आरा: बिहार के अनेक ऐतिहासिक, राजनितिक, धार्मिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक केंद्रों में आरा शहर का भी महत्वपूर्ण स्थान है. जैन धर्म के पहले मोक्षगामी भगवान बाहुबली की एक भव्य प्रतिमा बिहार के आरा में भी स्थापित है. बाहुबली जैन धर्म के लोगों के भगवान कहलाते हैं. इस विशाल प्रतिमा का महाभिषेक किया जाता है. जैन धर्म के अनुसार भगवान बाहुबली को गोम्मटेश के नाम से भी जाना जाता है, जो गोम्मतेश्वर प्रतिमा के स्थापित होने का बाद पड़ा था.



जैन परंपरा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है आरा


आरा शहर को जैन परंपरा का एक महत्वपूर्ण केंद्र भी बनाती है. ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखा जा तो आरा में रामायण और महाभारत में उल्लिखित अनेक प्रसंगों के स्मृति चिह्न मिलेंगे, तो दूसरी तरफ जैन धार्मिक और सामाजिक केन्द्रों एवं बौद्ध विहारों के अवशेष भी प्राप्त होंगे. इसके अलावा आरा और उसके आसपास जैन परम्परा के कई मंदिर, चैतालय, जिनालय स्थित हैं. जबकि भारत में प्रसिद्द मूर्तियों या मंदिरों की अनुकृतियां हैं, जो आरा को एक विशेष स्थान प्रदान करती हैं.


सालों भर आते हैं जैन धर्मावलंबी


आरा में भारत के विभिन्न स्थानों से जैन मतावली सालों भर खासकर भादों महीने में मंदिरों और अपने तीर्थंकरों का दर्शन करे आते हैं. जैन के अलावा जिले में दूसरे धर्मों के कई ऐतिहासिक मंदिर और अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं. आरा शहर से सटे आरा-पटना मुख्य मार्ग पर धनुपुरा नामक प्राचीन स्थल है, जिसे जैनियों के 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के विभिन्न प्रान्तों में भ्रमण के दौरान कुछ दिन ठहराने का गौरव प्राप्त है और उन्होंने यहां ठहरकर अपने उपदेशों से लोगों को लाभ प्राप्त करवाया था. इसी जगह पर लड़कियों की शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र जैन बाला विश्राम नाम से है.


भगवान बाहुबली थे प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के बेटे


इतिहासकार बताते हैं कि बाहुबली जैन धर्म के लोगों के भगवान कहलाते हैं. आपको बता दें कि जैन धर्म के अनुसार भगवान बाहुबली प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र थे. अपने बड़े भाई भरत चक्रवर्ती से युद्ध के पश्चात वह मुनि बने थे. उन्होंने एक साल तक कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यान किया. जिसके बाद उन्होंने केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और वह केवली भी कहा जाने लगा.


साल 1937 में स्थपित की गई थी प्रतिमा


आरा में रहने वाले जैन धर्म के जानकार व्यक्ति राजीव नयन अग्रवाल ने बताते हैं कि इसी जैन बाला विश्राम परिसर में सन 1937 में जैनियों के प्रथम तीर्थंकर 1008 भगवान रिषभदेव के पुत्र भगवान बाहुबली स्वामी की 13 फूट ऊंची श्वेत संगमरमर की अति मनोज्ञ प्रतिमा की स्थापना 12 फूट ऊंचे कृत्रिम पर्वत पर बाबू देव कुमार जैन की बहन नेमीसुंदरी देवी ने की थी. जिसकी पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठा बाबू धनेन्द्र दास और उनकी पत्नी नेमीसुंदरी देवी के बड़े नाती प्रताप चन्द जैन तथा उनकी पत्नी ने की.


इतिहासकारों की जानकारी के लिए रखा गया है ताम्रपत्र


इस प्राणप्रतिष्ठा में उस समय में बिहार के राज्यपाल आर आर दिवाकर ने भाग लिया था. आगे चलकर मां चंदाबाई ने 31 फूट ऊंचे सफ़ेद संगमरमर का विशाल मानस्तंभ का निर्माण भगवान बाहुबली के ठीक सामने करवाया, जो प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिदेव या ऋषभदेव को समर्पित है. इस मानस्तंभ के निचे ताम्रपत्र भविष्य में इतिहासकारों की जानकारी के लिए रखा गया है.


भारत के हर कोने से दर्शन के लिए आते हैं लोग


आरा स्थित भगवान बाहुबली की यह प्रतिमा कर्नाटक के विश्वप्रसिद्ध श्रवणबेलगोला में स्थापित 65 फूट ऊंची भगवान बाहुबली की प्रतिमा की अनुकृति है, जो बरबस लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करती है और श्रवणबेलगोला की याद ताजा कराने के साथ धर्म प्राणायन लोगों को वही पर धारा पूजा करने का आभास भी दिलाती है. यहां भारत के हर कोने से लोग इनका दर्शन करने अपने जीवन में एक बार जरूर आते हैं.


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