औरंगाबाद: बिहार के औरंगाबाद जिले के हसपुरा प्रखंड के कई प्रगतिशील किसान परंपरागत खेती की लीक से अलग हटकर हल्दी समेत अन्य मसालों की खेती कर रहे हैं. उनका दावा है कि इससे उन्हें कम लागत में ही अधिक मुनाफा हो रहा है और सरकार की ओर से सब्सिडी भी मिल रही है. जिले के हसपुरा प्रखंड के हैबसपुर, धमनी, खुटहन, इटवां आदि गांव के मंझोले किसान गेहूं और धान की खेती से अलग हटकर हल्दी की खेती कर रहे हैं. कम जमीन होने की स्थिति में भी वह हल्दी खेती के जरिए ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं.


जिले के हैबतपुर गांव के किसान राम कृपाल सिंह, सुजीत वर्मा, श्रीकांत कुमार आदि ने बताया कि हल्दी की खेती में सबसे बड़ी बात यह है कि इसका नकद बाजार है और व्यवसाई किसानों के घर से ही बेहतर कीमत पर हल्दी की उपज उठा लेते हैं. वहीं, जरूरत पड़ने पर किसान बाजार में जाकर भी अपने उत्पाद को आसानी से बेच देते हैं. किसानों ने बताया कि हल्दी की खेती के बाद दूसरे फसल को लगा कर भी मुनाफा कमाया जा सकता है और बेहतर उपज के आसार भी हैं.


इस संबंध में सहायक निदेशक उद्यान जितेंद्र कुमार ने बताया कि हल्दी और अन्य मसालों की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 30,000 रुपये की लागत आती है और इस पर 50% सब्सिडी यानी 15,000 रुपये की राशि किसानों को सरकार की तरफ से दी जाती है. उन्होंने कहा कि हल्दी की खेती ज्यादा लाभकारी है और इसकी खेती करने के लिए अन्य किसानों को भी प्रोत्साहित किया जाएगा.


उन्होंने कहा कि अगर केंद्र और राज्य सरकार की कृषि कल्याणकारी योजनाओं से अवगत होकर किसान परंपरागत खेती से भिन्न हल्दी की खेती को अपनाते हैं तो इससे ना केवल उनकी आमदनी बढ़ेगी बल्कि मसालों के उत्पादन के मामले में राज्य की आत्मनिर्भरता भी मजबूत होगी.


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