गयाः कोरोना की वजह से देश में लगे लॉकडाउन के बाद एक ओर जहां कई कंपनियों ने कर्मचारियों की छुट्टी कर दी तो कई लोग वेतन कटौती होने के बाद गांव लौटने को मजबूर हो गए. ऐसे ही लोगों को गांव में रोजगार देकर इमामगंज प्रखंड के पड़रिया गांव के अविनाश कुमार सिंह अब मिसाल पेश कर रहे हैं.
स्कूल बंद होने की वजह से आया ख्याल
गया से 70 किलोमीटर दूर स्थित इमामगंज प्रखंड के पड़रिया गांव में अविनाश 2013 से वर्मी कंपोस्ट का संचालन कर रहे हैं. वे एक निजी स्कूल भी चलाते हैं. इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे अविनाश ने बताया कि पहले गांव में काम करने वाले मजदूर नहीं मिलते थे लेकिन लॉकडाउन के कारण गांव में अब मजदूरों की कमी नहीं है. स्कूल बंद होने की वजह से उन्हें यह ख्याल आया कि अभी वर्मी कंपोस्ट प्रोजेक्ट की ओर ज्यादा ध्यान दिया जा सकता है.
इसके बाद उन्हें यह एहसास हुआ कि गांव लौटे मजदूरों को रोजगार देने के साथ-साथ वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन भी ज्यादा किया जा सकेगा. इसके बाद इसमें वो लग गए. उन्होंने कहा कि गांव के मजदूर गोबर का काम करने में आनाकानी करते थे लेकिन स्थिति ऐसी हो गई है कि अब काम सबको चाहिए.
अविनाश ने कहा कि एक ट्रेलर गोबर से 90 दिनों में 10 क्विंटल जैविक खाद की जाती है. अगर बिहार सरकार जैविक खाद को बढ़ावा दे तो कई ऐसे प्रोजेक्ट संचालित किए जा सकते हैं. बिहार में इसकी मांग कम है. उन्होंने कहा कि अभी तक करीब 20 लोगों को रोजगार दिया गया है. एक दिन की मजदूरी 250 रुपये दी जाती है.
तीन हजार टन तक किया जा सकता उत्पादन
अविनाश कहते हैं कि चाय बागान में जैविक खाद की मांग ज्यादा है इसलिए ज्यादातर खाद दार्जिलिंग जाती है. सभी मजदूर गोबर में लेयर वाइज बनाए गए जगहों पर केंचुआ डालते हैं. जैसे-जैसे केंचुआ गोबर को खाना शुरू करता है वैसे-वैसे जैविक खाद तैयार होती है. अभी हर माह 40 टन जैविक खाद तैयार हो रही है. अगर बिहार सरकार सहयोग करे तो 3 हजार टन उत्पादन किया जा सकेगा.
यह भी पढ़ें-
बिहारः बेतिया में पानी में डूबने से चार बच्चों की हुई मौत, ईंट निर्माण के लिए खोदे गए थे गड्ढे
बिहारः ANM छात्रावास की सुरक्षा में चूक, रात के अंधेरे में माशूका से मिलने पहुंचा गया प्रधान लिपिक