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शहाबुद्दीन की तरह क्या फिर जेल जा सकते हैं आनंद मोहन? कोर्ट और कानून का हर एंगल जानिए

बिहार के सियासी गलियारों में सवाल उठ रहे हैं कि क्या शहाबुद्दीन की तरह ही आनंद मोहन फिर से जेल जा सकते हैं? इस स्टोरी में कोर्ट और कानून के सभी एंगल को विस्तार से जानते हैं.

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302, 307 और 147 के तहत सजायफ्ता बाहुबली आनंद मोहन जेल से रिहा कर दिए गए हैं. यह सभी धाराएं गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के बाद मोहन पर लगाई गई थी. 2007 में मोहन को निचली अदालत ने दोषी पाया था और सजा सुनाई थी. 

आनंद मोहन के रिहा होने के बाद सीवान के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन भी सुर्खियों में है. सोशल मीडिया पर यूजर्स नीतीश सरकार से शहाबुद्दीन को लेकर सवाल पूछ रहे हैं. इतना ही नहीं, यूजर्स आनंद मोहन को शहाबुद्दीन की तरह ही फिर से जेल भेजने की मांग कर रहे हैं. 

आनंद मोहन की रिहाई और उस पर मचे बवाल के बीच बिहार के सियासी गलियारों में सवाल उठ रहे हैं कि क्या शहाबुद्दीन की तरह ही मोहन फिर से जेल जा सकते हैं? इस स्टोरी में कोर्ट और कानून के सभी एंगल को विस्तार से जानते हैं...

पहले शहाबुद्दीन का मामला जानते हैं
साल 2016 में पटना हाईकोर्ट ने सीवान की बहुचर्चित तेजाब हत्याकांड के गवाह राजेश रौशन की हत्या की साजिश रचने के मामले में शहाबुद्दीन को जमानत दे दी थी. जमानत मिलने के बाद शहाबुद्दीन गाड़ियों के काफिले के साथ भागलपुर से सीवान आए थे. 

शहाबुद्दीन को जमानत मिलने पर बिहार में बवाल शुरू हो गया. उस वक्त राज्य में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की सरकार थी. सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया. इधर, तेजाब कांड के पीड़ित चंदा बाबू ने भी सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई.

चंदा बाबू का कहना था कि 2004 के बाद शहाबुद्दीन की वजह से उन्होंने अपने तीन बेटों को खो दिया है. शहाबुद्दीन के बाहर रहने से केस पर असर होगा.

चंदा बाबू के साथ ही पत्रकार राजदेव रंजन की पत्नी ने भी अर्जी दाखिल कर दी. राजदेव रंजन हत्याकांड में भी शहाबुद्दीन आरोपी था. सभी मामलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने शहाबुद्दीन की जमानत याचिका खारिज कर दी. 

इतना ही नहीं, उन्हें बिहार से ट्रांसफर कर दिल्ली की तिहाड़ जेल में भेज दिया. 2021 में शहाबुद्दीन की तिहाड़ जेल में ही मौत हो गई.

अब आनंद मोहन का मामला जानिए
1994 में मुजफ्फरपुर के खोबरा में गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या हो गई. आनंद मोहन, लवली आनंद और मुन्ना शुक्ला समेत कई लोग इसमें आरोपी बनाए गए. 2007 में निचली अदालत ने इस मामले में आनंद मोहन को फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे बाद में पटना हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास में बदल दिया.

2012 में जेल नियमावली में बिहार सरकार ने एक संशोधन किया था. इस नियमावली के मुताबिक 5 तरह के अपराध को जघन्य माना गया था, जिसमें आतंकवाद, डकैती के साथ हत्या, रेप के साथ हत्या, एक से अधिक हत्या और सरकारी कर्मचारी की हत्या शामिल था. 

इस नियमावली के मुताबिक आजीवन कारावास की सजा पाए अपराधियों की सजा पर 20 साल से पहले किसी भी तरह की छूट नहीं दी जाएगी. हाल में बिहार सरकार ने इस नियमावली में एक और संशोधन किया. इसके तहत सरकारी कर्मचारी की हत्या को सामान्य हत्या की श्रेणी में रख दिया गया.

