नई दिल्ली: ''क्रिकेट में 25 साल बाद मैंने आगे बढ़ने का फैसला किया है. क्रिकेट ने मुझे सबकुछ दिया, इस सफर का हिस्सा बनने के लिए शुक्रिया.'' क्रिकेट के दिग्गज युवराज सिंह के मुंह से निकले ये शब्द शायद ही कोई क्रिकेट फैन सुनना चाहता हो. लेकिन उम्र, फॉर्म और मौके के ट्रिपल अटैक के सामने क्रिकेट के इस धुरंधर योद्धा ने अपना बल्ला टांगने का फैसला किया.


आज उन्होंने कहा कि अपने 25 साल के करियर और खास तौर पर 17 साल के अंतरराष्ट्रीय करियर में कई उतार-चढ़ाव देखे. अब मैंने आगे बढ़ने का फैसला ले लिया है. इस खेल ने मुझे सिखाया कि कैसे लड़ना है, गिरना है, फिर उठना है और आगे बढ़ते ही जाना है.'


2007 के टी-20 वर्ल्डकप में इंग्लैंड के खिलाफ स्टुअर्ट ब्रॉड के ओवर में 6 गेदों पर 6 छक्के जिसने भी देखे वो आज भी उस लम्हे को भूला नहीं है. युवराज ने भी आज उस पल को याद करते हुए कहा कि एक क्रिकेटर के तौर पर सफर शुरू करते वक्त मैंने कभी नहीं सोचा था कि भारत के लिए खेलूंगा. टी-20 वर्ल्ड कप में 6 गेंदों में 6 छक्के लगाना भी यादगार था.


युवराज ने क्रिकेट के मैदान में जो जज्बा दिखाया वैसा ही जज्बा उनकी निजी जिंदगी में भी देखने को मिला. कैंसर से जूझने के बावजूद 2011 वर्ल्ड कप खिताब दिलाने वाले युवी देश के हर युवा क्रिकेटर और क्रिकेट फैन के लिए आदर्श बन गए. युवराज ना सिर्फ वर्ल्ड कप खेले बल्कि मैन ऑफ द सीरीज भी बने. युवराज के बल्ले का जौहर और जिंदादिली को आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल बनेगी. उन्होंने आज कहा कि मेरे लिए 2011 वर्ल्ड कप जीतना, मैन ऑफ द सीरीज मिलना सपने की तरह था. इसके बाद मुझे कैंसर हो गया. यह आसमान से जमीन पर आने जैसा था. उस वक्त मेरा परिवार, मेरे फैन्स मेरे साथ थे.


आंकड़े खुद युवराज के शहंशाह होने का एलान करते हैं. युवराज ने 40 टेस्ट में 1900 रन बनाए. 3 शतक और 11 अर्धशतक के साथ 304 वनडे में युवी ने 8701 रन बनाए. 14 शतक और 52 अर्धशतक उनके नाम हैं. वहीं 58 T-20 मैच में 1177 रन और 8 अर्धशतक के बाद उनका सफर रुका. वनडे में युवी 27 बार मैन ऑफ द मैच और 7 बार मैन ऑफ द सीरीज रहे. उनका आखिरी मैन ऑफ द सीरीज अवार्ड 2011 वर्ल्ड कप में था.


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