बोर्ड के कोषाध्यक्ष अरुण धूमल ने शुक्रवार को कहा कि बीसीसीआई अगले चक्र के लिए अपनी स्पॉन्सरशिप नीति की समीक्षा करने के लिए खुला है, लेकिन वर्तमान आईपीएल टाइटल स्पॉन्सर वीवो के साथ अपने संबंध को समाप्त करने की बोर्ड की कोई योजना नहीं है क्योंकि चीनी कंपनी से आने वाला पैसा भारत की अर्थव्यवस्था की मदद कर रहा है.


इस सप्ताह के शुरू में गालवान घाटी में दोनों देशों के बीच सीमा संघर्ष के बाद भारत में चीन विरोधी भावनाओं की शुरूआत हो चुकी है. चार दशक से अधिक समय में भारत-चीन सीमा पर पहली झड़प में कम से कम 20 भारतीय सैनिक मारे गए. ऐसे में, चीनी उत्पादों का बहिष्कार करने के लिए सोशल मीडिया पर जमकर कैंपेन चलाए जा रहे हैं. लेकिन धूमल ने कहा कि चीनी कंपनियां आईपीएल जैसे भारतीय इवेंट को स्पॉन्सर करती हैं और केवल अपने देश के हितों की सेवा करती हैं. बीसीसीआई को वीवो से सालाना 440 करोड़ रुपये मिलते हैं और पांच साल का कॉन्ट्रैक्ट 2022 में खत्म होना है.


धूमल ने कहा, 'जज्बाती तौर पर बात करने से तर्क पीछे रह जाता है. हमें समझना होगा कि हम चीन के हित के लिए चीनी कंपनी के सहयोग की बात कर रहे हैं या भारत के हित के लिए चीनी कंपनी से मदद ले रहे हैं.'


उन्होंने कहा, 'जब हम भारत में चीनी कंपनियों को उनके उत्पाद बेचने की अनुमति देते हैं, तो जो भी पैसा वे भारतीय उपभोक्ता से ले रहे हैं, उसमें से कुछ बीसीसीआई को ब्रांड प्रचार के लिए दे रहे हैं और बोर्ड भारत सरकार को 42 फीसदी टैक्स चुका रहा है.


धूमल ने आगे कहा कि “ जब तक ये चीनी कंपनियां भारत में कारोबार कर रही हैं तब तक कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि इस पैसे को वापस चीन ले जाने की संभावना बिल्कुल नहीं है. अगर वह पैसा यहां बरकरार है, तो हमें इसके बारे में खुश होना चाहिए. हम उस पैसे से (उस पर कर अदा करके) हमारी सरकार का समर्थन कर रहे हैं.''


पिछले साल सितंबर तक मोबाइल कंपनी ओप्पो (OPPO) भारतीय टीम की प्रायोजक थी लेकिन उसके बाद बेंगलुरू स्थित शैक्षणिक स्टार्टअप बायजू ने चीनी कंपनी की जगह ली. धूमल ने कहा कि वह चीनी उत्पादों पर निर्भरता कम करने के पक्ष में हैं लेकिन जब तक उन्हें भारत में व्यवसाय की अनुमति है, आईपीएल जैसे भारतीय ब्रांड का उनके द्वारा प्रायोजन किये जाने में कोई बुराई नहीं है.