Major Dhyan Chand: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज इस बात का ऐलान‌ किया कि लगभग तीन दशक पहले प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम से स्थापित सबसे बड़े खेल पुरस्कार 'राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार' को अब से 'मेजर ध्यान खेल रत्न पुरस्कार' नाम से जाना जाएगा.


'हॉकी के जादूगर' के तौर पर पहचाने जाने वाले और भारत को हॉकी में तीन ओलंपिक मेडल्स दिलाने में अहम रोल निभाने वाले मेजर ध्यानचंद (Dhyan Chand) की मौत 3 दिसंबर, 1979 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में लीवर के कैंसर से जूझते हुए हुई थी. मगर आप सभी को यह जानकार हैरत होगी कि मेजर ध्यानचंद और अभिनेता गजेंद्र चौहान की मौत का एक अनसुना सा कनेक्शन भी है, जिसके बारे में खुद गजेंद्र चौहान ने एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत के दौरान बताया.


बीआर चोपड़ा की 'महाभारत' में युधिष्ठिर का लोकप्रिय रोल निभाकर मशहूर हुए अभिनेता गजेंद्र चौहान ने एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए बताया, 'उन दिनों मैं रेडियोग्राफर (पैरा मेडिकल स्टाफ) के तौर पर दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) में काम किया करता था. मैंने 11 सितंबर, 1979  से बतौर रेडियोग्राफर एम्स में काम करना शुरू किया था. जिसके कुछ ही महीने बाद मेजर ध्यानचंद की मौत उसी अस्पताल में मौत हुई थी.'


गजेंद्र चौहान बताते हैं, 'लीवर के कैंसर के इलाज के लिए भर्ती ध्यानचंद उन दिनों अर्द्ध-बेहोशी की हालत में थे. ऐसे में देर रात को मेजर ध्यानचंद का एक इमरजेंसी एक्स-रे निकालने जाने का निर्देश डॉक्टर की ओर से मुझे मिला, जिसे मैंने अंजाम दिया. मेजर ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार उन दिनों अपने पिता की देखभाल के लिए अस्पताल में मौजूद रहा करते थे. ध्यानचंद की मौत के कुछ ही मिनट पहले ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार ने मुझे कहा कि कुछ ही देर में चाय पीकर नीचे से वापस लौटेंगे और तब तक मैं उनके पिता के पास मौजूद रहूं. मगर कुछ ही देर बाद जब अशोक कुमार नीचे से वापस ऊपर कमरे में लौटे तब तक मेजर ध्यानचंद मेरे हाथों में दम‌ तोड़ चुके थे.'


असहज किया महसूस


घटना के बारे में और विस्तार से बताते हुए गजेंद्र चौहान ने कहा, 'बिस्तर में अर्द्ध-बेहोशी की अवस्था में लेटे मेजर ध्यानचंद को अचानक से कुछ असहज सा महसूस हुआ. ऐसे में मैं फौरन उनके पास गया और जैसे ही उनका सिर अपने दोनों हाथों में लिया, कुछ ही पलों में उनकी आंखें हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो चुकीं थीं. इतने में अशोक कुमार लौटे तो उन्होंने देखा कि उनके पिता का सिर मेरे हाथों में है. वो यह मंजर देखते ही समझ गए कि अब उनके पिता ध्यानचंद इस दुनिया में नहीं रहे.'


गजेंद्र चौहान ने मेजर ध्यानचंद की मौत की घटना को याद करते हुए एबीपी न्यूज़ से कहा, 'मेरे हाथों में इस तरह से मेजर ध्यानचंद की मौत की वो घटना मेरे लिए आज भी एक बेहद अविस्मरणीय पल की तरह है.' गजेंद्र चौहान ने कहा कि 'राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार' का नाम बदलकर 'मेजर ध्यानचंद' के नाम पर रखे जाने की खबर आने के बाद आज सुबह ही मैंने अशोक कुमार को फोन लगाया तो वो इस बदलाव से बेहद खुश थे.


गजेंद्र ने कहा कि इस फोन वार्ता के दौरान ध्यानचंद के बेटे ने बताया कि वो पिछले कई सालों से अपने पिता को 'भारत रत्न' दिए जाने को लेकर विभिन्न मंत्रालयों को खत लिखते आ रहे हैं और उनकी ये कोशिश अब भी जारी है और एक बार फिर से इसकी मांग वे भारत सरकार से करेंगे. गजेंद्र ने कहा, 'मैं भी चाहता हूं कि मेजर ध्यानचंद जैसी इतनी बड़ी हस्ती को जल्द से जल्द 'भारत रत्न' जैसा सर्वोच्च पुरस्कार मिले.'


उल्लेखनीय है कि गजेंद्र चौहान ने 2 साल तक डिप्लोमा इन‌ क्लिनिकल टेक्नोलॉजी (डीटीसी) का कोर्स पूरा कर एक रेडियोग्राफर के तौर पर दिल्ली के एम्स अस्पताल में सितंबर, 1979 से लेकर मई, 1982 तक काम किया था और फिर उसके बाद 1982 में मुंबई आकर उन्होंने अभिनय की दुनिया में हाथ आजमाया. जल्द ही उन्हें इंडस्ट्री में ब्रेक मिल गया और फिर उन्होंने कई फिल्मों और सीरियलों में काम कर एक अभिनेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई.


गजेंद्र चौहान कहते हैं कि ये बात सही है प्रधानमंत्री राजीव गांधी देश की एक बड़ी राजनीतिक शख्सियत थे, मगर 'हॉकी के जादूगर' मेजर ध्यानचंद भी खेल से जुड़ी कम बड़ी हस्ती नहीं थे. वे कहते हैं, 'ऐसे में खेलों से जुड़े पुरस्कार का नाम उनके नाम पर रखना एक सराहनीय कदम है. वैसे भी खेलों से जुड़े पुरस्कार का नाम किसी महान खिलाड़ी के नाम पर ही होना चाहिए और प्रधानमंत्री का नाम बदलने का ये फैसला काबिल-ए-तारीफ है.'



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