसे लेकर मैंने एक लीग का आयोजन किया जहां सभी कॉलेज के खिलाड़ियों को शामिल किया गया. फंडिग नहीं मिली लेकिन ये लीग भी नहीं रूका और सारे खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया.

पांचों बहनों पर बनने वाली थी फिल्म

सिंह सिस्टर्स की इन उपलब्धियों पर फिल्म बनने वाली थी जिसका नाम '4पीएम ऑन द कोर्ट' था. लेकिन किसी कारण ये मुमकिन नहीं हो पाया. पांचों बहनों का मानना है कि अगर आगे चलकर ऐसा कुछ होता है तो इन बहनों को काफी खुशी होगी. बता दें कि प्रशांति कई फैसन कवर मैग्जिन पर भी आ चुकी हैं.

क्रिकेट और बास्केटबॉल का कनेक्शन

दिव्या बताती हैं कि, ' इशांत शर्मा से उनकी मुलाकात एक टूर्नामेंट के दौरान हुई. हमारे कॉलेज में हमारे कई ऐसे दोस्त थे जो क्रिकेट खेलते थे. इशांत भी वहां आते थे. एक बार हमने इशांत को एक टूर्नामेंट में चीफ गेस्ट के तौर पर बुलाया था. जिसके बाद उनके और मेरे परिवार के बीच बात हुई और फिर बात आगे बढ़ी. दिव्या आगे बताती हैं कि इशांत काफी शर्मिले हैं और हम क्रिकेट तभी देखते हैं जब वो बॉलिंग करने के लिए आते हैं.

इंटरव्यू के दौरान तीनों बहनों ने कहा कि बास्केटबॉल एक ग्लोबल खेल है जो काफी मशहूर है लेकिन भारत में अभी भी इस खेल को वो पहचान नहीं मिली है. उन्होंने आगे कहा कि टीम जीतती है तो कोई याद नहीं करता लेकिन अकेले कोई जीतता है तो सब याद करते हैं. इसलिए इस खेल को भारत में एक नया मुकाम पाने में समय लगेगा.

सिंह सिस्टर्स का मानना है कि लड़किया लड़कों से कम नहीं बल्कि एक जवाब है, जो पढ़ाई पर जोर लगाते हैं उन्हें पता होना चाहिए कि खेल में भी बहुत कुछ किया जा सकता है और अपने देश का नाम रौशन किया जा सकता है. क्योंकि बेटियां किसी से कम नहीं.

यहां देखें पूरा इंटरव्यू: 

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