भारत मां के 7 वीर सपूतों ने 78 साल पहले आज ही के दिन रचा था इतिहास, अंग्रेजों का छुड़ाया था पसीना
11 अगस्त 1942 को पटना के पुराने सचिवालय पर तिरंगा फहराने का दिन निश्चित हुआ. निश्चित समय पर तिरंगा लेकर सात युवा सेक्रेटेरिएट पहुंचे थे और तिरंगा फहराने के क्रम में अंग्रेजों की गोलियों का शिकार हुए थे.
औरंगाबाद: भारतवर्ष के इतिहास में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान की कृतियां अमर हैं. हर भारतवासी वीर सपूतों की शहादत याद करता है और उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है. मातृभूमि की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर करने वाले शहीदों की वीरता याद कर लोग उन्हें नमन करते हैं.
ऐसे ही एक शहीद हैं औरंगाबाद के ओबरा प्रखंड के खरांटी गांव के जगतपति कुमार, जिन्हें उनके 6 साथियों के साथ पटना सेक्रेटेरिएट के शीर्ष पर तिरंगा फहराने के दौरान 11 अगस्त 1942 को अंग्रेजों ने गोलियों से भून दिया था. शहीद जगतपति की शहादत ने अगस्त क्रांति को तेज किया और हजारों स्वतंत्रता की चाहत रखने वालों ने अपनी जान कुर्बान कर शहादत प्राप्त की.
मालूम हो कि उस वक्त पूरे देश में 1942 अगस्त क्रान्ति जोरों पर थी, युवाओं में देश की स्वतंत्रता के लिए मर मिटने का जुनून उबाल मार रहा था. बिहार के पटना में भी युवाओं में यही जोश उबल रहा था. महात्मा गांधी के आह्वान पर हजारों युवा सड़क पर आंदोलन के लिए तैयार थे और पटना के पुराने सचिवालय में 11 अगस्त को तिरंगा झंडा फहराने के लिए दिन निश्चित हुआ.
पटना बीएन कॉलेज में साइंस के विद्यार्थी थे जगपति कुमार
निश्चित समय पर तिरंगे को लेकर सात युवा सेक्रेटेरिएट पहुंचे और तिरंगा फहराने के क्रम में अंग्रेजों की गोलियों के शिकार हुए. इन शहीद जवानों में तीसरे नम्बर पर ओबरा के खरांटी गांव के जगतपति कुमार भी थे. जगतपति कुमार के पिता का नाम सुखराज बहादुर था जो जमींदार थे. सुखराज बहादुर की तीन संतान थी. बड़ा बेटा केदार नाथ सिन्हा जो पिता के काम में हाथ बटाता था, दूसरे नम्बर पर सरजू प्रसाद सिन्हा जो असम के हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और राज्यपाल भी रहे और तीसरे नम्बर पर जगपति कुमार थे जो पटना बीएन कॉलेज में साइंस के विद्यार्थी थे.
शहीद का घर खंडहर में हो गया तब्दील
उनकी शहादत के बाद स्थानीय लोगों की ओर से साल 1976 में शहीद की निजी जमीन पर उनका स्मारक बनाया गया जो आज सरकार की उदासीनता के कारण अपनी पहचान खो रहा है. इतना ही नहीं शहीद का घर भी खंडहर में तब्दील हो चुका है. उनके घर और स्मारक की देखभाल कर रहे रामजन्म पांडये ने बताया कि सरकारी लापरवाही की वजह से आज सभी परिवार घर छोड़कर बाहर चले गए हैं. कोई सरकारी सहायता नही मिली.
यहां तक की शहीद की सारी जमीन सरकार ने अपने कब्जे में ले रखा है. लेकिन उनके घर के उद्धार के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. वहीं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) के प्रदेश प्रमुख पुष्कर अग्रवाल ने बताया कि स्वतंत्रता सेनानियों की उपेक्षा शर्मिंदगी का विषय है. इनके शहादत दिवस पर कोई सरकारी कार्यकम नहीं होना और स्मारक की उचित देखभाल नहीं होना सरकारी लापरवाही को दर्शाता है.
पिछले 4 सालों से अभाविप उनके शहादत दिवस पर भव्य तिरंगा यात्रा करता है, लेकिन इस बार कोरोना के चलते यह यात्रा भी नहीं हो पाएगी. लेकिन शहीद की याद में वृक्षारोपण और सफाई अभियान चलाया जाएगा. अभाविप सरकार के उनके स्मारक के सौंदर्यीकरण और उनके जमींदोज हो रहे घर को पुस्तकालय बनाने की मांग करती है ताकि नई पीढ़ी उनकी शहादत को याद रख सके.
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