रहने को छत और खाने को रोटी नहीं, गुरुद्वारे में निकाले 8 महीने, रातभर काम कर अपना पेट पाल रहा यह नेशनल एथलीट
Indian Athelete: राहुल 13 साल की उम्र से अपनी जिम्मेदारियां खुद उठा रहे हैं. वह रातभर काम करते हैं और दिन में अपनी प्रैक्टिस करते हैं. वह तीन बार दिल्ली स्टेट टूर्नामेंट में मेडलिस्ट रह चुके हैं.
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National level Athlete's Struggle: राहुल की उम्र 25 साल है. पिछले 11 साल से वह पश्चिमी दिल्ली स्थित एक डेरी में नाइट शिफ्ट कर रहे हैं. वह यहां कोल्ड स्टोर में दूध के पैकेट ट्रक में लोड करने का काम करते हैं. रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक वह लगातार इस काम में जुटे रहते हैं और फिर सुबह होते ही वह अपने सपनों की ओर कदम बढ़ा देते हैं. वह दिन में जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में ट्रेनिंग करते हैं.
राहुल एक धावक हैं, जो मध्यम दूरी से लेकर लंबी दूरी की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते रहे हैं. वह तीन बार के दिल्ली स्टेट मेडलिस्ट भी रहे हैं. यह मेडल उन्होंने नाइट शिफ्ट में काम करते-करते ही हासिल किए हैं. सबसे पहली बार उन्होंने साल 2016 में अंडर-20 स्टेट टूर्नामेंट में 10 किमी दौड़ प्रतियोगिता में ब्रॉन्ज जीता था. उनके एक बक्से में स्टेट ट्रॉफियों के साथ-साथ अलग-अलग स्तर पर खेली गई कई ट्रॉफियां भरी पड़ी हैं.
13 साल की उम्र से अकेले रह रहे हैं
राहुल की कहानी थोड़ी इमोशनल करने वाली है. जब वह महज 4 साल के थे, तभी उनके पिता गुजर गए. वह यूपी के बुलंदशहर के पास स्थित सिकरपुर के रहने वाले हैं. 10 साल की उम्र में वह अपने भाई के साथ दिल्ली आ गए थे. उनके भाई एक फूड एप कंपनी में डिलीवरी एजेंट हैं. 13 साल की उम्र तक तो राहुल अपने भाई के साथ ही रहे लेकिन फिर उनके भाई ने उन्हें साफ कह दिया कि वह उनका खर्चा नहीं उठा सकते. ऐसे में महज 13 साल की उम्र में राहुल के सिर पर न तो छत रह गई थी और न ही खाने के लिए रोटी थी. उनकी जैब में पैसे भी नहीं थे. वह अपने बैग में अपने कपड़े भरकर भाई के घर से चल दिए थे.
गुरुद्वारे में बिताए 8 महीने
बेघर राहुल को यहां एक गुरुद्वारे का सहारा मिला. पूरे आठ महीने राहुल गुरुद्वारे में ही रहते और लंगर में सेवा करते और फिर वहीं खाना भी खाते. इस बीच राहुल ने अपनी पढ़ाई भी नहीं छोड़ी. वह नियमित रूप से दिल्ली के सरकारी स्कूल में जाते रहे. यहीं उन्हें एक दोस्त के पिता ने डेरी में मिल्क पैकेट लोड करने के काम पर लगा दिया. इसके बाद से वह पिछले 11 साल से यही काम करते आ रहे हैं.
दिलचस्प है एथलीट बनने की कहानी
छोटी सी उम्र में इतने संघर्ष के बीच राहुल के एथलीट बनने की कहानी भी दिलचस्प रही. दरअसल, नौकरी मिलने के बाद जब उन्होंने दिल्ली में एक किराए से एक कमरा लिया तो वहां मकान मालिक का लड़का पुलिस इंट्रेस की तैयारी के लिए रनिंग करने जाता था. राहुल भी उनके साथ दौड़ने जाने लगे. मकान मालिक का लड़का तो एग्जाम क्लीयर नहीं कर पाया लेकिन राहुल को दौड़ने का शौक लग गया. इसके बाद राहुल ने स्कूल लेवल से लेकर नेशनल लेवल तक कई टूर्नामेंट में हिस्सा लिया और मेडल भी जीते.
अपने सपनों को जिंदा रखे हुए हैं राहुल
स्पोर्ट्स में राहुल की उपलब्धियों के चलते उन्हें दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज में एडमिशन भी मिल गया, लेकिन राहुल अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सके. दरअसल उनकी नाइट शिफ्ट सुबह 6 बजे खत्म होती थी, 7 बजे वह घर पहुंचते थे और 8 बजे क्लासेस शुरू हो जाती थी. ऐसे में उनके लिए पढ़ाई जारी रखना बेहद मुश्किल था. ऐसे में उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा. फिलहाल, राहुल अपने सपनों को पाले हुए हैं और रोजाना की तरह काम से लौटकर कुछ देर आराम करने के बाद मैदान पर रनिंग के लिए पहुंच जाते हैं.
(नोट: इस स्टोरी का इनपुट इंडियन एक्सप्रेस से लिया गया है)
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