पटना: गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया (DM G Krishnaiah) की हत्या मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे बाहुबली नेता आनंद मोहन (Anand Mohan) की रिहाई आज सुबह सहरसा जेल से हो गई. आनंद मोहन की रिहाई पर बिहार में सियासत भी तेज हो गई है. सरकार जहां कानून का हवाला दे रही है तो विपक्ष और जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया और उनकी बेटी सरकार से इस पर सवाल भी उठा रहे हैं. अब इसकी सफाई देने के लिए बिहार के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी (Aamir Subhani) भी आगे आ गए हैं.
'कानून के तहत हुई है रिहाई'
आमिर सुबहानी ने जेल मैनुअल कानून में संशोधन और आनंद मोहन की रिहाई के मामले पर संवाददाता सम्मेलन कर पत्रकारों को बताया कि जिस तरह आनंद मोहन की रिहाई पर चर्चा का विषय बना हुआ है, यह बात जनता को जानना जरूरी है कि उनकी रिहाई में कोई गलत फैसला नहीं लिया गया है. पूरी तरह कानून के तहत उनकी रिहाई हुई है. आमिर सुबहानी ने कहा कि 2012 में जो जेल मैनुअल कानून बने थे, उसमें जिनको उम्र कैद की सजा होती है, 14 साल की सजा के बाद परिहार दिया जाता है और परिहार के साथ उसे 20 वर्ष सजा जोड़ा जाता है और 20 वर्षों सजा होने के बाद उस पर राज्य दंडादेश परिहार परिषद कैदियों की रिहाई पर विचार करती है.
मुख्य सचिव ने दी जानकारी
मुख्य सचिव ने कहा कि राज्य दंडादेश परिहार परिषद में गृह विभाग के अपर सचिव अध्यक्ष होते हैं, उसके साथ जिला जज भी शामिल होते हैं, इसके अलावा कारा सचिव, दो जज और कुछ अधिकारी परिषद में शामिल होते हैं परिषद ही कैदी कामकाज और उम्र देखते हुए रिहाई का निर्णय लेती है. इसके बाद उस निर्णय को सरकार के पास भेजा जाता है. अमूमन 15 अगस्त 26 जनवरी और 2 अक्टूबर को कई कैदियों की रिहाई पर निर्णय लिए जाते रहे हैं. पिछले 6 सालो में परिषद ने 22 बैठकों में 1161 बंदियों की रिहाई पर किया विचार किया है.
'14 साल 9 महीने सजा काट चुके हैं आनंद मोहन'
सुबहानी ने कहा कि आनंद मोहन की आज रिहाई हुई है इस पर पॉलिटिकल चर्चा जोरों पर चल रही है इसलिए हम यह बताना चाहते हैं कि आनंद मोहन की रिहाई पूरी तरह कानून के तहत किया गया है. आनंद मोहन 14 साल 9 महीने जेल की सजा काट चुके हैं, उसी हिसाब से परिहार मिलाकर उनकी सजा लगभग 22 साल हो चुकी है. इस वजह से ही उन पर रिहाई का विचार किया गया है. आनंद मोहन या अन्य 26 लोगों की रिहाई पर भी राज्य दंडादेश परिहार परिषद ने बैठक करके निर्णय लिया है. इसे राजनीति रूप देना उचित नहीं है, यह पूरी तरह कानून के दायरे में है.
'आईएएस अधिकारियों के लिए नहीं है कोई अलग कानून'
आमिर सुबहानी ने कहा कि जेल मैनुअल कानून में आईएएस अधिकारियों के लिए अलग से कोई प्रावधान नहीं है. लोक सेवक के लिए प्रावधान है, उस लोकसेवक में चपरासी से लेकर बड़े अधिकारी आ जाते हैं. उसमें सरकारी सेवक की काम के दौरान हत्या की जाती है उसके लिए अलग नियम है, लेकिन उसमें भी आजीवन करावास में परिहार दिया जाता है और परिहार जोड़कर ही रिहाई का प्रावधान है. इसलिए आनंद मोहन की रिहाई कोई कानून का उल्लंघन नहीं किया है.
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