कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया में खेल प्रभावित हुआ है. पिछले दो महीनों से इंडिया में भी किसी स्पोर्ट्स इवेंट का आयोजन नहीं हो रहा है. लेकिन भारत में यह समझने की जरूरत है कि स्पोर्ट्स इकोनॉमी का हिस्सा है और यह सिर्फ मनोरंजन का साध नहीं रह गया है. पूरी दुनिया में खेल के क्षेत्र में देखा जाए तो भारत एक बड़ी इकोनॉमी है.


वर्तमान समय में खेल करियर बन चुका है. खेल एक ऐसा पेशा बन चुका है जिसकी पहुंच अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स तक है और यह अलग से एक समानांतर अर्थव्यवस्था है. लेकिन कोरोना के समय में जब हमारी प्राथमिकताएं दूसरी हैं तब खेल खासकर के आईपीएल को वैसा महत्व नहीं दिया जा रहा है. इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेंद्र बत्रा अपने खिलाड़ियों को ट्रेनिंग पर लौटने के लिए कह रहे हैं. लॉकडाउन में ढील मिलने के बाद आगे बढ़ने के लिए यह सही कदम भी है. लेकिन बीसीसीआई और क्रिकेटर्स को ऐसा करने के बारे में सोचने से मनाही है. सीधे सवाल खड़ा किया जाता है कि आईपीएल के बारे में सोचा भी कैसे जा सकता है.


विराट कोहली और महेंद्र सिंह धोनी अरबपति हैं और भारतीय टीम के दूसरे क्रिकेटर्स करोड़पति हैं. बीसीसीआई की वेल्यू 11 हजार करोड़ रुपये है, जबकि आईपीएल में भी इतने बड़े निवेश हैं कि चार हफ्ते के अंदर ही 3 हजार करोड़ रुपये का कारोबार होता है. महामारी की वजह से लाखों लोगों की नौकरी जा रही है, इकोनॉमी पर बड़ा झटका लगा है. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि ये सब खेल में कैसे लिप्त हो सकते हैं. हमें सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखते हुए वायरस के साथ जीना सीखना होगा.


बाकी दुनिया के लिए प्राथमिकता बना खेल


हमें बाकी दुनिया से सीख लेने की जरूरत है. जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने फुटबॉल को प्राथमिकता पर रखते हुए बुंदेसलीगा लीग को 15 मई से शुरू करने की इजाजत दे दी है. रोनाल्डो को अपने क्लब के साथ प्रैक्टिस करने के साथ वापस आना पड़ा है. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ट्वेंटी-ट्वेंटी और भारतीय टीम के दौरे के लिए स्पेशल प्लान बना रहे हैं. इंग्लैंड जुलाई में प्रोफेशनल क्रिकेट के साथ टेस्ट क्रिकेट को दोबारा शुरू करने पर विचार कर रहा है. जर्मनी, ईटली, ऑस्ट्रेलिया या इंग्लैंड किसी ने भी कोरोना के खिलाफ पूरी तरह से जीत हासिल नहीं की है. इसके बावजूद इन्होंने अपने देश में खेल को दोबारा शुरू करने की अनुमति दे दी है.


भारत में भी खेल समानांतर अर्थव्यवस्था है और यह सोचने की जरूरत है कि अब खेल सिर्फ मनोरंजन का जरिया नहीं रह गए हैं. भारत खेल की एक बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. पूरी दुनिया की क्रिकेट मुंबई से चलती है और दूसरे खेल फेडरेशन भी बड़े टूर्नामेंट्स और फ्रेंचाइजी लीग के जरिए देश में आगे बढ़ रहे हैं.


इस बात से सहमति जताई जा सकती है कि खेल कोरोना वायरस की वजह पहले जैसे नहीं रहेगा. लेकिन इन्हें दोबारा से शुरू करने की हर संभव कोशिश होनी चाहिए. आईपीएल से सिर्फ बीसीसीआई को मुनाफा नहीं होता है, बल्कि यह होटल सेक्टर, विमान कंपनियों, मीडिया, ब्रॉडकास्ट, पब्लिक रिलेशन, ग्राउंड ओप्रेशन, विज्ञापन और राज्य सरकारों से जुड़े हुए क्षेत्रों को नौकरी के विकल्प मुहैया करवाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की कुल अर्थव्यवस्था में आईपीएल का योगदान करीब 10 हजार करोड़ रुपये का है.


अगर भारत वापस आगे बढ़ने की कोशिश करना चाहता है तो खेल इसमें काफी मददगार साबित हो सकता है और यह रोजगार और रेवेन्यू के विकल्प पैदा कर सकता है. अगर देखा जाए तो खेल शराब की दुकानों को दोबारा खोलने और उनकी होम डिलीवरी करने से ज्यादा बेहतर है. कर्नाटक सरकार की शराब से एक दिन में हुई 190 करोड़ की कमाई में उस और ध्यान खींचा. इसी तरह से खेल में स्वास्थ्य पर ज्यादा खतरे के बिना अर्थव्यवस्था को योगदान देने की क्षमता है. अगर मंदी के इस हाल में खेल से जुड़ी हुई अर्थव्यवस्था दोबारा खड़ी हो सकती है तो उसे दोबारा शुरू किया जाना चाहिए.


यही एंजेला मर्केल, स्कॉट मॉरिसन और बोरिस जॉनसन ने महसूस किया है. हम जब जरूरत होती है तब अपने खेल महासंघों और क्रिकेटरों को रिबूट करने का अनुरोध करना बंद कर देते हैं.


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