First Ladies Championships in Wimbledon: आज से करीब 145 साल पहले जब पहली बार विंबलडन (Wimbledon) खेला गया था, तब इसमें महिलाएं हिस्सा नहीं ले सकती थीं. यह सुनने में अजीब लग सकता है कि भला पश्चिमी देशों में ऐसा कैसे हो सकता है लेकिन उस दौर में यह स्वाभाविक था. वह दौर ऐसा था जब पूर्वी ही नहीं पश्चिमी देशों में भी समाज पुरुष प्रधान ही होता था. हालांकि जैसे-जैसे विंबलडन का खुमार बढ़ता गया, वैसे-वैसे इसे आयोजित कराने वाले 'दी ऑल इंग्लैंड क्रॉक्वेट एंड लॉन टेनिस क्लब' पर भी दबाव आने लगा कि यहां महिलाओं को भी खेलने का मौका दिया जाए.
क्लब 7 साल तक इस तरह के निवेदन को खारिज करता रहा लेकिन आखिरी में वह महिला इवेंट कराने पर भी राजी हो गया. 1884 में पुरुष सिंगल्स इवेंट के साथ-साथ महिला सिंगल्स के मुकाबले भी आयोजित किए जाने का फैसला लिया गया. हालांकि इसमें कई सारी शर्तें थोप दी गईं.
सबसे पहली तो शर्त यह थी कि महिला चैंपियनशिप के मैच तब तक शुरू नहीं होंगे, जब तक पुरुष सिंग्लस के मुकाबले खत्म नहीं हो जाते. दूसरा यह था कि उनकी इंट्रेंस फीस 10 शिलिंग और 6 पेंस रखी गई थी जो पुरुषों के मुकाबले ठीक आधी थी.
1884 में जैसे-तैसे पहली महिला चैंपियनशिप शुरू हुई. इसमें 13 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया. इस चैंपियनशिप के फाइनल में वारविकशायर के एक पादरी की दो बेटियां पहुंची. 19 वर्षीय मॉड वॉटसन ने अपनी बहन लिलियन वॉटसन को तीन सेटों में हराकर ट्रॉफी जीती. यहां फर्स्ट प्राइज एक सिल्वर फूलों की डलिया थी, जिसकी कीमत 20 गिनीज थी.
साल 2006 तक प्राइज मनी में होता रहा भेदभाव
ऑल इंग्लैंड क्लब ने 1884 में महिलाओं की चैंपियनशिप तो शुरू की लेकिन इस इवेंट को दोहरा दर्जा ही मिला. सही मायनों में तो 2006 तक यहां महिलाओं की चैंपियनशिप सेकंड क्लास ही मानी गई. ऐसा इसलिए क्योंकि ओपन एरा (1968 के बाद) में विंबलडन के प्राइज मनी को देखें तो साल 2006 तक पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को कम प्राइज मनी ही दी जाती थी.
उपलब्ध रिकॉर्ड के मुताबिक आज से 54 साल पहले जहां पुरुषों को इस टूर्नामेंट में 1.90 लाख प्राइज मनी मिलती थी वहीं महिलाओं के लिए यह मात्र 71 हजार थी. डबल्स में भी यही हाल थे. पुरुष डबल्स की विजेता जोड़ी को 76 हजार तो महिलाओं की विजेता जोड़ी को 48 हजार रुपये इनामी राशि दी जाती थी. हर साल के साथ इनामी राशि तो बढ़ती रही लेकिन भेदभाव जारी रहा. साल 2006 तक ऐसा ही चलता रहा. आखिर में 2007 में महिला और पुरुष के इवेंट में बराबर प्राइज मनी दिए जाने की शुरुआत हुई.
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