कई साल पहले सुनील गावस्कर के समकालीन एक खिलाड़ी ने मुझे बताया था कि एक बार जब गावस्कर ऑउट ऑफ फॉर्म थे तो उनकी आंखें भर आई थीं. ऐसा इसलिए क्योंकि गावस्कर समझ नहीं आ रहा था कि उनसे बल्लेबाजी में गलती कहां हो रही है. उनके बल्ले से निकला जो शॉट सीधे कवर बाउंड्री तरफ जाता था वही शॉट खेलने खेलते वक्त गेंद उनके बल्ले का बाहरी किनारा लेते हुए स्लिप में या विकेटकीपर के हाथों में चली जा रही थी.
ऐसा दुनिया के बड़े बड़े खिलाड़ियों के साथ हुआ है. गावस्कर का नाम लेने के पीछे सिर्फ इस बात को समझना भर है कि किसी भी खेल में खिलाड़ी के लिए ‘फॉर्म’ या ‘आउट ऑफ फॉर्म’ में होने का फर्क क्या है. खेलों की दुनिया में बाकयदा एक वाक्य या कहावत कही जाने लगी कि ‘फॉर्म इज टैंपरेरी, क्लास इज परमानेंट’. लेकिन क्या ये वाक्य या कहावत भारतीय टीम के कप्तान विराट कोहली की डिक्शनरी में आता है. शायद नहीं...ऐसा नहीं कि विराट कोहली कभी आउट ऑफ फॉर्म नहीं हुए हैं.
करीब दो साल पहले एक वक्त आया था जब उन्हें भी रन बनाने में तकलीफ हो रही थी. लेकिन उसके बाद विराट कोहली जिस तरह से बल्लेबाजी कर रहे हैं उससे लगता है कि उनकी डिक्शनरी में ‘आउट ऑफ फॉर्म’ जैसा कोई वाक्य है ही नहीं. वो ये साबित करते हैं कि ‘फॉर्म’ या ‘आउट ऑफ फॉर्म’ दिमाग की दो ‘स्टेज’ हैं इससे ज्यादा कुछ नहीं.
दिल से नहीं दिमाग से खेल कर मिलती है ऐसी जीत
ये बात तो हर कोई जानता है कि 351 रन के लक्ष्य का पीछा करते हुए 63 रन पर चार विकेट गिर जाएं तो उसके बाद जीत आसान नहीं होती. ऐसे मुश्किल वक्त में विराट कोहली अपने दिमाग से खेलना शुरू करते हैं. थोड़ी देर में वो मैच को अपने नियंत्रण में कर लेते हैं. सामने क्रीज पर केदार जाधव को भी मैच की रफ्तार के बारे में समझाते हैं. दुनिया के हर खेल में मैदान में उतरने वाला हर खिलाड़ी जीत के लिए ही उतरता है. कोई भी खिलाड़ी मैदान में हारने के लिए नहीं उतरता लेकिन विराट कोहली का खेल देखकर ये कहा जा सकता है कि उन्हें अपनी चाहत को हकीकत में बदलने की प्रक्रिया का अंदाजा शानदार ढंग से हो गया है.
विराट का दिमाग ‘इनफॉर्म’ रहता है
काश कोई ऐसा विज्ञान होता जिससे विराट कोहली के दिमाग की ‘स्टडी’ की जा सकती होती. निश्चित तौर पर यही बात निकल कर आती कि मैदान में उतरने के बाद उनका दिमाग ‘इनफॉर्म’ रहता है. इस बात को आप उनकी बल्लेबाजी के अंदाज से समझ सकते हैं. जो विराट कोहली टेस्ट क्रिकेट खेलते वक्त कोई भी शॉट हवा में खेलने से कतराते हैं वहीं विराट कोहली जब वनडे क्रिकेट खेलते हैं तो ऐसा लगता है कि दुनिया में उनसे बड़ा कोई ‘हिटर’ ही नहीं है.
इस बात का अंदाजा दुनिया के हर बल्लेबाज को अच्छी तरह रहता है कि टेस्ट क्रिकेट और वनडे क्रिकेट में बल्लेबाजी का अंतर कितना बड़ा है. लेकिन उसे लागू कैसे करना है, उसके साथ खुद को कैसे बदलना है ये मौजूदा दौर में विराट कोहली से बेहतर कोई नहीं जानता. वो अलग अलग ‘फॉर्मेट’ में अलग अलग अंदाज से बल्लेबाजी करते हैं.
एक अलग लेवल पर है विराट की फिटनेस
इस वक्त विराट कोहली की फिटनेस बिल्कुल अलग ‘लेवल’ पर है. जिस ‘लेवल’ की फिटनेस फुटबॉल या टेनिस के खेल में जरूरी होती है विराट कोहली उस ‘पीक’ पर हैं. ये बात उन्हें हर दिन समझ आती है कि मौजूदा क्रिकेट की सारी कहानी ‘फिटनेस’ पर ही निर्भर रहती है. ‘जिम’ में वो जितनी मेहनत करते हैं उसका असर उनकी फिटनेस में दिखता है. उनकी ‘रनिंग बिटवीन द विकेट’ देखकर कई बार आंखों को यकीन ही नहीं होता कि पलक झपकते वो कहां से कहां पहुंच गए.
पुणे वनडे में कुछ मौकों पर देखा गया जब विराट कोहली अपनी ‘क्रीज’ छोड़कर ‘सिंगल’ लेने के लिए काफी आगे आ गए थे लेकिन केदार जाधव ने उन्हें वापस भेंजा. यही फर्क है जो खिलाड़ियों की फिटनेस का अंदाजा देता है. विराट कोहली के आउट होने के बाद केदार जाधव की नसें खींच गई थीं वरना क्या पता बेहतरीन शतक लगाने के बाद भी कप्तान ने उन्हें अगले दिन सुबह सुबह दौड़ने के लिए भेज दिया होता.
इस बात में कोई दो राय ही नहीं है कि केदार जाधव की करिश्माई बल्लेबाजी के दम पर ही भारत को जीत मिली लेकिन ‘रनिंग बिटवीन द विकेट’ में उनकी फिटनेस कप्तान विराट कोहली को समझ आ गई होगी. जिसे ठीक करने के लिए विराट कोहली केदार जाधव को जरूर कहेंगे.