सरकारी नियमों में बदलाव के बाद आनंद मोहन को बड़ी राहत मिली. बिहार सरकार ने मोहन और 26 अन्य अपराधियों को पिछले दिनों ही रिहा किया है.

शहाबुद्दीन-आनंद मोहन का केस कानूनी तौर पर कितना अलग?
1. शहाबुद्दीन को पटना हाईकोर्ट ने एक मामले में नियमित जमानत दी थी. उनके खिलाफ केस में सजा नहीं सुनाई गई थी, जबकि आनंद मोहन का केस बिल्कुल अलग है. आनंद मोहन दोषी करार दिए जा चुके हैं और 16 साल की सजा भी पूरी कर ली है. उन्हें सरकार ने नियमावली के तहत छोड़ा है.

2. जमानत पर छूटने के बाद भी शहाबुद्दीन के खिलाफ कई केस ट्रायल में था. इनमें पत्रकार राजदेव रंजन का हत्या भी शामिल था. आनंद मोहन मामले में ऐसा नहीं है. आनंद मोहन के खिलाफ सभी केस खत्म हो चुका है. यानी आनंद मोहन के खिलाफ अभी कोई केस ट्रायल में नहीं है.

तो क्या अब आनंद मोहन फिर से जेल नहीं जाएंगे?
यह कोर्ट के रूख पर निर्भर करेगा. पूर्व आईएएस अधिकारी अनुपम सुमन और सोशल एक्टिविस्ट अमर ज्योति ने पटना हाईकोर्ट में जेल नियमावली में बदलाव के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल की है. दोनों जनहित याचिका पर हाईकोर्ट सुनवाई करेगी.

इन याचिकाओं में कहा गया है कि बिहार सरकार ने शक्ति का दुरुपयोग करते हुए निजी स्वार्थ के लिए नियमों में बदलाव किया है, जिसे रद्द कर दिया जाए. याचिका में संशोधन को गैर-कानूनी बताते हुए इसे कानून व्यवस्था पर असर डालने वाला बताया गया है.

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि नियमावली में संशोधन ड्यूटी पर मौजूद लोक सेवकों और आम जनता के मनोबल को गिराती है.

कोर्ट से अगर याचिका पर स्टे मिलता है तो आनंद मोहन की रिहाई रद्द हो सकती है और उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है. ऐसे में सबकुछ निर्भर करेगा याचिकाकर्ताओं की दलील और नियम पर. 

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक संविधान में जेल मैन्युअल बनाने का अधिकार राज्य को दिया गया है, लेकिन राज्य निजी स्वार्थ के लिए मैन्युअल तैयार नहीं कर सकते हैं. बिहार में जो जेल नियमावली संशोधन हुआ है, उसे याचिकाकर्ता निजी स्वार्थ के लिए किया गया बदलाव साबित कर देते हैं तो कोर्ट स्टे लगा सकती है.

विराग गुप्ता आगे कहते हैं- आजीवन कारावास का अर्थ है कि पूरी जिंदगी जेल में बिताना. कई मामलों में 14 और 20 साल बाद कैदियों को रिहा कर दिया जाता है. आनंद मोहन भी आजीवन कारावास की सजा मिली थी. बिहार के नियम के मुताबिक उन्हें 20 साल से पहले राहत नहीं मिल सकती थी.

गुप्ता नियमावली पर बात करते हुए कहते हैं- नीतीश कुमार ने एक सभा में आनंद मोहन की रिहाई के लिए सरकार के प्रयास का जिक्र किया था, इसके कुछ महीनों बाद सरकार ने कानून में संशोधन किया है. याचिकाकर्ता के लिए यह मजबूत प्वॉइंट हो सकता है. 

दरअसल, इसी साल जनवरी में पटना में एक कार्यक्रम के दौरान जब आनंद मोहन के समर्थकों ने हंगामा किया था, तो नीतीश कुमार ने बड़ा बयान देते हुए कहा था कि हम रिहाई में लगे हुए हैं. 

उस वक्त आनंद मोहन के समर्थकों से नीतीश कुमार ने कहा था- आपको तो पता ही है न कि हम कोशिश कर रहे हैं. उनकी पत्नी से पूछ लीजिएगा कि हम क्या कोशिश कर रहे हैं. अगर आपलोग इस तरह से चिल्लाएंगे तो लोग दूसरी चीज समझ लेंगे.

