48 साल में 8 पद्मश्री…, कैसे बिहार का मधुबनी बना पेटिंग का केंद्र?
मधुबनी जिले के किसी व्यक्ति को पिछले 48 साल में 8 वां पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है और हैरानी की बात ये है कि सम्मानित की जाने वाली सभी महिलाएं हैं और पेंटिंग से जुड़ी हुई हैं.
बिहार का प्राचीन शहर मधुबनी कला-संस्कृति और पेंटिंग के लिए दुनियाभर में जाना जाता है. जब भी हम बिहार या मिथिलांचल का नाम लेते है तब इसके साथ लोक कला मिथिला पेंटिंग या मधुबनी का ज़िक्र ज़रूर आता है.
यह जिला समय-समय पर दुनियाभर में अपनी कला के चर्चा का विषय बन जाता है. भारत सरकार ने बुधवार को 74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों का एलान किया. जिसमें मधुबनी जिले की सुभद्रा देवी को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.
मधुबनी जिले को 48 साल में 8वां पद्मश्री पुरस्कार मिलने जा रहा है. हैरानी की बात ये है कि सम्मानित की जाने वाली सभी महिलाएं हैं और सुभद्रा को छोड़ दें तो सभी मिथिला पेंटिंग से जुड़ी हुई हैं.
(फोटो क्रेडिट- शालिनी कर्ण)
कब-कब मिला पद्मश्री?
1975- जगदंबा देवी
पद्मश्री जगदम्बा देवी उन कलाकारों में से एक हैं जिनके माध्यम से मिथिला पेंटिंग वैश्विक पटल पर उभरा. साल 1975 में भारत सरकार ने उन्हें "पद्मश्री" से सम्मानित किया था. इस प्रकार वह मिथिला पेंटिंग में पद्म श्री प्राप्त करने वाली पहली कलाकार भी बनीं.
25 फरवरी, 1901 को मधुबनी जिले के भोजपंडौल गांव में जन्मी जगदम्बा देवी को पद्मश्री सम्मान के अलावा भी कई पुरस्कार मिल चुके हैं. 4 जनवरी 1969 को अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड ने मिथिला में चित्रकला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए जगदंबा देवी को सम्मानित किया. 8 दिसम्बर 1969 को बिहार सरकार के उद्योग विभाग ने उन्हें ताम्र पदक से सम्मानित किया. जगदंबा देवी को 26वें वैशाली महोत्सव (18-20 अप्रैल, 1970) के अवसर पर उद्योग विभाग द्वारा सम्मानित भी किया गया था.
1981- सीता देवी
इसके बाद 1981 में मधुबनी जिला के जितवारपुर गांव की सीता देवी को पद्मश्री प्रदान किया गया. सीता देवी का जन्म 1914 में सुपौल जिले के वसाहा गांव में हुआ था लेकिन 12 साल की उम्र में उनकी शादी मधुबनी जिले के जितवारपुर गाँव के शोभाकान्त झा से शादी कर दी गई. सीता देवी ने मिथिला पेंटिंग बनाना अपनी मां और दादी से सीखा था.
1972 में, दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित ग्राम झांकी में उनके मिथिला पेंटिंग को देश भर से लोग देखने पहुंचे थे और इस कला को खूब सराहा भी गया था. नई दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के मुख्य प्रवेश द्वार के अंदर की दीवार पर भी उनकी पेंटिंग लगी थी.
मिथिला पेंटिंग में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें 1969, 1971 और 1974 में बिहार सरकार द्वारा सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकार, कुशल मूर्तिकार और राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
(फोटो क्रेडिट- शालिनी कर्ण)
1984- गंगा देवी
1984 में मधुबनी जिले के रसीदपुर गाँव की गंगा देवी को पद्मश्री के लिए चयनित किया गया. गंगा देवी ने बचपन से ही मिथिला पेंटिंग बनाने का अभ्यास किया था. मिथिला पेंटिंग में उनके योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. साल 1984 में, गंगा देवी को भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था.
2011- महासुंदरी देवी
इसके बाद वर्ष 2011 में रांटी की महासुंदरी देवी को पद्मश्री पुरस्कार दिया गया. पद्मश्री महासुंदरी देवी का जन्म 15 अप्रैल 1922 को मधुबनी जिले के चतरा गांव में हुआ था. जब वो पाँच वर्ष के थे, तब उनके पिता रामजीवन लाभ और माता दुलारी देवी का निधन हो गया. चाचा पुनीत लाभ और बुआ देवसुंदरी देवी की देखरेख में उन्होंने शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक कलाओं में व्यावहारिक शिक्षा भी पूरी की.
जब महासुंदरी 17 साल की थीं, तब उनका विवाह मधुबनी जिले के रांटी गांव के कृष्ण कुमार दास से हुआ. यहां भी वह पेंटिंग करती रहीं. महासुंदरी देवी ने कागज पर पेंटिंग बनाने से आगे बढ़कर 1970 में साड़ियों पर, 1973 में लकड़ी और प्लाई बोर्ड पर पेंटिंग शुरू किया. उनमें दशावतार, कृष्ण जन्म कथा, राम-सीता विवाह, सीता जन्म कथा, रासलीला और शिव-पार्वती जैसे धार्मिक विषय शामिल थे. उन्हें रेशम, सूती कपड़े और सनमिका और प्लायबोर्ड पर मिथिला पेंटिंग पेश करने वाली पहली कलाकार होने का श्रेय दिया जाता है.
