भारतीय पुरुष हॉकी टीम की ढाल स्टार गोलकीपर श्रीजेश का सपना टोक्यो ओलंपिक में आखिरकार पूरा हो गया. पिछले तीन ओलंपिक से टीम इंडिया का प्रतिनिधित्व करने वाले गोलकीपर श्रीजेश भारतीय टीम के जीत के नायक बने. भारत ने कांस्य पदक के लिए हुए मुकाबले में जर्मनी को 5-4 से हरा दिया. भारत की इस जीत के साथ ही ओलंपिक में इतिहास रच दिया है. दरअसल भारत ने हॉकी में 41 साल बाद ओलंपिक मेडल पर कब्जा किया. टोक्यो ओलंपिक में भारत की इस कामयाबी के पीछे गोलकीपर श्रीजेश का योगदान काफी महत्वपूर्ण रहा. उन्होंने ओलंपिक के इस सफर में कई मौकों पर विरोधी टीम को गोल करने से रोककर टीम को हार से बचाया.


सेमीफाइनल में हार के बाद बढ़ाया हौसला


अपने आखिरी ओलंपिक में भारत के लिए उतरने वाले स्टार गोलकीपर श्रीजेश ने भारतीय टीम का उस वक्त हौसला बढ़ाय जब टीम सेमीफाइनल में बेल्जियम के हाथों 2-5 से हार गई थी. पूरी टीम इस हार से निराश थी. उस वक्त श्रीजेश ने अपने अनुभव का परिचय देते हुए पूरे टीम का हौसला बढ़ाया और कहा कि “बेल्जियम से मिली हार अब अतीत की बात है और अभी हमे पदक जीतकर लौटने पर ध्यान देने की जरूरत है. निराश या चिंतित होने का समय हमारे पास बिल्कुल नहीं है. हमें भविष्य के बारे में सोचना होगा और हार से सीख लेकर पदक जीतने की ओर ध्यान देना होगा”.


कड़ी मेहनत और लंबे इंतजार के बाद सपना हुआ पूरा


दुनिया के बेहतरीन हॉकी गोलकीपरों में शुमार श्रीजेश ने 2006 में भारतीय टीम में एंट्री की थी. भारत के लिए एंट्री के वक्त से ही उनका बस एक ही सपना था कि वह ओलंपिक में देश के लिए मेडल लेकर आएं. उन्होंने इस सपने के लिए बहुत कड़ी मेहनत की और कई मुसीबतों का डट कर सामना किया.  अपने 15 साल के हॉकी करियर के आखिरी मोड़ पर श्रीजेश का सपना आखिरकार सच हो गया, और उन्होंने टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक अपने नाम किया.


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