आज के ही दिन चीनी जेल तोड़कर फरार हुए देश के 14 जवान, घर लौटने पर परिजनों को नहीं हुआ था विश्वास
जेल से भागने के बाद रामचरित्र सिंह और उनके अन्य साथी भारतीय सीमा में भटकते रहे और जंगल में जीने का संघर्ष करते रहे.
अरवल: भारत की मिट्टी में कई ऐसे वीरों ने जन्म लिया है, जिन्होंने समय-समय पर अपने बाहुबल और सूझ-बूझ से इतिहास रचा है. ऐसे ही एक वीर हैं रामचरित्र सिंह, जिन्होंने चीन की दीवार तोड़कर न सिर्फ भारत के आजाद हवा में सांस की बल्कि भारत की धरती से चीनी अफसरों के हरकतों का माकुल जबाब भी दिया था.
बता दें कि वर्ष 1946 में ब्रिटिश फौज में रामचरित्र सिंह आपने 14 साथियों के साथ भर्ती हुए थे, जिन्होंने चीन को अपने बाहुबल से भारत की ताकत दिखाई थी. दरअसल, यह सैनिक 1962 में भारत-चीन युद्ध में युद्धबंदी बनाकर चीनी जेल में डाल दिए गए थे. लेकिन उन्होंने 15 अगस्त के दिन ही जेल की दीवार तोड़ दी और वहां से फरार हो गए.
जेल से फरार 14 साथियों में से रामचरित्र अपने तीन साथियों के साथ भारतीय सीमा में प्रवेश कर गए. इसके बाद उन्होंने जंगल-जंगल भटकते हुए घांस और जंगली फल खाकर अपनी यात्रा पूरी की और अपने घर अरवल जिला के टेरी गांव पहुंचे.
रामचरित्र सिंह के बड़े पौत्र राजबहादुर सिन्हा और 62 वर्षीय रामाशंकर सिंह अपने दादा की कहानी बताते हैं. रामाशंकर सिंह ने बताया कि जेल से भागने के बाद उनके दादा और अन्य साथी भारतीय सीमा में भटकते रहे और जंगल में जीने का संघर्ष करते रहे. इस दरम्यान उन्हें आसमान में फौजी हेलीकॉप्टर दिखा, तो उन्होंने उनसे मदद मांगी. तब इशारों में हेलीकॉप्टर में बैठे सैनिकों ने उन्हें रास्ता बताया और उसी आधार पर यह आगे बढ़ते गए, जिसके बाद सभी अपने-अपने गांव पहुंचे.
रामाशंकर सिंह ने बताया कि भारत चीन युद्ध के बाद सूचना मिली थी कि दादा शहीद हो गए हैं, जिसके स्वजनों ने हिंदू परंपरा के तहत अंतिम संस्कार के बाद दशकर्म और मृत्यु भोज तक कर दिया था. लेकिन, करीब 5 साल बाद अचानक से रामचरित्र सिंह अपने घर पहुंचे तो उनकी पत्नी फुलेसरी देवी उन्हें पहचान नहीं पा रही थी, जब पहचान हुई तो उनका भव्य स्वागत हुआ. इनके आने के बाद पेंशन और अन्य सरकारी सुविधा लेने के लिए नियम और प्रक्रिया पूरी करने में बहुत संघर्ष करना पड़ा. संभवत: 1970 में वे सेवानिवृत्त हुए थे और उनकी मृत्यु 1993 में हुई थी. जबकि उनकी पत्नी की मृत्यु इनसे पहले ही हो चुकी थी.