(फोटो क्रेडिट- शालिनी कर्ण)
2017- बौआ देवी
मिथिला पेंटिंग का गढ़ माने जाने वाले जितवारपुर गांव की रहने वाली बउआ देवी को मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए 2017 से पद्मश्री से सम्मानित किया गया. उन्हें पहले भी साल 1986 में इस कला के लिए राज्य और राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. इसके अलावा अप्रैल, 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी जर्मनी यात्रा के दौरान मेयर स्टीफन शोस्तक को बउआ देवी की एक पेंटिंग भेंट की थी, जिसके बारे में उन्हें बहुत बाद में पता चला.
2019- गोदावरी देवी
1930 में दरभंगा के बहादुरपुर गांव में जन्मी गोदावरी दत्त ने बचपन से ही मिथिला कला में रुचि ली. उन्होंने अपनी मां सुभद्रा देवी के आधे-अधूरे चित्र को छिपाकर रंगना शुरू किया था. जिसके बाद उनकी मां ने ही उन्हें प्रशिक्षण दिया. उसके बाद, उन्होंने अपना सारा समय कला के लिए समर्पित कर दिया. मिथिला सहित पूरे बिहार की शान गोदावरी दत्त वर्तमान में रांटी मधुबनी में रह रही हैं. वह मिथिला पेंटिंग की महादेवी वर्मा कहलाती हैं.
2021- दुलारी देवी
मिथिला पेंटिंग की कलाकार दुलारी देवी को 2021 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वह मिथिला पेंटिंग के लिए यह सम्मान पाने वाली पहला दलित कलाकार थीं. उनका जन्म 27 दिसंबर 1967 को मधुबनी जिले के रांटी गांव में एक मछुआरे परिवार में हुआ था. दुलारी की शादी 12 साल की उम्र में मधुबनी जिले के बेनीपट्टी प्रखंड के बलैन कुसमौल गांव में कर दी गई.
हालांकि ससुराल में कुछ दिक्कतों के बाद वह वापस अपने माता पिता के साथ रांटी गांव में रहने लगीं. उन्होंने अपने गृहनगर में ही मिथिला पेंटिंग की जानी-मानी कलाकार महासुंदरी देवी और कर्पूरी देवी के घर 6 रुपये महीने पर सफाईकर्मी का काम मिल गया. काम से फुरसत मिलने पर वह महासुंदरी देवी और कर्पूरी देवी को पेंटिंग बनाते देखा करती थीं. धीरे धीरे वह भी पेंटिंग बनाने लगीं यहीं से उनका सफर शुरू हो गया. दुलारी देवी मिथिला पेंटिंग की कचनी शैली की मास्टर हैं.
(फोटो क्रेडिट- ज्योति झा)
2023- सुभद्रा देवी
मधुबनी की सुभद्रा देवी को साल 2023 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. सुभद्रा देवी का ससुराल मधुबनी जिला मुख्यालय के पास भिट्ठी सलेमपुर गांव में है. सुभद्रा देवी की तीन बेटियां और दो बेटे हैं. वर्तमान में वह अभी अपने छोटे बेटे के साथ दिल्ली में हैं. उनका मायका दरभंगा जिले में मनीगाछी के निकट बलौर गांव में है. जिस कला के लिए उनको नवाजा गया है वो भी अनोखा है. उन्हें पेपरमेशी कला में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए ये पुरस्कार दिया जा रहा है. इससे पहले उन्हें 1980 में इन्हें राज्य पुरस्कार और 1991 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
मिथिला पेंटिंग की खासियत क्या?
मिथिला पेंटिग की कलाकार शालिनी कर्ण ने एबीपी से बातचीत करते हुए बताया कि ये कला अपनी रंगों के कारण बाकी पेंटिंग से अलग है. उन्होंने कहा कि आप जब भी मिथिला पेंटिंग देखेंगे तो पाएंगे की इसमें कई सारे रंग का इस्तेमाल किया जाता है और यही इसे अलग और खास बनाता है.
(फोटो क्रेडिट- ज्योति झा)
मिथिला पेंटिंग कैसे हुई लोकप्रिय
शालिनी ने बताया कि साल 1934 में जब बिहार में भूकंप आया था. तब मधुबनी और बिहार के कुछ इलाके बहुत ज्यादा प्रभावित हुए थे. उस वक्त बचाव कार्य के लिए कई राज्यों के लोग यहां पहुंचे और उनकी नजर यहां के दिवारों पर पड़ी जहां स्थानीय लोगों ने अपनी लोककला को शानदार तरीके से घरों की दीवारों पर उकेरा था. इस पेंटिंग ने सबको आकर्षित किया और यहीं से धीरे धीरे इस पेंटिंग ने व्यवसायिक रूप लेना शुरू कर दिया.
महिलाओं के लिए कैसे बना पैसे कमाने की जरिया
मधुबनी जिला के राघोपुर गांव की रहने वाली ज्योति झा ने एबीपी से बातचीत के दौरान बताया कि उन्होंने इस पेंटिंग की शुरुआत कोविड के दौरान की थी. सबसे पहले उन्होंने ऑनलाइन क्लास के जरिए पेंटिंग बनाना सीखा. धीरे धीरे उनके दोस्तों ने उनके इस कला की सराहना की और अब वही उनसे उनके इस पेंटिंग को खरीद भी रहे हैं.
ज्योति कहती हैं, 'मेरे जैसी कितनी ही महिलाएं हैं. जिन्हें बाहर निकलने का मौका नहीं मिला लेकिन अब इस कला के जरिए घर में बैठकर पेंटिंग बनाते हैं औऱ ऑनलाइन लोग खरीद लेते हैं. मिथिला पेंटिग ना सिर्फ हमारी कला संस्कृति का हिस्सा है बल्कि ये कई महिलाओं के लिए उनके सपनों की उड़ान जैसा भी है.