Anand Mohan Singh Row: 'राजपूत-भूमिहार' नेता के रूप में आनंद मोहन को कैसे मिली पहचान? कैसे हुई थी छोटन शुक्ला की हत्या?
Anand Mohan Singh: जनता दल छोड़ने के बाद आनंद मोहन ने बिहार पीपुल्स पार्टी बनाई और उसे राजपूत भूमिहार एकता मंच का नाम दिया था.1990 के दशक में उन्होंने उभरते नेता के रूप में पहचान बनाई.
पटना: पिछले 14 सालों की सजा काट चुके बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई का रास्ता साफ हो चुका है. जेल मैन्युअल कानून में संशोधन कर दिया गया है. नोटिफिकेशन भी निकल चुका है और संभवत 27 अप्रैल को आनंद मोहन सहरसा जेल से हमेशा के लिए बाहर हो जाएंगे. वैसे तो जेल मैनुअल कानून में संशोधन पर 27 लोगों को रिहा किया जा रहा है, लेकिन बिहार ही नहीं पूरे देश में यह चर्चा है कि यह पूरा कानून का संशोधन आनंद मोहन की रिहाई को लेकर किया गया है.
ऐसे में आनंद मोहन का रसुख किस तरह बिहार में रहा है और आगामी 2024 की लोकसभा चुनाव में आनंद मोहन की क्या भूमिका हो सकती है यह भी जानना दिलचस्प होगा कि आखिर सरकार और महागठबंधन की सातों 7 पार्टियां आनंद मोहन को रिहा करने के लिए क्यों बेताब ही रही हैं, इतना तक की विपक्ष में भारतीय जनता पार्टी भी आनंद मोहन की रिहाई का विरोध नहीं कर रही है.
1990 में पहली बार जनता दल के टिकट से जीत कर बिहार विधानसभा पहुंचे
सब के पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि आनंद मोहन ने 1990 के दशक में स्वर्ण जाति के उभरते नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई थी वह समय था जब उनके भाषण मात्र से ही राजपूत और भूमिहार जाति का वोट इधर से उधर होता था. आनंद मोहन जेपी आंदोलन से उभरे और इमरजेंसी के दौरान वे जेल भी गए थे. असल में उनकी राजनीतिक करियर की शुरुआत 1990 से हुई थी जब वे पहली बार जनता दल के टिकट से जीत कर बिहार विधानसभा पहुंचे थे.
उसके 1 साल बाद 1991 में उन्होंने लवली आनंद से शादी की थी. उनकी राजनीतिक नीति मुख्य रूप से आरक्षण का विरोध थी और इसके लिए उन्होंने अपने साथ भूमिहार जाति के लोगों को अपने पास रखा था. उसी में से एक थे छोटन शुक्ला. विधायक रहते हुए उन्होंने 1983 में जनता दल को छोड़ दिया था क्योंकि उसी समय मंडल कमीशन लागू हुआ था जिसका वे विरोध कर रहे थे.
जनता दल छोड़ने के बाद आनंद मोहन ने अपनी बिहार पीपुल्स पार्टी बनाई और उसे राजपूत भूमिहार एकता मंच का नाम दिया था और उसका असर भी हुआ. साल 1994 लोकसभा उपचुनाव में वैशाली की सीट पर आनंद मोहन ने लवली आनंद को अपनी पार्टी से उतारा और देश में भूमिहार वोटरों ने जमकर उनका समर्थन किया और लवली आनंद सांसद बनी थीं.
कैसे हुई थी छोटन शुक्ला की हत्या
आनंद मोहन 1995 के बिहार विधानसभा की तैयारी कर रहे थे और इसके लिए उन्होंने कैंडिडेट का भी चयन कर लिया था. उसमें केसरिया विधानसभा से छोटन शुक्ला की टिकट बिहार पीपुल्स पार्टी से तय हो चुकी थी. लेकिन 4 दिसंबर 1994 को छोटन शुक्ला की हत्या कर दी गई थी. छोटन शुक्ला वैसे तो खुली जीप में घूमा करते थे लेकिन 4 दिसंबर की रात 9:00 बजे वे अपने यह करीबी के घर पर जीप रखकर अम्बेसडर कार से जा रहे थे.
मुजफ्फरपुर के विजय सिनेमा के पास पुलिस वर्दी में एक पुलिस वाले ने उनकी कार को रुकवाया था उनकी गाड़ी पर गोलियों की बौछार की गई थी जिसमें छोटे शुक्ला घटनास्थल पर मौत हो गई थी और उनके साथ चार सहयोगी की भी हत्या हो गयी थी.
लोगों में यह आक्रोश था कि पुलिस वाले ने उनकी हत्या कराई है. हालांकि हत्या कराने में उस समय के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के करीबी ब्रिज बिहारी सिंह का नाम उजागर हो चुका था. हत्या के दूसरे दिन छोटन शुक्ला का अंतिम संस्कार किया जा रहा था लोगों में पुलिस पर आक्रोश था और उसी भीड़ में गोपालगंज के डीएम जी कृष्णय्या भीड़ के हत्थे चढ़ गए थे और लाठी डंडे से पीट कर उनकी हत्या कर दी गई थी. उस शव यात्रा में आनंद मोहन भी शामिल थे और उनका नाम हत्या में आया था जिस पर उन्हें पहले मौत की सजा सुनाई गई उसके बाद आजीवन करावास दिया गया था.
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