(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
#HappyBirthdayDada: डेब्यू में शतक, कप्तान और फिर BCCI चीफ, ऐसा रहा सौरव गांगुली का सफर
पूर्व भारतीय कप्तान और वर्तमान BCCI अध्यक्ष सौरव गांगुली आज अपना 48वां जन्मदिन मना रहे हैं. जानिए डेब्यू मैच में शतक लगाने से लेकर BCCI चीफ बनने तक उनका सफर कैसा रहा.
कोलकाता: क्रिकेट जगत में 'दादा' और 'बंगाल ऑफ टाइगर' के नाम से मशहूर पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली आज अपना 48वां जन्मदिन मना रहे हैं. गांगुली का जन्म 08 जुलाई, 1972 को कोलकाता में हुआ था. सौरव के पिता चंडीदास कोलकाता के एक मशहूर बिज़नेसमैन थे. दादा का बचपन बेहद रईसी में गुज़रा है, इसी कारण बचपन में लोग उन्हें 'महाराजा' के नाम से बुलाते थे. गांगुली ने अपने बड़े भाई स्नेहाशीष को देखकर क्रिकेट खेलना शुरू किया. स्नेहाशीष भी बंगाल क्रिकेट टीम का हिस्सा रहे हैं. क्षेत्रीय क्रिकेट में लगातार शानदार प्रदर्शन के कारण दादा को 1989 में फर्स्ट क्लास क्रिकेट में डेब्यू करने का मौका मिला.
शुरुआत से गुस्सैल थे दादा
घरेलू क्रिकेट में लगातार अच्छा प्रदर्शन करने के कारण दादा को 1992 में वेस्टइंडीज़ के खिलाफ वनडे क्रिकेट में डेब्यू करने का मौका मिला. हालांकि, अपने पहले मैच में छठे नंबर पर बल्लेबाज़ी करते हुए दादा सिर्फ तीन रन बनाकर पवेलियन लौट गए. इसके बाद गांगुली को टीम से बाहर कर दिया गया. कई लोगों का मानना था कि गांगुली अपने गुस्सैल रवैये के कारण टीम से बाहर हुए थे. कहा जाता है कि गांगुली उस वक्त अपने साथी खिलाड़ियों के लिए ड्रिंक ले जाने के लिए साफ इनकार करते थे, क्योंकि उन्हें ये पसंद नहीं था. इसके साथ ही उन्हें बहुत "अहंकारी" भी माना जाता था. इसी कारण उन्हें टीम से ड्रॉप कर दिया गया.
डेब्यू टेस्ट में इंग्लैंड के खिलाफ लगाया शतक
वनडे टीम से बाहर होने के बाद दादा ने घरेलू क्रिकेट में अपनी शानदार फॉर्म जारी रखी. 1994-95 रणजी ट्रॉफी और 1995 दिलीप ट्रॉफी में उन्होंने अद्भुत प्रदर्शन किया. इसके बाद 1996 में दादा को टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू करने का मौका मिला. अपने पहले टेस्ट में इंग्लैंड के खिलाफ लॉर्ड्स के मैदान पर दादा ने 131 रनों की शानदार पारी खेली. इसके अगले मैच में भी गांगुली ने शतक लगाया और टीम में अपना स्थान सुनिश्चित कर लिया.
2000 में मिली कप्तानी
1996 से 2000 के बीच दादा टेस्ट और वनडे दोनों में भारतीय टीम के नियमित सदस्य बन गए. 2000 में जब दिग्गज बल्लेबाज़ सचिन तेंदुलकर ने कप्तानी छोड़ी तो दादा को टीम का नेतृत्व करने का मौका मिला. इसके बाद गांगुली ने अपनी पहचान एक आक्रामक कप्तान के रूप में बना ली, जिसे हर हाल में जीत चाहिए थी. दादा ने अपनी कप्तानी में युवराज सिंह, हरभजन सिंह, मोहम्मद कैफ, वीरेंद्र सहवाग और ज़हीर खान जैसे कई खिलाड़ियों को टीम में शामिल किया, जिन्होंने कामयाबी की नई इबारत लिखी. साल 2002 में इंग्लैंड के खिलाफ नेटवेस्ट सीरीज का फाइनल मैच भला कौन भूल सकता है. लॉर्ड्स की बालकनी में टीशर्ट उतारकर लहराने वाले गांगुली ने उसी दिन बता दिया था कि आने वाला समय भारतीय टीम का है.
2003 विश्व कप फाइनल
कप्तान बनने के कुछ साल बाद ही सौरव गांगुली ने टीम को चैम्पियंस ट्रॉफी और वर्ल्ड कप के फाइनल तक का सफर तय कराया. इस दौरान उन्होंने बल्ले से भी टीम के लिए शानदार प्रदर्शन जारी रखा. गांगुली की कप्तानी में ही भारतीय टीम ने विदेश में जीत की नींव रखी. विदेश सरज़मीन पर 11 टेस्ट जीतने वाले गांगुली हमेशा खुद से पहले टीम के बारे में सोचने के लिए जाने जाते थे. सहवाग को टीम में बनाए रखने के लिए उन्होंने खुद ओपनिंग स्लॉट त्याग दिया. हालांकि, आज भी दादा क्रिकेट पत्रिका विस्डन की सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ों की लिस्ट में छठे नंबर पर शामिल हैं.
निराश होकर लिया संन्यास
2008 में दादा को कप्तानी के पद से हटा दिया गया. इसके बाद उन्हें टीम से भी बाहर कर दिया गया. हालांकि, गांगुली इस पर काफी मायूस हुए थे. इसके कुछ महीनों बाद ही उन्होंने संन्यास की घोषणा कर दी. इंटरनेशनल क्रिकेट में दादा के नाम साढ़े 18 हजार से ज्यादा रन हैं, जिसमें 38 शतक शामिल हैं.
2019 में बनें BCCI चीफ
क्रिकेट को अलविदा कहने के बाद गांगुली बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे. यहां लंबे अर्से तक शानदार काम करने के बाद 23 अक्टूबर, 2019 को उन्हें एक बार फिर बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी गई. इस बार दादा को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का 'बॉस' बनाया गया. गांगुली के बीसीसीआई चीफ बनने के बाद खिलाड़ियों में गज़ब का उत्साह देखा गया. अब कई पूर्व खिलाड़ी दादा को ICC की जिम्मेदारी संभालते हुए देखना चाहते हैं.
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