इंग्लैंड हर मामले में क्रिकेट का अग्रणी रहा है. एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ और फिर पहला टेस्ट मैच उसी टीम के खिलाफ खेलने के बाद, इंग्लैंड कई मायनों में 'क्रिकेट का घर' रहा है. इसलिए, यह माना जा रहा था कि क्रिकेट के नए फॉर्मेट ने भी इंग्लैंड में ही जन्म लिया. हां, टी 20 क्रिकेट ने भी इंग्लैंड में ही अपनी जड़ें जमाई क्योंकि इसे पहली बार 2003 में काउंटी चैंपियनशिप में अपनाया गया था. इसने लोकप्रियता को आईसीसी और अन्य देशों को अंततः प्रारूप को गंभीरता से लेने के लिए प्रेरित किया और 20-20 क्रिकेट भी एक अंतर्राष्ट्रीय फॉर्मेट बन गया.


इस फॉर्मेट का पहला वैश्विक कार्यक्रम, वर्ल्ड टी 20, 2007 में दक्षिण अफ्रीका द्वारा आयोजित किया गया था. दूसरा संस्करण 2009 में ब्रिटिश द्वीप समूह में आयोजित किया गया था और फिर 5 जून को लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड पर इस फॉर्मेट की एक चौंकाने वाली शुरुआत हुई


ग्यारह साल पहले, इंग्लैंड की साल 2009 के वर्ल्ड टी20 के शुरुआती मैच में नीदरलैंड्स की टीम के साथ टक्कर हुई . यह मेजबानों के लिए एक आसान मैच था क्योंकि वो पहला मैच जीतकर टूर्नामेंट की शुरूआत बेहतरीन ढंग से करना चाहते थे. लेकिन इसके बजाय यह एक प्रतियोगिता में बदल गया. मेजबानों ने पहले बल्लेबाजी की और रवि बोपारा (46) और ल्यूक राइट (71) द्वारा टीम को सही शुरुआत दी गई.


दोनों ने मिलकर पहले विकेट के लिए 102 रनों की साझेदारी की और इंग्लैंड ने 200 का स्कोर बना दिया. लेकिन एक बार साझेदारी टूटने के बाद नीदरलैंड्स की टीम इंग्लैंड पर भारी पड़ी. अब नीदरलैंड्स की बल्लेबाजी थी और टॉम डी ग्रूथ ने 30 गेंदों में 49 रन की पारी खेली. कप्तान पीटर बोरन ने 30 रन बनाए और अंत में नीदलैंड की टीम को आखिरी ओवर में जीत के लिए 7 रनों की जरूरत थी.


स्टुअर्ट ब्रॉड को आखिरी ओवर दिया गया लेकिन उन्होंने पहले ही टेन डोयछेट का कैच छोड़ दिया. अब आखिरी की गेंद पर 2 रन चाहिए थे. एडगर शिफर्ली ने सीधे गेंद मारी जहां गेंद स्टम्प्स से टकराई और फिर ओवरथ्रो मिलने के लिए नीदरलैंड की टीम बाकी के रन लेने में कामयाब हो गई और टीम ने पहले ही मैच में बड़ी टीम को हराकर इतिहास रच दिया.