8 यादव, 5 मुस्लिम और 4 राजपूत रिहा
आनंद मोहन समेत जिन कैदियों को छोड़ा गया है, उनमें  8 यादव, 5 मुस्लिम, 4 राजपूत, 3 भूमिहार, 2 कोयरी, एक कुर्मी, एक गंगोता और एक नोनिया जाति से आते हैं. बिहार के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने कहा कि सभी को नियमबद्ध तरीके से छोड़ा गया है.

बिहार सरकार की ओर से जारी सूची के मुताबिक आनंद मोहन, दस्तगीर खान, पंचानद पासवान, पप्पू सिंह, अशोक यादव, शिवजी यादव, किरथ यादव , बिजली यादव, कलक्टर पासवान, रामप्रवेश सिंह, किशुनदेव राय, सुरेंद्र शर्मा, देवनंदन नोनिया, विजय सिंह , रामाधार राम, हृदय नारायण शर्मा, पतिराम राय, मनोज प्रसाद,जितेंद्र सिंह, चंदेश्वरी यादव, खेलावन यादव, अलाउद्दीन अंसारी, मो. हलीम अंसारी, अख्तर अंसारी, सिकंदर महतो और अवधेश मंडल का नाम शामिल हैं.

कौन हैं आनंद मोहन और कृष्णैया की हत्या में क्यों आया नाम?
1954 में सहरसा के पचगछिया में जन्मे आनंद मोहन 1975 में जेपी के जेल भरो आंदोलन से प्रेरित होकर सहरसा जेल में बंद हो गए. आपातकाल के दौरान आनंद मोहन 2 साल तक जेल में रहे. 

आपातकाल हटने के बाद आनंद छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए. 1977 के अंत में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई बिहार आए थे. आनंद ने उन्हें काला झंडा दिखा दिया. जनता पार्टी से इसके बाद आनंद निकाले गए.

1990 में आनंद सहरसा के महिषी सीट से पहली बार विधायक चुने गए. 1994 में उन्होंने अपनी पत्नी लवली आनंद को मैदान में उतार दिया. लवली भी लोकसभा पहुंचने में कामयाब रही. 

1994 में डीएम हत्या के बाद आनंद मोहन जेल चले गए. इसके बाद 1996, 1998 का लोकसभा चुनाव शिवहर सीट से जेल से ही जीतने में सफल रहे. 1999 के चुनाव में आरजेडी के अनावरुल हक ने आनंद मोहन को हरा दिया.

आनंद मोहन 2004 का चुनाव भी हार गए. 2009 में पटना हाईकोर्ट ने उनके चुनाव लड़ने पर ही रोक लगा दिया. 1996 के बाद आनंद मोहन की पत्नी भी लगातार चुनाव हारती रहीं. 

2020 में आनंद मोहन परिवार को जीत की संजीवनी मिली. आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद आरजेडी टिकट पर शिवहर सीट से जीतने में कामयाब रहे. 

1994 में आनंद मोहन के जीवन का टर्निंग प्वॉइंट रहा. इसी साल 5 दिसंबर को गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी कृष्णैया की मुजफ्फरपुर में हत्या हो गई. कृष्णैया हाजीपुर से चुनावी पर्ची लेकर गोपालगंज जा रहे थे. 

हत्या का आरोप आनंद मोहन और उनकी पत्नी पर लगा. दरअसल, आनंद मोहन के करीबी छोटन शुक्ला की एक दिन पहले मुजफ्फरपुर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. मोहन सरकार के विरोध में शव के साथ जुलूस में शामिल थे.

चार्जशीट के मुताबिक आनंद मोहन ने भगवानपुर चौराहे पर पुलिस और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ भड़काऊ भाषण दिया. इसके कुछ देर बाद ही कृष्णैया की हत्या हो गई. 

आनंद मोहन के समर्थकों ने कृष्णैया को पहले पत्थरों से कुचलकर और फिर छोटन के भाई भुटकुन ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. इस हत्या ने लालू यादव की सरकार पर सवाल खड़े कर दिए थे. घटना स्थल से आनंद मोहन का एक कार भी बरामद किया गया था

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