हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की आज 41वीं पुण्यतिथि है. ध्यानचंद के दीवानों की लिस्ट में क्रिकेट के सर्वकालिक महान बल्लेबाज सर डॉन ब्रैडमैन का नाम भी शुमार है. ब्रैडमैन ने 1935 में ध्यानचंद से मुलाकात की थी. उन्होंने ध्यानचंद के बारे में कहा था कि वह ऐसे गोल करते हैं जैसे क्रिकेट में रन बनाए जाते हैं. ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 ओलंपिक में हॉकी में भारत को तीन गोल्ड दिलाया है.


साल 1928: पहली बार ओलंपिक खेलने गए ध्यानचंद ने इस पूरे टूर्नामेंट में अपनी हॉकी का ऐसा जादू दिखाया कि मानो विरोधी टीमें उन्हें मैदान पर देखकर ही डरने लगीं. 1928 में नीदरलैंड्स में खेले गए ओलंपिक में ध्यानचंद ने 5 मैच में सबसे ज्यादा 14 गोल किए और भारत को गोल्ड मेडल जिताया. इस जीत के बाद बोम्बे हार्बर में हजारों लोगों ने टीम का जोरदार स्वागत किया.


साल 1932: पिछले ओलंपिक के करिश्मे को दोहराने में ध्यानचंद को कोई भी परेशानी नहीं हुई. 1932 में लोस एंजलिस में खेले गए ओलंपिक में जापान के खिलाफ अपने पहले ही मुकाबले को भारत ने 11-1 से जीत लिया. इतना ही नहीं इस टूर्नामेंट के फाइनल में भारत ने यूएसए को 24-1 से हराकर एक ऐसा वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया जो साल 2003 में जाकर टूटा.


साल 1936: ध्यानचंद के लिए ये ओलंपिक सबसे ज्यादा यादगार रहा. ध्यानचंद की कप्तानी में बर्लिन पहुंची भारतीय टीम से एक बार फिर गोल्ड की उम्मीद थी. भारतीय टीम इस टूर्नामेंट में भी उम्मीदों पर खरी उतरी और विरोधी टीमों को पस्त करते हुए फाइनल तक पहुंची. फाइनल में भारत की भिड़ंत जर्मन चांसर एडोल्फ हिटलर की टीम जर्मनी से होनी थी.


इस मैच को देखने के लिए खुद हिटलर भी पहुंचा था. लेकिन हिटलर की मौजूदगी या गैर-मौजूदगी से भारतीय टीम या ध्यानचंद के प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ने वाला था. हालांकि इस मैच से पहले भारतीय टीम तनाव में थी क्योंकि इससे पहले वाले मुकाबले में भारतीय टीम को जर्मनी से हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन मैदान पर उतरने के बाद वो तनाव खुद बा खुद दूर हो गया.


हिटलर के सामने ध्यानचंद ने जर्मनी को हराया


मैच के पहले हाफ में जर्मनी ने भारत को एक भी गोल नहीं करने दिया. इसके बाद दूसरे हाफ में भारतीय टीम ने एक के बाद एक गोल दागने शुरु किए और जर्मनी को चारो खाने चित कर दिया. हालांकि दूसरे हाफ में जर्मनी भी एक गोल दागने में सफल रही जो कि इस ओलंपिक में भारत के खिलाफ लगा एकमात्र गोल था.


इस मैच के खत्म होने से पहले ही हिटलर ने स्टेडियम छोड़ दिया था क्योंकि वो अपनी टीम को हारते हुए नहीं देखना चाहता था. इतना ही नहीं इस मैच के दौरान हिटलर ने मेजर ध्यानचंद की हॉकी स्टिक भी चेक करने के लिए मंगवाई. बताया जाता है कि मैच के बाद मेजर ध्यानचंद को हिटलर ने मिलने के लिए बुलाया और उन्हें जर्मन आर्मी में सीनियर पोस्ट ऑफर की. लेकिन ध्यानचंद ने इसे सिरे से नकार दिया था.


जब ध्यानचंद की स्टिक तोड़ दी गई थी

ध्यानचंद इस खेल में माहिर माने जाते थे, उनके गोल करने की कला से सभी चकित थे. इसके लिए उनकी हॉकी स्टिक को ही तोड़ कर जांचा गया. नीदरलैंड्स में ध्यानचंद की हॉकी स्टिक तोड़कर यह चेक किया गया था कि कहीं इसमें चुंबक तो नहीं लगी है.

क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने दागा करियर का 750वां गोल, युवेंटस ने डायनामो कीव को 3-0 से हराया

Farmers Protest: किसानों के समर्थन में शुभमन गिल का परिवार, कुछ सदस्य सिंघु बॉर्डर पहुंचे